फिल्म ड्रीम गर्ल के बहाने -एक तिलिस्म है पूजा

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फिल्म ड्रीम गर्ल के बहाने   -एक तिलिस्म है पूजा

ड्रीम गर्ल यानि स्वप्न सुंदरी | बरसों पहले इसी नाम से एक फिल्म आई थी जिसमें हेमामालिनी ने अभिनय किया था | इस फिल्म में उनकी खूबसूरती और अभिनय का जादू कुछ ऐसा चला कि कि दर्शक दीवाने हो गए | उसके बाद  हेमा मालिनी को ड्रीम गर्ल टाइटल  से ऐसा नवाजा गया कि आज तक जब ड्रीम गर्ल शब्द का प्रयोग कोई करता है तो सबसे पहले हेमा मालिनी का चेहरा ही याद आता है | 2019 में फिर से एक फिल्म उसी नाम ड्रीम गर्ल से दर्शकों के सामने आई है | ये फिल्म हेमामालिनी की ख़ूबसूरती को मिले खिताब ड्रीम गर्ल को तो टक्कर नहीं देती लेकिन कॉल सेंटर  इंडस्ट्री के एक हिस्से द्वारा रचाए गए ड्रीम गर्ल के तिलिस्म पर अपनी बात रखती है | फिल्म कॉमेडी के माध्यम से हँसाते -हँसाते भी अकेलेपन से जूझते समाज एक गंभीर मसला उठाती है और गहराई से सोचने पर विवश करती है | तो आइये बात करते हैं पूजा के बारे में जो महज एक नाम नहीं एक तिलिस्म है ….

फिल्म ड्रीम गर्ल के बहाने -एक तिलिस्म है पूजा 

फिल्म -ड्रीम गर्ल
बैनर -बालाजी टेलीफिल्म्स लिमिटेड 
निर्माता -एकता कपूर , शोभा कपूर 
निर्देशक -राजा शांडिल्य 
संगीत -मीता ब्रदर्स 
कलाकार – आयुष्मान खुराना , अनू कपूर , नुसरत भरूच , मनजोत सिंह , विजय राय 
समय -दो घंटे बारह मिनट 29 सेकंड 
 २०१९ की ‘ड्रीम गर्ल का निर्देशन किया है राजा शांडिल्य ने | वो ‘कपिल शर्मा शो’ में भी काम कर चुके हैं | कपिल शर्मा शो एक ऐसा शो है जहाँ पुरुष पात्र महिला भेष में आते हैं | एक अनुमान ये है कि उनको फिल्म का आइडिया वहीँ से मिला | हालांकि उनका कहना है कि ये आइडिया उन्हें अपने एक दोस्त से मिला जो महिलाओं की आवाज़ में  फोन पर बातें किया करता था |

फिल्म की कहानी शुरू होती है  एक माध्यम वर्गीय परिवार से जिसमें विधुर अनू कपूर अपने बेटे आयुष्मान खुराना के साथ रहता है | अनू कपूर की एक छोटी सी दुकान है | जिसके  सहारे ही उसका घर चलता है | पत्नी के बहुत साल पहले उसे छोड़ कर ईश्वर के घर चले जाने से उसकी जिन्दगी में एक खालीपन है और साथ में हैं बहुत सारे लोन | यहाँ तक कि उसका घर भी गिरवी रखा हुआ है | ऐसे में उसे आशा और उम्मीद की सुई अपने बेटे पर टिकी हुई है जो एक पढ़ा -लिखा बेरोजगार है | और देश के लाखों बेरोजगारों की तरह अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद बार -बार प्रतियोगी परीक्षाएं देता है , इंटरव्यू देता है पर नतीजा शिफर ही रहता है | ऐसे में उसके पॉकेट मनी का सहारा है उसकी आवाज़ ….जी हाँ उसकी आवाज़ की ये खासियत है कि वो  महिला  या कहें कि महिलाओं की आवाज़ में भी बात कर सकता है | इसी कारण उसे मुहल्ले में होने वाले राम लीला या जन्माष्टमी आयोजन में सीता या राधा का रोल मिल जाता है | जिससे उसे कुछ पैसे तो मिलते हीं हैं , कुछ बख्शीश भी मिल जाती है |  पर इस उम्र में जब उसे अपने भावी परिवार व पिता की जिम्मेदारियों को अपने कन्धों पर लेना है ये नाकाफी है | और यही उसकी चिंता का सबब भी है |

ऐसे में एक इंटरव्यू  से रिजेक्ट होकर वो  बस से घर लौट रहा होता है तो उसकी नज़र एक विज्ञापन पर पड़ती है | जिसमें लिखा होता है कि हर महीने 70, 000 कमायें |  धन और नौकरी का लोभ उसे वहां खींच ले जाता है और उसके सामने आता है एक ऐसी इंडस्ट्री का सच जिसके बारे में उसे पता नहीं था | “बातें ही बातें , प्यार भरी बाते , या फिर दोस्ती ” जैसे विज्ञापन हम भी अक्सर देख कर आगे बढ़ जाते हैं | पर यहाँ हम इसकी असलियत से रूबरू होते हैं | जहाँ काम करने वाली लड़कियों को प्रेम भरी या कस्टमर के इंटरेस्ट की बातें कर उनका फोन का बिल बढ़ाना होता है | यही बढ़ा हुआ बिल कॉल सेंटर्स की कमाई  का जरिया है | इस इंडस्ट्री में बहुत लडकियाँ काम कर रही हैं | ये सही है या गलत …पर ये है | एक लड़की पूजा के ना आने से मालिक परेशान  है | ऐसे में आयुष्मान उसका फोन अटेंड कर स्त्री की आवाज़ में बातें करने का अपना हुनर दिखाता है | मालिक तुरंत उसे काम पर रख लेता है |

यहाँ से शुरू होती है आयुष्मान की दोहरी जिन्दगी | एक तरफ वो पिता व् परिचितों से  झूठ बोल कर कि वो कॉलगेट कम्पनी में काम करता है पूजा बन कर कॉल सेंटर में काम करता है दूसरे वो उस पैसे से तमाम लोंन  चुकाता  है और घर की हालत सुधरती है |  इधर पूजा के दीवानों की संख्या बढ़ने लगती है | बूढ़े से लेकर कम उम्र नौजवान सब उससे बात करना चाहते हैं और उधर आयुष्मान की निजी जिन्दगी की उलझने | यानि इन तमाम स्तिथियों में पहले हास्य पैदा होता है फिर कन्फ्यूजन | और अंत में कन्फ्यूजन तो खत्म होना ही है | होता है ..पर एक खूबसूरत नोट के साथ | यहीं से हम शुरू करेंगे एक हास्य फिल्म की गंभीर चर्चा |

आज लोग फॅमिली फोटोग्राफ नहीं खींचते | ज्यादातर लोगों के फोन सेल्फी से भरे होते है | “




                                     ये समस्या है अकेलेपन की | आज रिश्तों -नातों , मित्रों , फेसबुक इन्स्टाग्राम के होने बावजूद भी हर आदमी तन्हाँ है | उसे एक दोस्त चाहिए …ऐसा दोस्त जिसके आगे वो अपने दिल की हर बात कह सके | आखिर ऐसा क्यों है कि हम हमें अपनों की भीड़ में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलता जिसके सामने हम पारदर्शी रह सकें | उत्तर आसान है …हमें नकारे जाने का डर होता है | हमारे अपने हमें ऐसे रूप में देखना पसंद करते हैं जो उन्हें सही लगता है | इनके -उनके सही में हमारा असली चेहरा कहीं खो जाता है | जिसका असली चेहरा जितना खो जाता है वो अपनों की भीड़ में उतना ही अकेला होगा और उसको पूजा की जरूरत सबसे ज्यादा होगी |

लेकिन क्या सिर्फ हमें नकारे जाने का भय होता है या हम भी दूसरों को नकारते चलते हैं …उत्तर हम सब जानते हैं | बहुत सी चीजें हम जान कर भी नहीं मानना चाहते हैं | औरतों के बारे में तो खास बात ये रही है कि उसको त्याग की मूर्ति बना कर रख दिया गया | उसके अंदर के इंसान की सहज अभिव्यक्ति मार दी गयी | फेसबुक फ्रेंड के उन्मुक्त विचारों पर अपनी सहमति की मोहर लगा कर सबसे झगड पड़ने वाले पुरुष ( क )की अपनी पत्नी घर के चार सदस्यों के बीच में भी घूँघट में रहती है | तो असली (क ) कौन है ? फेसबुक वाला , या घर में रहने वाला | क्या आप बता सकते हैं ? क्या वो खुद बता सकता है ? एकाकी जीवन व्यतीत करने वाले आयुष्मान खुराना (फिल्म में ) के पिता अन्नू कपूर के मन में जीवन साथी की कामना है पर वो ये बात अपने बेटे को नहीं बता पाते | अलबत्ता एक पूजा से फोन पर बतिया जरूर लेते हैं | क्या वो अपने बेटे से यह बात कर लेते तो बेटा उनका अकेलापन समझ कर भी मना  कर देता ? जब आयुष्मान फिल्म की नायिका को बताते हैं कि वो ये काम लोन भरने की मजबूरी में करते रहे | तो बात उसकी समझ में आ जाती है | पर सारी फिल्म इस छिपाने को लेकर ही आगे बढती है | गलत तो पहले  बताना भी नहीं था |

बहुत समय पहले मैंने इसी विषय पर एक कहानी लिखी थी …”पुरूस्कार ‘ जिसमें पत्नी अपने पति से अपना लेखन छिपाने के लिए काल्पनिक नाम से लिखती है | क्योंकि उसके पति को लिखना नहीं पसंद है | आखिरकार दो रूपों में से उसे एक रूप चुनना पड़ता है | लेकिन तब तक भयंकर पीड़ा और घुटन से वो गुज़रती है | हम सब सच कहने का साहस इसलिए नहीं कर पाते कि हमारे अपनों से हम दूर ना हों लेकिन सच्चाई में हम बहुत ज्यादा दूर हो जाते हैं |

जो लोग आध्यात्म में जाते हैं उन्हें सबसे पहले यही सिखाया जाता है कि अपने प्रति सच्चे हो | जब तक अपने प्रति सच्चे नहीं होंगे तो किसी के प्रति सच्चे नहीं हो सकते | उस झूठ उस दिखावे से भरे अकेलेपन में हमेशा एक पूजा का स्कोप बना रहेगा | पूजा एक तिलिस्म रचती है | झूठ का तिलिस्म …एक ऐसा शख्स जो आपके दिल की हर बात सुन लेता है | हर समय जब आप चाहें वो उपलब्द्ध है | जैसा आप  चाहते हैं वैसा ही आप से बात करता है | पर पूजा कभी मिल नहीं सकती क्योंकि  पूजा को बातें करने के पैसे मिल रहे हैं | सामने आते ही ये तिलिस्म टूट जाएगा | उसकी अपेक्षाएं होंगी ,उम्मीदें होंगी और हमारी अपनी | ये रिश्ता चल पायेगा ?

पूजा के तिलिस्म पर चलती इस इंडस्ट्री को समझना तो हमें ही होगा |
अकेलेपन से जूझना भी हमें ही होगा |
और खुद से दोस्ती करने का हुनर भी हमें ही सीखना होगा |

जब हम खुद को उस रूप में स्वीकार कर पायेंगे जैसे हम हैं तो दूसरों को भी कर पायेंगे |

वापस फिल्म पर आते हैं | अभिनय की दृष्टि से आयुष्मान खुराना व् अन्नू कपूर छाए रहे | नायिका के पास ज्यादा करने को कुछ था नहीं | कॉमेडी टाइमिंग बहुत अच्छी थी | काफी संवाद द्विअर्थी थे | सब्जेक्ट के हिसाब से वो चल गए | निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी ने प्रभावित किया | फिल्म में मथुरा की बोली का असर मिठास से भर गया | इंटरवेल के बाद फिल्म थोड़ी ढीली हो जाती है | उसे और प्रभावशाली बनाया जा सकता था |

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  1. सही समीक्षा। भीड़ में भी हर आदमी तन्हा है।किसी से बात करने की ललक ही फोन और फेसबुक का दीवाना बनाती है।

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