स्वागत नई किताब का -कबीर जग में जस रहे

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स्वागत नई किताब का कॉलम के अंतर्गत हम आने वाली किताब का टीजर सभी मित्रों, पाठकों से साझा करते हैं | इस बार शिवानी जयपुर की आने वाले कहानी संग्रह “कबीर जग में जस रहे” का चयन किया गया है |

कवयित्री, कथाकार, पत्रकार और विभिन्न कार्यक्रमों के संचालक के तौर पर अपनी पुख्ता पहचान बनाने वाली शिवानी जयपुर का  पहला कहानी संग्रह “कबीर जग में जस रहे” शीघ्र ही बोधि प्रकाशन से आने वाला है | शिवानी जी की पहली कहानी “बातशाला” अटूट बंधन हार्ड कॉपी मैगजीन में प्रकाशित हुई थी | ये पहली कहानी ही काफी चर्चित रही थी | तबसे निरंतर अपनी पैनी लेखनी  के माध्यम से वो सार्थक साहित्य का सृजन कर रही हैं  | प्रस्तुत है उनकी आने वाले कहानी संग्रह का टीजर ..

स्वागत नई किताब का -कबीर जग में जस रहे

“तुम? तुम कब से…” मुझे जो नहीं कहना चाहिए था वही जिव्हा के अग्रभाग पर आकर लटक गया। बिना हाड़ की ये जिव्हा, जितनी बाहर दिखाई देती है उससे अधिक भीतर छिपी होती है! जाने क्या क्या संचित रहता है उस भीतरी भाग में जो रपटीली सड़क पर फिसलते किसी ब्रेक फेल वाहन की तरह आखिरी छोर पर आकर लटक जाता है! अब टपका तो क्या और लटका रहा तो क्या? वापस पीछे तो जाने से रहा! मैं अपने शब्दों के ऐसे लटकने-भटकने को लेकर शर्मिंदा हो कर कुछ कहती उससे पहले अंबु ने मुस्कुराते हुए कहा “मुझे पता था आप सब अब तक यही समझते होंगे!”

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अब हाल ये था कि सिलीगुड़ी में कम और अंबु के घर-परिवार में अधिक दिलचस्पी हो गई थी! बात भले ही अजीब सी थी पर धरती, चाँद, सूरज, हवा और पानी की उपस्थिति की तरह सच्ची थी! इंसान दुनिया भर से झूठ बोल सकता है पर अपने हिये की थाह वो स्वयं ही ले सकता है! अपनी पीठ का तिल दिखाई भले ही न दे,पर हम ही जानते हैं कि वो है और कहाँ है! मेरे मन की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी! अंबु की उदासीनता से मुझे एतराज़ था,पर क्यों? ये समझ नहीं आ रहा था। बीस साल… बहुत बड़ा अर्सा था। जीवन में कितना कुछ बदलाव आ गया था! मुड़ कर देखने की फुर्सत ही नहीं मिली थी!अब मिली थी तो… अजीब उलझन में फँस गई थी।

कबीर जग में जस रहे

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मुझे कई बार लगता है कि हमारा मस्तिष्क एक विशाल समन्दर की तरह होता है! हमारे क्रिया-कलापों के माध्यम से जो कुछ ऊपर से दृष्यमान होता है उससे कई गुना अधिक सामग्री हमारे सुप्त मस्तिष्क में संचित रहती हैं!

क्या-क्या यादें और बातें जमा रहती हैं ये हम तब तक नहीं जान पाते जब तक कोई घटना,गोताखोर सी भीतर जाकर कुछ उथल-पुथल, कुछ तहकीकात न करे! और जिस तरह गोताखोर समुद्रतल तक पहुँचने के क्रम में कई तरह की वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के सम्पर्क में आते हैं, उनके बारे में और अधिक नये-नये तथ्य जान पाते हैं, उसी तरह से कोई एक घटना, कोई एक बात हमें अतीत की गहराइयों में ले जा सकती है। इस दौरान हम उन पर नये सिरे से,नये दृष्टिकोण से विचार कर चकित हो रहे होते हैं!

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“सबने अपने मन का किया! उन्होंने छोड़ना चाहा, छोड़ दिया! नन्नू ने जाना चाहा,चला गया! उन दोनों केे लिए कोई सज़ा नहीं! पर मेरे मन का क्या हुआ? मैंने भी तो वही किया जो मुझे ठीक लगता था! जिस बात का मन नहीं मानता था, नहीं किया! पर उसके लिए इतनी बड़ी सज़ा भुगतनी पड़ी! मैं उस मरुभूमि की तरह बंजर रह गई जिसकी मिट्टी की गुणवत्ता पानी के अभाव में अनजानी ही रह जाती है…”

कबीर जग में जस रहे

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दुखों की पोटलियाँ अगर समय-समय पर खोली न जाएँ तो वो सीलन से भारी होने लगती हैं। उसी सीलन के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए दोनों सखियाँ अपने-अपने दुखों की पोटलियाँ एक दूसरे के सामने खोलकर थोड़ी हवा और धूप दिखाकर बोझ कम कर लेती थीं।

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अखबार खिड़की में लगाते हुए बिसना के हाथ काँप रहे थे। कंपकंपाते हाथों से अखबार और उसके ऊपर गत्ते अच्छी तरह फिट करके जब वो स्टूल से नीचे उतरा तब भी बाल्टी के पानी में पड़ गए कीड़ों का कुलबुलाना जारी था।रश्मि की बात उसके कानों में लगातार गूँज रही थी…”इतना गुस्सा आया कि बस हाथ पहुँच सकता तो गर्दन पकड़ कर वहीं मरोड़ देती! छुप-छुप के देखता है इडियट… बेशर्म! थू है थू ऐसे लोगों पर…हम हमारे घर में कुछ भी करें! हमारी मर्जी! कोई चुपचाप कैसे देख सकता है? कोई प्राइवेसी नहीं है क्या हमारी?”

“थैंक्यू भैया” कहकर खुश होती रश्मि स्टूल उठा कर बाहर निकल गई। बिसना ने बाथरूम की बाल्टी का पानी फर्श पर बिखेर दिया। कीड़े बहकर नाली में जा रहे थे और बिसना उस शाम चुपचाप सारा सामान समेट कर घर जा रहा था…

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जब बच्चे माता-पिता को छोड़कर अपनी खुद की नई दुनिया बसा कर मस्त हो जाते हैं! तब माता-पिता अपना बचा हुआ जीवन,गुज़रे हुए जीवन की समीक्षा में ही निकालने लगते हैं! कारण ढूँढते रहते हैं कि ऐसा क्यों हुआ! कभी-कभी गल्तियाँ समझ आती हैं तो अफसोस करते हैं। नहीं तो तकदीर को दोष देकर जी बहलाने की कोशिश करते हैं।

शिवनी जयपुर

नए कहानी संग्रह के के लिए शिवानी जयपुर को बहुत बहुत शुभकामनाएँ

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