डस्टबिन में पेड़ -शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ

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डस्टबिन में पेड़ आशा शर्मा जी का नया बाल कहानी संग्रह है | पेशे से इंजिनीयर आशा जी कलम की भी धनी हैं | इस बाल कहानी संग्रह में २५ कहानियाँ हैं जो बच्चों के मन को सहलाती तो हैं ही एक शिक्षा बजी देती हैं | आइये रूबरू हिते हैं ‘डस्टबिन में पेड़’ से …

डस्टबिन में पेड़ –शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ

 

बचपन जीवन की भोर है | इस भोर में आँख खोलते हुए नन्हे शिशु को जो कुछ भी दिखाई देता है वो सब कुछ कौतुहल से भरा होता है …फिर चाहें वो सुदूर आसमान में उगता हुआ लाल गोला हो, या काली रात की चादर के नीचे से झाँकते टीम –टीम करते बल्ब | बालमन कभी समझना चाहता है दादाजी की कड़क आवाज में छिपा प्यार, तो कभी माँ की गोल-गोल रोटियों का रहस्य | कभी उसे  स्कूल का अनुशासन बड़ा कठोर लगता है तो कभी छोटे भाई /बहन का आगमन अपने सम्राज्य में सेंध | अब उन्हें समझाया कैसे जाए |हम सब कभी बच्चे रहे हैं फिर भी बड़े होते ही एक ना एक बार ये जरूर कहा होगा कि “बच्चो को समझाना कोई बच्चों का खेल नहीं”| इस काम में अक्सर हमारे मददगार होते हैं किस्से और कहानियाँ | कुछ किस्से दादी –नानी के जमाने से चले आ रहे हैं जो पुरातन होने के बावजूद चिर नूतन हैं | आश्चर्य होता है कि आज कल के बच्चे भी उन किस्सों को मुँह में ऊँगली दबा कर वैसे ही सुनते हैं जैसे कभी हमने सुने थे | फिर भी बदलते ज़माने के साथ दुनिया भर के बच्चों की चुनौतियां बढ़ी हैं तो उन किस्सों को सुनाने की दादी-नानी की चुनौती भी | दुनिया भर का बाल साहित्य दादी नानी की इस चुनौती को कम करने का प्रयास है | ये अलग बात है बच्चों की मांग के अनुसार ना बाल फिल्में बनती हैं न बाल साहित्य लिखा जाता है | मजबूरन बच्चों को बड़ों की किताबों में मन लगाना पड़ता है | जो उनके लिए दुरूह होती है | जिस कारण बचपन से ही उनकी साहित्य से दूरी हो जाती है | ये ख़ुशी की बात है कि इधर कई साहित्यकार बाल साहित्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ कर इस दिशा में आगे आये हैं | बाल साहित्य केवल किस्से कहानी तक सीमित मनोरंजन भी हो सकता है पर अधिकतर का  उद्देश्य ये होता है कि किस्से कहानी के माध्यम  से उन्हें कोई शिक्षा  दे दी जाए या उनके मन की कोई गुत्थी सुलझा दी जाये | अलग –अलग वय के बच्चों की अलग –अलग समस्याएं होती हैं और उनके अलग –अलग समाधान | अपने बच्चों को बाल साहित्य से सम्बंधित कोई किताब खरीदते समय ये देखना जरूरी होता है कि वो किस उम्र के बच्चों की है |

लेखिका -इंजी.आशा शर्मा

आज बाल साहित्य की एक ऐसी ही किताब की चर्चा कर रही हूँ जिसका नाम है “डस्टबिन में पेड़” इसको लिखा है आशा शर्मा जी ने | जो लोग नियमित पत्र –पत्रिकाएँ पढ़ते हैं वो आशा जी की रचनात्मकता से जरूर परिचित होंगे |आशा जी निरंतर लिख रही हैं और खास बात ये हैं कि कविता कहानी से लेकर बाल साहित्य तक उन्होंने साहित्य के हर आयाम को छुआ है | उनसे मेरा परिचय उनकी लेखनी के माध्यम से ही हुआ था जो शमी के साथ और मजबूत हुआ | ये किताब आशा जी ने मुझे सप्रेम भेंट की | उस समय मैंने कुछ कहानियाँ पढ़ी फिर लेखन, पठन –पाठन सब कुछ जैसे कोरोना के ब्लैक होल में चला गया | इधर जो भी किताब उठाई वो आधी –अधूरी सी छूट गयी | यही हाल लिखने का भी रहा | आज जब संकल्प ले कर किसी किताब को पढने का मन बनाया जो ये झांकती हुई सी मिली | मुझे लगा इस समय के लिए ये किताब सबसे सही चयन है क्योकि  इंसान कितना भी बड़ा हो जाए उसके अन्दर एक बच्चा जरूर छिपा रहता है,  और क्या पता इसको पढ़कर मेरे अन्दर किताब पढने की जो धार कुंद हो गयी है वो फिर से पैनी हो जाए |

 

यकीन मानिए शुरू में तो यूँही पन्ने पलते फिर तो लगा जैसे समय कि ऊँगली पकड कर फिर से बचपन मुझे खींचे लिए जा रहा है | वो इमली खाना, या पेड़ों पर चढ़ने की कोशिश या फिर अपनी छोटी छोटी चिंताओं को घर के बड़ों ऐसे बताना जैसे उससे बड़ी समस्या कोई हो ही नहीं सकती और उनका हँसते –हँसते लोट –पोट हो जाना | प्रस्तुत संग्रह में करीब 25 कहानियाँ हैं  जो रोचक तो है हीं  शिक्षाप्रद भी हैं | जैसे ‘असली सुन्दरता ‘में ब्लैकी भालू अपने दोस्त की खरगोश की सुन्दरता देखकर खुद भी पार्लर जाता है और बाल सीधे व् नर्म करवा लेता है पर इससे उसकी समस्या कम करने के स्थान पर बढ़ जाती है | अंतत : उसे समझ आता है कि हम जैसे हैं वैसे ही सबसे अच्छे हैं | आजकल के बच्चों में भी सुदर दिखने का क्रेज है |माता –पिताखुद उन्हें पार्लर  ले जा रहे हैं | सुन्दर दिखने का ये बाज़ार खुद को कमतर समझने की नीव पर आधारित है | इस कहानी के माध्यम से बच्चों को जैसे है वैसा ही सबसे अच्छे हैं की शिक्षा भी मिल जाती है | ऐसी ही एक कहानी है ‘जिगरू मेनिया’ जिसमें जिगरू हाथी के कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतते ही जंगल का हर जानवर अपने बच्चे को कुश्ती सिखाने में लग गया | अब जिराफ की तो गरदन ही बार –बार अखाड़े के बाहर निकल जाती और फाउल हो जाता | कमजोर जानवर तो बार –बार पिट जाते | अंत में फैसला हुआ कि हर कोई कुश्ती के लिए नहीं बना है किसी को ऊँची कूद तो किसी को भाला फेंकने  का खेल खेलना ज्यादा उचित है | वस्तुत : आज हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो गयी है कि सब चाहते हैं कि उनका बच्चा गणित व् विज्ञानं में अच्छा करके इंजीनियर बने पर क्या हर बच्चे की रूचि उसमें होती है ? किसी को कविता पसंद तो किसी को चित्रकारी | ये कहानी सांकेतिक भाषा में उसी समस्या का समाधान है | मुझे लगा किब्च्चों की ये कहानी बड़ों के लिए भी पढ़ना जरूरी है |

 

“वृक्ष कबहूँ नहीं फल चखे, नदी न संचै नीर “ को धत्ता बताते हुए नीम के पेड़ ने बगावत करी और प्रकृति माँ ने उसे श्राप भी दे डाला | अब हैरान परेशान नीम ने बहुत अनुनय –विनय करी तब जा कर …| अब प्रकृति माँ ने क्या वरदान दिया ये तो कहानी पढ़ कर ही पता चलेगा |‘डस्टबिन में पेड़’ कागज़ और पेंसिल की बर्बादी पर लगाम लगाने की बात करती है तो पेड़ की गुहार पेड़ काटने का विरोध | पुस्तकों से दोस्ती पढ़ने  की आदत विकसित करने पर जोर देती है | दादी का समर कैम्प बच्चो के अन्दर छिपी रचनात्मकता को विकसित करने के लिए की गयी पहल है | बच्चों को मोबाइल –लैप टॉप से निकालने की पहल बड़ों को ही करनी होगी | ऐसी ही हर कहानी रुचिकर व् शिक्षा प्रद है | क्लाहनियों के साथ उनके अनुसार चित्र भी हैं जो कहानी को विस्तार देते हैं व् मन को आनंद | उम्मीद है ये किताब १० -११ साल तक  की उम्र तक के बच्चों को बहुत पसंद आएगी | विकास प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब का मूल्य है 250 रुपये |

“डस्टबिन में पेड़” के लिए आशा शर्मा जी को हार्दिक शुभकामनाएं

वंदना बाजपेयी

समीक्षा- वंदना बाजपेयी

 

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