कॉफी, ताज और हरी आंखों वाला लड़का!

1

सुधांशु गुप्त जी की कई कहानियाँ पढ़ी हैं और पसंद भी की | उनकी कहानियों में एक खास बात है कि उसका एक बड़ा हिस्सा मन के अन्दर चलता |उनकी कलम किसी खास परिस्थिति में व्यक्ति के मन में चल रहे अंतर्द्वंद को पकडती हैं और उन्हें शब्दश: उकेर देती है | उनकी कहानियों में संवाद इतने नहीं होते जितने मन में बादलों की तरह घुमड़ते हुए विचार होते हैं |मन के अंदर का अंतर्दावंद बेपर्दा होता चलता है | कई बार पाठक हतप्रभ होता है कि अरे ऐसा ही तो सोचते हैं हम |  सच ही तो है कितनी कहानियाँ हमारे मन के अंदर चलती रहती हैं कुछ आगे बढती हैं और कुछ हथेली पर चाँद उगाने जैसे दुरूह स्वप्न की तरह दम तोड़ देती हैं | फिर भी उनका अंत मुक्कमल होता है, हकीकत के करीब | यूँ तो शब्द हमारी भावनाओं को व्यक्त करने में सहायक है पर जो कहा नहीं जाता वो ज्यादा शोर मचाता है …व्यक्ति के मन में भी और पाठक के मन में भी | ऐसी ही कहानी है “कॉफ़ी,  ताज और हरी आँखों वाला लड़का” | कॉफ़ी, ताज और हरी आँखों वाला लड़का तीनों ही इस कहानी के विशेष अंग हैं |  जितना खूबसूरत ये नाम है , कहानी भी उतनी ही खूबसूरत है | जहाँ प्रेम है पर अव्यक्त है, इंतज़ार है पर मैं पहले फोन क्यों करूँ का भाव भी है, कसक है पर शुभकामनायें भी | देखा जाए तो कॉफ़ी एक प्रतीक्षा है ताज एक रूमानी कल्पना तो हरी आँखों वाला लड़का एक हकीकत | कहानी में जान डालती हुई कहीं परवीन शाकिर की पंक्तियाँ हैं तो कहीं पुश्किन की | वैसे तो ये एक खूबसूरत शिल्प में सजी ये महज एक कहानी है पर हो सकता है कि फेसबुक इस्तेमाल करने वाले कई लोगों की हकीकत भी हो | तो आइये रूबरू होते हैं …

कॉफी, ताज और हरी आंखों वाला लड़का!

तीन दिन हो गए उससे बात हुए। आमतौर पर ऐसा नहीं होता। एक दो दिन में वह ख़ुद फोन कर लेता है या उसका फोन आ जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। चाहता तो वह फोन कर सकता था। लेकिन परवीन शाकिर उसे फोन करने से रोकती रहीं। परवीन शाकिर मतलब उनकी कुछ लाइनें-मैं क्यों उसको फोन करूं, उसके भी तो इल्म में होगा, कल शब मौसम की पहली बारिश थी। इसमें पहली लाइन ही उसे काम की लगी। कई बार उसने मोबाइल करने की कोशिश भी कि फिर हाथ पीछे खींच लिए। सोचा क्या बात करेगा। यह भी सोचा कि शायद उसी का फोन आ जाए। जब भी वह ‘मैं क्यों उसको फोन करूं’ की जिद पालता है, उसका फोन आ जाता है। कोई भी गांठ पड़ने से पहले ही गांठ खुल जाती है। कई बार ऐसा भी हुआ कि उसके दिल ने चाहा कि उसका फोन आ जाए और उसका फोन आ गया।

वह फोन को बड़ी शिद्दत से देख रहा है। उसका मन कह रहा है कि उसका फोन बस आने वाला ही होगा। पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है। उसके पास बताने के लिए कुछ ख़ास नहीं है। शायद इस बार बताने के लिए उसके पास ही कुछ हो। वह मोबाइल को देख रहा है। देखे जा रहा है। मानो मोबाइल को नहीं उसे ही देख रहा हो। अचानक उसे अहसास हुआ कि उसका फोन बज रहा है। साइलेंट पर होने की वजह से उसे आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। स्क्रीन पर उसका नाम फ्लेश हो रहा था-वन की देवी।

‘हैलो…कितनी देर से बेल जा रही है…आप कहीं बिजी हैं क्या…’

‘अरे नहीं…वो फोन साइलेंट पर था, इसलिए ध्यान नहीं दिया। बताइये क्या हाल हैं, कैसा चल रहा है सब…’

‘मैं अच्छी हूं और सब यथावत चल रहा है, नथिंग न्यू..आप बताओ’

‘यहां भी सब ठीक ही चल रहा है…एक कहानी लिखने की सोच रहा हूं…’

‘अरे मैं आपको बताना ही भूल गई…आपकी जो कहानी मैं उत्तर प्रदेश पत्रिका में भेजी थी, वह छप गई है…मैं अभी उसका फोटो आपको व्हाट्स अप पर भेज दूंगी…’

‘थैंक्यू वैरी मच अन्वि जी…’

‘सिर्फ थैंक्यू से काम नहीं चलेगा…एक कॉफी पिलानी पड़ेगी…’

‘कॉफी का तो हमारा बहीखाता चल ही रहा है…उसमें जोड़ दो मेरी तरफ एक कॉफी ड्यू हो गई..’

‘वो तो मैं जोड़ ही दूंगी…लेकिन कॉफी मेरी तरफ ही निकलेंगी…’

‘उसमें कोई दिक्कत नहीं है…बस हिसाब बराबर नहीं होना चाहिए…’

‘सच में हिसाब बराबर नहीं होना चाहिए…आपकी तरफ ड्यू हो या मेरी तरफ…लेकिन खाता चलते रहना चाहिए…’

‘हां खाता तो चलना ही चाहिए….और बताइये कुछ नया लिखा…’

‘नहीं, अभी तो पुराना ही एन्ज्वॉय कर रही हूं…आपने कोई कहानी लिखी…’

‘मैंने भी नहीं लिखी, लेकिन सोच रहा हूं, जल्दी ही आपको नई कहानी पढ़ने को मिलेगी…’

‘गुड…कहानी लिखकर सबसे पहले मुझे ही मेल करना…’

‘बिल्कुल, आपको ही करूंगा…,’ और कौन है जिसे कहानी मेल की जा सके, यह उसने सोचा, कहा नहीं।

‘मैं तो आजकल पुश्किन की कविताएं पढ़ रही हूं…मुझे यह पढ़कर आश्चर्य हुआ कि महज 37साल की उम्र में वह मर गया और पूरी दुनिया में अपनी कविताओं के लिए जाना जाता है…’

‘पुश्किन बड़े कवि हैं…उनकी कुछ पंक्तियां सुनाऊं..’

‘बिल्कुल सुऩाइये…इसमें पूछने की भला क्या बात है’

‘विदा, प्रिय प्रेम पत्र, विदा, यह उसका आदेश था, तुम्हें जला दूं मैं तुरंत ही, यह उसका संदेश था, कितना मैंने रोका ख़ुद को, कितनी देर न चाहा, पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न छोड़ी राह…’

‘वाह…क्या बात है…बहुत सुंदर…’

‘और भी बहुत सारी कविताएं हैं….’

‘चलिए आप पढ़िए..और अच्छी कविताएं शेयर करिए…’

‘वो तो करूंगी ही..अभी फिलहाल मैं आपकी कहानी भेज रही हूं व्हाट्स अप पर..’

‘जी शुक्रिया…’

‘शुक्रिया की कोई बात नहीं है आकाश…आपकी तरफ एक कॉफी लिख दी है मैंने….अब एक दो रोज़ में बात होगी…बॉय…’

‘बॉय…’ उधर से फोन कट गया और वह फोन को हाथ में लिए इस तरह बैठा रहा मानो अभी बहुत कुछ कहना शेष हो।

अब उसके पास करने को कुछ भी शेष नहीं है। आज उसकी छुट्टी है। अख़बार में नौकरी करने वालों के लिए छुट्टी  मुश्किल से बीतती है। वह दिल्ली में रहता है, सूचनाओं की नगरी में। एक अखबार में साहित्य का पेज देखता है। अन्वि आगरा में रहती है। यहां से 200-250 किलीमीटर दूर। ताजमहल आगरा में ही है। पता नहीं उसने ताजमहल देखा होगा या नहीं। अगर देखा होगा तो दुनिया भर में प्रेम की निशानी के रूप में जाने जाने वाले ताज को देखकर उसके मन में क्या आया होगा।

अन्वि से आकाश की जान-पहचान भी अजीब तरह से हुई थी। एक दिन उसने फेसबुक पर देखा तो अन्वि उसकी फ्रैंड लिस्ट में शामिल थी। पता नहीं अन्वि ने उसे रिक्वेस्ट भेजी थी या उसने। लेकिन दोनों इनबॉक्स में कभी कभार हैलो-हाय करने लगे थे। अन्वि की पोस्ट्स से ही आकाश को यह पता चला कि अन्वि कविताएं लिखती है। वह उसकी कविताएं रुचि लेकर पढ़ने लगा। उसे अन्वि की कविताओं में एक बात ख़ास लगती वह चीजों को बहुत ठोस ढंग से देखने की आदी नहीं है। प्रेम पर लिखी उसकी कविताएं भी दर्शन लिए होती हैं। वह प्रेम को क्रांतियों को बदलाव को सड़क के उस किनारे पर देखती है, जहां सड़क मुड़ रही होती है। उसकी कविताएं पढ़कर लगता है वह सपनों में जीती है और कविताएं वह ख़ुद नहीं लिखती बल्कि उसक अवचेतन लिखता है। अन्वि के पास ख़ूबसूरत भाषा है और नय़ा मुहावरा है। इन सबके साथ ही उसका पास मौलिक विचार है। वह राजनीतिक सोच की कविताएं भी लिखती है। प्रेम अन्वि के यहां सशरीर नहीं आता। वह आमतौर पर वायवीय ही रहता है। वह ख़ुद भी बहुत एब्स्ट्रेक्ट कहानियां लिखता है। अच्छी बात यह है कि अन्वि को उसकी कहानियां पसंद आती हैं।

अन्वि कविताएं लिखती है और वह कहानियां। फेसबुक पर दोनों शेयर करते हैं। वह अपनी कहीं छपी कहानी शेयर करता है तो अन्वि का पहला कमेंट आता है। अन्वि कुछ शेयर करती है तो वह सबसे पहले कमेंट करने की कोशिश करता है। बस इतनी सी बात है।

इस सबकी शुरुआत को एक साल से ज्यादा हो गया है। एक दिन फेसबुक से ही उसे जानकारी मिली कि अन्वि का कविता संग्रह ‘फुनगियों को छूकर लौटा बसंत’ प्रकाशित होने वाला है। विश्व पुस्तक मेले, प्रगति मैदान में उसका विमोचन होगा। इसका अर्थ हुआ कि अन्वि भी दिल्ली शहर में आएगी, उसके शहर में। विमोचन की सूचना तो यही बता रही थी। उसे खुशी हुई। पता नहीं अन्वि के कविता संग्रह के प्रकाशित होने की या अन्वि के दिल्ली आने की। ज़ाहिर है दिल्ली आई तो तब तो मुलाकात जरूर होगी। किताबों से उसे प्रेम है। वह जरूर पुस्तक मेले में जाएगा। कोशिश करेगा कि विमोचन से पहले ही उसका संग्रह खरीद ले और जब अन्वि से मिले तो कविताओं के बारे में बात कर सके। उसने यही किया। वह पूरी तरह तैयार होकर प्रगति मैदान पहुंच गया। अन्वि की किताब के विमोचन से पहले उसने जाकर ‘फुनगियों को छूकर लौटा बसंत’ खरीद ली। पूरी रात बैठकर वह कविताएं पढ़ता और सोचता रहा। कविताएं उसे सचमुच बहुत अच्छी लगी थीं। विमोचन में वह भी अन्वि की सारी कविताएं पढ़कर गया। उसने सोचा था कि अगर उसे कुछ बोलने का मौका मिले तो वह अच्छा बोल पाए। लेकिन…

विमोचन में उसने पहली बार अन्वि को देखा। वह बहुत सुंदर थी। वह अकेली नहीं थी। उसके साथ और भी कई लोग थे। अन्वि ने उसे पहचान लिया था और उसने भी अन्वि को पहचान लिया था। लेकिन वह और लोगों के साथ थी। आंखों ने ही एक दूसरी को विश किया। मुश्किल से उसे दो मिनट का समय मिला था अन्वि से बात करने का।

उसने उसे देखकर कहा, ‘यार इतना सुंदर भी कोई होता है क्या…’

वह हंस दी। उसने कहा, ‘आप सिर्फ बाहरी सुंदरता देख रहे हैं…अच्छा अब मैं चलती हूं…आप कविताएं पढ़िए फिर फोन पर बात होगी।’

कागज़ की एक चिट पर उसने अपना नंबर दिया था। उसने मेरा नंबर नहीं मांगा था। वह जानती थी कि मैं उसे फोन अवश्य करूंगा। इससे मेरा नंबर भी उसके पास तक पहुंच जाएगा।

अन्वि चली गई थी। वह हतप्रभ सा खड़ा देखता रह गया था।

कई दिन उसने अन्वि को फोन नहीं किया। वह उसके कविता संग्रह को कई बार पढ़ चुका था। उसने अब तक का सारा ज्ञान उसकी समीक्षा में डाल दिया। अनेक विदेशी कवियों के उद्धरण उसने समीक्षा में इस्तेमाल किए। समीक्षा उन्हीं के साहित्यिक पेज पर छप कर आ गई। अब उसके पास फोन करने का उचित अवसर थ। उसने फोन मिलाया।

पहली ही बेल पर फोन उठ गय।

‘हेलो…आप अन्वि बोल रही हैं’

‘जी आकाश जी…अन्वि ही बोल रही हूं….लेकिन आपने इतने दिन फोन क्यों नहीं किया..’

‘मैं आपकी कविताएं पढ़ता और समझता रहा…’

‘यह तो अच्छी बात है…मुझसे बात करने से भी ज्यादा जरूरी है मेरी कविताएं पढ़ना और समझना…’ यह कहकर वह हंसने लगी।

‘आपकी किताब पर मैंने समीक्षा लिखी है…हमारे यहां साहित्यिक पेज पर छपी है…मैं अभी आपको उसकी फोटो व्हाट्स अप करता हूं…’

‘अरे वाह…शुक्रिया आपका बहुत बहुत….आपने लिखी है तो अच्छी ही लिखी होगी…’

‘शुक्रिया की कोई आवश्यकता नहीं है, बस एक कप कॉफी पिला दीजिए…’

‘जरूर, आपकी एक कॉफी मेरी तरफ ड्यू हो गई…आप जब चाहें पी सकते हैं।’

इस तरह अन्वि से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। कभी वह उसकी कहानी छपवाने में सहायता करती और कभी वह खुद उसकी कविताएं यहां-वहां प्रकाशित करवाता। हर बार कभी अन्वि की तरफ कॉफी ड्यू हो जाती और कभी ख़ुद उसकी तरफ। कॉफी का हिसाब रखने की जिम्मेदारी उसने अन्वि पर ही डाल दी। इस तरह कॉफी के सहारे दोनों के बीच बातचीत होती रही, आगे बढ़ती रही। वह अक्सर सोचता कि अन्वि बहुत ख़ूबसूरत है। उसके हाथ, उसकी पतली-पतली उंगलियां (पुस्तक मेले में उससे हाथ मिलाने पर उसे अहसास हुआ था), उसका हर समय मुस्कराता चेहरा, कंधों पर झूलते बाल और कुछ कुछ शरारती सी आंखें। उसने कहीं पढ़ा था, किशमिश का कोई दाना ऐसा नहीं होता जिसकी पीठ पर तिनका न हो। तो क्या वह भी किसी से….बातचीत में उसने यह भी पाया कि अन्वि ज़हनी तौर पर भी बेपनाह ख़ूबसूरत है। उसकी उम्र मुश्किल से 25-26 साल होगी। लेकिन कविताओं में उसकी परिपक्वता देखते ही बनती है। उसकी बातों में कहीं कोई उच्छृंखला या तर्कहीनता नहीं है। अन्वि अच्छी लड़की है। बहुत अच्छी लड़की। लेकिन एक और बात वह बराबर नोट कर रहा था कि अन्वि और उसके बीच कहीं कुछ है, जो दोनों को एक दूसरे से खुलने से रोक रहा है। ऐसा लगता था मानो सब कुछ कहीं ठहरा हुआ हो। बसंत फुनगियों को छूकर लौट रहा हो।

समय इसी तरह गुज़रता रहा। किसी भी रिश्ते के बारे में कहा जाता है कि या तो वह आगे बढ़ रहा होता या वापस लौट रहा होता है। लेकिन अन्वि से उसका रिश्ता एक ही मोड़ पर ठहरा हुआ था। यह भी सच है कि इस रिश्ते को आगे बढ़ाने की कोई पहल न उसने की थी और न अन्वि ने। अख़बार की नौकरी में आपका व्यस्त होना या फ्री होना आपके हाथ में नहीं होता। उसे अख़बार में कुछ और नई जिम्मेदारियां दे गईं। वह पहले से ज्यादा बिजी हो गया। एक दिन उसने पाया कि अन्वि से कई दिनों से बात नहीं हुई है। न उसने फोन किया और न अन्वि का कोई फोन आया। कहीं कुछ नया हुआ भी नहीं था जो अन्वि को फोन करके बताया जाए। अगर आगरा में कुछ नया होता तो अन्वि जरूर उसे फोन करती। यह भी उसने नोट किया कि अब अन्वि को फोन तब नहीं आता, जब उसकी इच्छा होती है। पहले तो जब उसके मन में अन्वि से बात करने की इच्छा जागृत होती थी, अन्वि का फोन आ जाता था। लेकिन अब…कहीं अन्वि बीमार तो नहीं हो गई…या कोई और बात हो गई हो। उसने अन्वि को फोन करने के लिए मोबाइल उठाया। लेकिन फिर उसके ज़हन में परवीन शाकिर की लाइनें तैरने लगीं, मैं क्यों उसको फोन करूं…। वह कुछ और सोचता, तभी मोबाइल स्क्रीन पर वन की देवी नाम फ्लैश होने लगा। उसने फुर्ती से फोन उठाया।

‘अरे कहां गायब हो गई थीं आप…कितने दिन से आपने फोन नहीं किया…’

‘मैं प्रेम कर रही थी…’

‘मतलब…’

‘मतलब ये कि मुझे किसी से प्रेम हो गया है…’

एक सेकेंड के लिए उसक दिल तेजी से धड़का, लेकिन फिर वह सामान्य हो गया।

‘किससे प्रेम हो गया…’

‘है एक ल़ड़का…हरी आंखों वाला…मैं तो उसे देखते ही उस पर फिदा हो गई…मुझे लगा कि यह बसंत फुनगियों को छूकर ही नहीं लौट जाएगा..रुकेगा मेरे पास.. ’

‘यह तो अच्छी बात है’

‘हमने अपने अपने घरवालों से एक दूसरे को मिलवाया…और हमारी शादी तय हो गई…सच कहूं आकाश बहुत प्यारा इंसान है वह हरी आंखों वाला लड़का…यहीं आगरा में रहता है..’

‘बहुत सारी बधाई वन की देवी….’

‘थैंक्यू वैरी मच आकाश…यू नो आई एम वैरी हैप्पी..’

‘थैंक्यू से काम नहीं चलेगा…’

‘तब…’

‘कॉफी पिलानी पड़ेगी…इतनी जल्दी भूल गईं’

‘सचमुच इस प्रेम ने सब कुछ भुला दिया….’

‘तब तो आप कॉफी का हिसाब किताब भी भूल गई होंगी…’

‘नई..ई…ई…कुछ दिन पहले मैंने देखा था…हिसाब बिल्कुल बराबर था…’

पता नहीं क्यों उसका मन ख़राब सा हुआ। उसने संयम से काम लिया।

‘चलिए कोई बात नहीं….विवाह की आपको बहुत शुभकामनाएं…लेकिन विवाह के बाद मेरी एक बात मान लेना…’

‘कौन सी बात’

‘हरी आंखों वाले लड़के के साथ ताज देखने जरूर जाना…’

‘ओह श्योर…पक्का…।’

 

सुधांशु गुप्त

परिचय

1962 में, 13नवंबर को दिल्ली में जन्म। लगभग तीन दशक पत्रकारिता में ग़ुजारने के बाद अब स्वतंत्र लेखन। पत्रकारिता आजीविका रही और लेखन जीवन। सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित। अनेक कहानियों का रेडियो से प्रसारण। अनेक क्षेत्रीय भाषायों के साहित्यिक उपन्यासों का रेडियो रूपांतरण किया। वीडियो के लिए भी अनेक धारावाहिक लिखे। खाली कॉफी हाउस, उसके साथ चाय का आख़िरी कप और स्माइल प्लीज़ नाम से तीन कहानी संग्रह प्रकाशित। लेखन मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन जीवन से बढ़कर नहीं।

यह भी पढ़ें ………

पहचान


कोबस -कोबस

नीलकंठ


घरेलु पति

 

आपको  कहानी   “कॉफ़ी , ताज और हरी आँखों वाला लड़का ”  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

filed under- free read, hindi story, love story, sudhanshu gupt, tajmahal, green eyes

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here