अरविन्द कुमार खेड़े की कवितायेँ

1
                   

अरविन्द कुमार खेड़े की कवितायेँ

अरविन्द जी की कविताओं में एक बेचैनी हैं ,जहाँ वो खुद को व्यक्त करना चाहते हैं।  वही उसमें एक पुरुष की समग्र दृष्टि पतिबिम्बित होती है ,”छोटी -छोटी खुशियाँ “में तमाम उत्तरदायित्वों के बोझ तले  दबे एक पुरुष की भावाभिव्यक्ति है. बिटिया में  सहजता से कहते हैं की बच्चे ही माता -पिता को  वाला सेतु होते हैं। ………कुल मिला कर अपनी स्वाभाविक शैली में वो  कथ्य को ख़ूबसूरती से व्यक्त कर पाते हैं। आइये आज “अटूट बंधन” पर पढ़े अरविन्द खड़े जी की कविताएं ……………

  अरविन्द कुमार खेड़े की कवितायेँ   


1-कवितापराजित होकर लौटा हुआ इंसान
——————————————
पराजित होकर लौटे हुए इंसान की
कोई कथा नहीं होती है
कोई किस्सा होता है
वह अपने आप में
एक जीताजागता सवाल
होता है
वह गर्दन झुकाये बैठा रहता है
घर के बाहर
दालान के उस कोने में
जहॉ सुबहशाम
घर की स्त्रियां
फेंकती है घर का सारा कूड़ाकर्कट
उसे भूख लगती
प्यास लगती है
वह जीता है
मरता है
जिए तो मालिक की मौज
मरे तो मालिक का शुक्रिया
वह चादर के अनुपात से बाहर
फैलाये गए पाँवों की तरह होता है
जिसकी सजा भोगते हैं पांव ही.

                      
2-कवितातुम कहती हो कि…..
———————————
तुम कहती हो कि
तुम्हारी खुशियां छोटीछोटी हैं
ये कैसी
छोटीछोटी हैं खुशियां हैं
जिनकी देनी पड़ती हैं
मुझे कीमत बड़ीबड़ी
कि जिनको खरीदने के लिए
मुझे लेना पड़ता है ऋण
चुकानी पड़ती हैं
सूद समेत किश्तें
थोड़ा आगापीछा होने पर
मिलते हैं तगादे
थोड़ा नागा होने पर
खानी पड़ती घुड़कियां
ये कैसी
छोटीछोटी हैं खुशियां हैं
कि मुझको पीनी पड़ती है
बिना चीनी की चाय
बिना नमक के भोजन
और रात भर उनींदे रहने के बाद
बड़ी बैचेनी से
उठना पड़ता है अलसुबह
जाना पड़ता है सैर को
ये कैसी
छोटीछोटी हैं खुशियां हैं
कि तीजत्योहारों
उत्सवअवसरों पर
मैं चाहकर भी
शामिल नहीं हो पाता हूँ
और बाद में मुझे
देनी पड़ती है सफाई
गढ़ने पड़ते हैं बहानें
प्रतिदान में पाता हूँ
अपने ही शब्द
ये कैसी
छोटीछोटी हैं खुशियां हैं
कि बंधनों का भार
चुका  नहीं पाता हूँ
दिवाली जाती है
एक खालीपन के साथ
विदा देना पड़ता है साल को
और विरासत में मिले
नए साल का
बोझिल मन से
करना पड़ता है स्वागत
भला हो कि
होली जाती है
मेरे बेनूर चेहरे पर
खुशियों के रंग मल जाती है
उन हथेलियों की गर्माहट को
महसूसता हूँ अपने अंदर तक
मुक्त पाता हूँ अपने आप को
अभिभूत हो उठता हूँ
तुम्हारे प्रति
कृतज्ञता से भार जाता हूँ
शुक्र है मालिक
कि तुम्हारी खुशियां छोटीछोटी हैं

                                             
3-कविताजब भी तुम मुझे
————————-
जब भी तुम मुझे
करना चाहते हो जलील
जब भी तुम्हें
जड़ना होता है
मेरे मुंह पर तमाचा
तुम अक्सर यह कहते हो
मैं अपनी हैसियत भूल जाता हूँ
भूल जाता हूँ अपने आप को
और अपनी बात के
उपसंहार के ठीक पहले
तुम यह कहने से नहीं चुकते
मैं अपनी औक़ात भूल जाता हूँ
जब भी तुम मुझे
नीचा दिखाना चाहते हो
सुनता हूँ इसी तरह
उसके बाद लम्बी ख़ामोशी तक
तुम मेरे चेहरे की ओर
देखते रहते हो
तौलते हो अपनी पैनी निगाहों से
चाह कर भी मेरी पथराई आँखों से
निकल नहीं पाते हैं आंसू
अपनी इस लाचारी पर
मैं हंस देता हूँ
अंदर तक धंसे तीरों को
लगभग अनदेखा करते हुए
तुम लौट पड़ते हो
अगले किसी
उपयुक्त अवसर की तलाश में.
4-कविताउस दिनउस रात……
——————————–
उस दिन अपने आप पर
बहुत कोफ़्त होती है
बहुत गुस्सा आता है
जिस दिन मेरे द्वार से
कोई लौट जाता है निराश
उस दिन मैं दिनभर
द्वार पर खड़ा रहकर
करता हूँ इंतजार
दूर से किसी वृद्ध भिखारी को देख
लगाता हूँ आवाज
देर तक बतियाता हूँ
डूब जाता हूँ
लौटते वक्त जब कहता है वह
तुम क्या जानो बाबूजी
आज तुमने भीख में
क्या दिया है
मैं चौंक जाता हूँ
टटोलता हूँ अपने आप को
इतनी देर में वह
लौट जाता है खाली हाथ
साबित कर जाता है मुझे
कि मैं भी वही हूँ
जो वह है
उस दिन अपने आप पर……
उस रात
मैं सो नहीं पाता हूँ
दिन भर की तपन के बाद
जिस रात
चाँद भी उगलता है चिंगारी
खंजड़ी वाले का
करता हूँ इंतजार
दूर से देख कर
बुलाता  हूँ
करता हूँ अरज
खंजड़ी वाले
आज तो तुम सुनाओ भरथरी
दहला दो आसमान
फाड़ दो धरती
धरा रह जाये
प्रकृति का सारा सौंदर्य
वह एक लम्बी तान लेता है
दोपहर में सुस्ताते पंछी
एकाएक फड़फड़ा कर
मिलाते है जुगलबंदी
उस रात…….



                        
५ बिटिया ——–
बिटिया मेरी,
सेतु है,
बांधे रखती है,
किनारों को मजबूती से,
मैंने जाना है,
बेटी का पिता बनकर,
किनारे निर्भर होते हैं,
सेतु की मजबूती पर.

                          
अरविन्द कुमार खेड़े.



———————————————————————————————

1-परिचय
अरविन्द कुमार खेड़े  (Arvind Kumar Khede)
जन्मतिथि–  27 अगस्त 1973
शिक्षा–  एम..
प्रकाशित कृतियाँ– पत्रपत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्प्रतिप्रशासनिक अधिकारी लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग मध्य प्रदेश शासन.
पदस्थापनाकार्यालय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारीधारजिलाधार .प्र.
पता– 203 सरस्वती नगर धार मध्य प्रदेश.
मोबाईल नंबर– 9926527654
ईमेल– arvind.khede@gmail.com 


आत्मकथ्य
 मैं बहस का हिस्सा हूँ मुद्दा हूँ….मैं पेट हूँ….मेरा रोटी से वास्ता है….”
…………………………………………………………………………………………………………….

आपको    ”  अरविन्द कुमार खेड़े की कवितायेँ   “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य
व्यक्त करें
| हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद
आती हैं तो कृपया हमारा
  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके
इ मेल पर भेज सकें
|
filed
under: , poetry, hindi poetry, kavita

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here