मीना कुमारी की बेहतरीन गजलें

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                                        ट्रेजिडी क्वीन मीना कुमारी जी के अभिनय का भला कौन मुरीद न होगा | पर परदे  की ट्रेजिडी क्वीन मीना कुमारी की निजी जिंदगी भी दुखों से भरी थी | इन्हीं ग़मों को जब वो कागज़ पर उतारती जो जैसे हर शब्द आँसुओ से भीगा हुआ लगता | उनकी वेदना पढने वाले को अन्दर तक झकझोर देती | ये कहना  अतिश्योक्ति नहीं होगी की वो जितनी अच्छी अदाकारा थी उतनी ही अच्छी ग़ज़ल कारा भी | आज हम उनकी कुछ चुनिन्दा गजलें आप के लिए लाये हैं …….. पढ़िए और शब्दों की गहराई में डूब जाइए 





चाँद तन्हा है आसमान तन्हा




चाँद तन्हा है आसमान
तन्हा 


दिल मिला है कहाँ
कहाँ तन्हा 

बुझ गई आस छुप गया
तारा

 
थर-थराता रहा धुंआ
तन्हा

ज़िंदगी क्या इसी को
कहते हैं



जिस्म तन्हा है और
जान तन्हा 

हमसफ़र कोई गर मिले
भी कहीं 



दोनों चलते रहे
तन्हा तन्हा 

जलती बुझती सी रौशनी
के परे



सिमटा सिमटा सा एक
मकान तन्हा

राह देखा करेगा
सदियों तक 



छोड़ जायेंगे ये जहां
तन्हा
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे



  यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे

काँधे पे अपने रख के
अपना मज़ार गुज़रे  

बैठे रहे हैं रास्ता
में दिल का खंडहर सजा कर  

शायद इसी तरफ से एक
दिन बहार गुज़रे  

बहती हुई ये नदिया
घुलते हुए किनारे  

कोई तो पार उतरे कोई
तो पार गुज़रे  

तू ने भी हम को देखा, हमने भी तुझको
देखा
  

तू दिल ही हार
गुज़रा, हम जान हार
गुज़रे
 




पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है



पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है  
रात खैरात की सदके की सहर होती है  

सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब  
दिल ही दुखता है न अब आस्तीन तर होती है  

जैसे जागी हुई आँखों में चुभें कांच के ख़्वाब  
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है  

गम ही दुश्मन है मेरा, गम ही को दिल ढूँढ़ता है  
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है  

एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुश्बू  
कभी मंजिल कभी तम्हीद-ए-सफ़र होती है  
मायने:
मरकज़=फोकस करना;
तम्हीद=आरम्भ 




हाँ, कोई और होगा


हाँ, कोई और होगा
तूने जो देखा होगा


हम नहीं आग से
बच-बचके गुज़रने वाले

न इन्तज़ार, न आहट, न तमन्ना, न उम्मीद



ज़िन्दगी है कि यूँ
बेहिस हुई जाती है

इतना कह कर बीत गई
हर ठंडी भीगी रात



सुखके लम्हे, दुख के साथी, तेरे ख़ाली हात

हाँ, बात कुछ और थी, कुछ और ही बात
हो गई



और आँख ही आँख में
तमाम रात हो गई

कई उलझे हुए ख़यालात
का मजमा है यह मेरा वुजूद



कभी वफ़ा से शिकायत
कभी वफ़ा मौजूद

जिन्दगी आँख से टपका
हुआ बेरंग कतरा



तेरे दामन की पनाह
पाता तो आँसू होता







सुबह से शाम तलक




सुबह से शाम तलक
दुसरों के लिए कुछ
करना है


जिसमें ख़ुद अपना
कुछ नक़्श नहीं

रंग उस पैकरे-तस्वीर
ही में भरना है

ज़िन्दगी क्या है, कभी सोचने
लगता है यह ज़हन

और फिर रूह पे छा
जाते हैं

दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके
ख़्याल आता है

ज़िन्दगी यह है तो
फिर मौत किसे कहते हैं?

प्यार इक ख़्वाब था, इस ख़्वाब की
ता
बीर न पूछ

क्या मिली
जुर्म-ए-वफ़ा की ताबीर न पूछ


ये रात ये तन्हाई 


ये रात ये तन्हाई 
ये दिल के धड़कने की आवाज़ 
ये सन्नाटा 

ये डूबते तारों की  
खामोश ग़ज़ल-कहानी 
ये वक़्त की पलकों पर 
सोती हुई वीरानी 
जज़्बात-ए-मुहब्बत की  
ये आखिरी अंगडाई   
बजती हुई हर जानिब 
ये मौत की शहनाई 

सब तुम को बुलाते हैं 
पल भर को तुम आ जाओ 
बंद होती मेरी आँखों में 
मुहब्बत का 
इक ख़्वाब सजा जाओ 


टुकड़े-टुकड़े दिन बीता



टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी
रात मिली

जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात
मिली

रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और
अमृत भी

आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी
बरसात मिली

जब चाहा दिल को समझें, हँसने की
आवाज़ सुनी

जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली

मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ
पहर

दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ
मिली

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो
बात मिली
 



     आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा 


आबलापा कोई इस दश्त में आया होगा  
वरना आंधी में दिया किस ने जलाया होगा  
ज़र्रे ज़र्रे पे जड़े होंगे कुंवारे सजदे  
एक एक बुत को खुदा उस ने बनाया होगा  
प्यास जलते हुए काँटों की बुझाई होगी  
रिसते पानी को हथेली पे सजाया होगा  
मिल गया होगा अगर कोई सुनहरी पत्थर  
अपना टूटा हुआ दिल याद तो आया होगा  
खून के छींटे कहीं पोछ न लें राहों से  
किस ने वीराने को गुलज़ार बनाया होगा 
आबलापा=जिसके पैरो में छाले होदश्त=जंगल 


समस्त चित्र गूगल से 


प्रस्तुत सभी शायरी गुलज़ार द्वारा सम्पादित पुस्तक मीना कुमारी की शायरीसे साभार ली गयी है.

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