निराश लोगो के लिए आशा की किरण लेकर आता है वसंत

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जनवरी की कडकडाती
सर्दी फरवरी में धीरे-धीरे गुलाबी होने लगती है.इसी महीने में ऋतुराज वसंत का आगमन
होता है और 
वासंती हवा जैसे
ही तन-मन को स्पर्श करती है
,तो समस्त मानवता
शीत की ठिठुरी चादर छोड़कर हर्षोल्लास मनाने लगती
है,क्योंकि जिस तरह से यौवन मानव जीवन का वसंत है,उसी तरह से वसंत इस सृष्टि का यौवन है,इसीलिये वसंत ऋतु का आगमन होते ही
प्रकृति सोलह कलाओ में खिल उठती है. पौराणिक कथाओ में वसंत को कामदेव का पुत्र कहा
गया है.
शायद इसीलिये रूप
और सौन्दर्य के देवता कामदेव के पुत्र का स्वागत करने के लिए प्रकृति झूम उठती
है.पेड़ उसके लिए 
नवपल्लव का पालना
डालते हैं
,फूल वस्त्र पहनाते हैं,पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनकर बहलाती
है.

  वसंत ऋतु निराश लोगो के लिए आशा की किरण लेकर
भी आती है.पतझड़ में वृक्षों के पत्तो का गिरना और सृष्टि का 
पुन नवपल्लवित
होकर फिर से निखर जाना निराशा से घिरे हुए मानव को यह सन्देश देता है कि इसी तरह
वह भी
अपने जीवन में से
दुःख और अवसाद के पत्तो को झाड़कर फिर से नवसृजन कर सकता है.जिन्दगी का हर पतझड़ यह 
इंगित करता है कि
पतझड़ के बाद फिर से नए पत्ते आयेंगे
,फिर से फल लगेंगे और सुखो की बगिया फिर से लहलहा
उठेगी.
 फरवरी का दूसरा सप्ताह आते-आते वेलेंटाइन डे का
शोर भी मच जाता है.वेलेंटाइन डे के पक्ष-विपक्ष में तर्कों-दलीलों का 
संग्राम सा छिड़
जाता है.युवाओ का एक वर्ग इसे अपनी आजादी से जोड़कर देखता है
,तो वही समाज का एक वर्ग इसे भारतीय संस्कृति
पर कुठाराघात मानता है.कोई इसे आधुनिक संस्कृति कहता है
,तो कोई पाश्चात्य विकृति.कुल मिलाकर  भारतीय संस्कृति
हो या पाश्चात्य संस्कृति
,लेकिन फरवरी माह
प्रेमोत्सव से जुड़ा हुआ है.
प्रेम शब्द इतना
व्यापक है कि इसे पूरी तरह से परिभाषित कर पाना किसी के लिए भी मुश्किल है
,लेकिन दुर्भाग्य से मशीनीकरण और
बाजारवाद के आज के इस दौर में प्रेम शब्द की व्यापकता धीरे-धीरे संकीर्ण होकर
सिमटती जा रही है. 
महान दार्शनिक
ओशो के अनुसार आदमी के व्यक्तित्व के तीन तल हैं: उसका शरीर विज्ञान
, उसका शरीर, उसका मनोविज्ञान,
उसका मन और उसका अंतरतम या शाश्वत आत्मा। प्रेम
इन तीनों तलों पर हो सकता है लेकिन उसकी
गुणवत्ताएं अलग
होंगी। प्रेम जब सिर्फ शरीर  के तल पर होता
है
,तो वह प्रेम नहीं महज
कामुकता होती है
,लेकिन आजकल
ज्यादातर इसी
दैहिक आकर्षण को ही प्रेम समझा जा रहा है
,जिसकी वजह से प्रेम शब्द अपना मूल अर्थ खोता जा रहाहै.प्रेम की
वास्तविक परिभाषा उसके मूल स्वरुप पर चर्चा के लिए ही हमने अटूट बंधन का फरवरी अंक
प्रेम विशेषांक 
के रूप में
निकालने का निर्णय लिया है.
पत्रिका के लिए
यह गौरव का विषय है कि अपने तीसरे पड़ाव पर ही पत्रिका का जनवरी अंक देश के प्रमुख
महानगरो के
56 बुकस्टालों पर
पहुँच गया और फरवरी अंक लगभग
100 से ज्यादा
बुकस्टालों पर उपलब्ध रहने की उम्मीद है.हमें पूरी 
उम्मीद है कि
पहले के तीन अंको की तरह ही इस अंक को भी आप सबका अपार स्नेह और आशीर्वाद मिलेगा.

ओमकार मणि त्रिपाठी 


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