नारी ~ब्रह्मा , विष्णु, महेश तीनों की भूमिका में

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पंकज “प्रखर ”
कोटा ,राजस्थान

नारी का व्यक्तित्व बहुत ही अद्भुत है | हमारे देश भारत ऐसी अनगिनत नारियों सेसुसज्जित है जिन्होंने अपने त्याग और तपस्या से देश के नाम को उनंचा किया है | माता के रूप में  इस देश को विवेकनन्द, महर्षि रमण ,अरविन्द घोष ,रामकृष्ण परमहंस ,दयानंद ,शंकराचार्य ,भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आज़ाद,सुभाष बाबु,वीर सावरकर जैसे महापुरुषों से अलंकृत किया है | ये देश आज भी गार्गी मदालसा,भारती,विध्योत्त्मा,अनुसूया,स्वयंप्रभा,सीता, सावित्री जैसी सतियों और विदुषियों को नही भूल पाया है |

मानव जाति ही नही अपितु ईश्वर भी नारी जाती का ऋणी है क्योकि, धर्म के सम्वर्धन और अधर्म के विनाश के लिए जब भी ईश्वर को अवतार लेना होता है तो उसे भी माँ के रूप में एक नारी की ही आवश्यकता होती है | जितना गौरवशाली इतिहास भारत वर्ष में मिलता है उतना,महान इतिहास समूचे विश्व में शायद ही किसी राष्ट्र का हो |

नारी वो जो पुरुष को जन्म देतीं है अपने आप को नारी से श्रेष्ठ समझने वाला पुरुष वर्ग ये बात भली भांति जान ले की  जो नारी पुरुष को जन्म दे सकती वो नारी संसार में कुछ भी करने में सक्षम है नारी यदि पुरुष की आज्ञाओं का पालन आर्तभाव और श्रद्धा से कर रही है तो इसका अर्थ बिलकुल भी ये नही है की वो कमजोर है |ये केवल परिवार और अपने पति के प्रति उसका प्रेम और सेवा भाव है जो उसे प्रकृति ने दिया है|

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नारी यदि पृकृति प्रदत्त इस गुण का त्याग कर दे तो न केवल परिवार अपितु समाज के महाविनाश का कारण  भी बन सकती है | रामायण में एक घटना आती है की जब देवासुर संग्राम चल रहा था तब उसमे युद्ध करते हुए राजा दशरथ मुर्छित हो गये,उस समय कैकयी ने ही अपनी सूझ-बुझ से उनके प्राणों की रक्षा की थी आगे चल कर ये ही कैकयी मंथरा के बरगला देने के कारन भ्रमित हुई और राम वनवास के समय राजा दशरथ की मृत्यु का कारण बनी |

नारी की तुलना यदि ब्रुह्मांड की तीन प्रमुख शक्तियों ब्रुह्मा ,विष्णु और महेश से की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी | जिस प्रकार ब्रह्मा सष्टि  सृजन करते है उसी प्रकार नारी भी वंश रेखा को सींचती है परिवार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है निश्चित रूप से स्त्री को परिवार का हृदय और प्राण कहा जा सकता है। परिवार का सम्पूर्ण अस्तित्व तथा वातावरण गृहिणी पर निर्भर करता है। यदि स्त्री न होती तो पुरुष को परिवार बनाने की आवश्यकता न रहती और न ही इतना क्रियाशील तथा उत्तरदायी बनने की। स्त्री का पुरुष से युग्म बनते ही परिवार की आधारशिला रख दी जाती है और साथ ही उसे अच्छा या बुरा बनाने की प्रक्रिया भी आरम्भ हो जाती है। परिवार बसाने के लिए अकेला पुरुष भी असमर्थ है और अकेली स्त्री भी, पर मुख्य भूमिका किसकी है, यह तय करना हो तो स्त्री पर ध्यान केन्द्रित हो जाता है।

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नारी विष्णुं की तरह परिवार का पालन पोषण करती है समूचे परिवार को एक सूत्र में बांधकर रखने की जिम्मेदारी भी उसी की है साथ ही सबकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना ये सब नारी का कार्यक्षेत्र है | माँ का स्नेह और संस्कारों से भावी पीढ़ी को सींचने का कार्य स्त्री ही करती है| पुरुष वर्ग केवल धनार्जन करता है लेकिन उसके प्रबंधन की बागडोर स्त्री के हाथ में होती है स्त्री चाहे साक्षर हो या निरक्षर पर हर स्त्री ये जानती है की पति की आय का उपयोग परिवार के लिए किस प्रकार हो सकता है, नारी अन्दरूनी व्यवस्था से लेकर परिवार में सुख- शान्ति और सौमनस्य के वातावरण को बनाये रखने का दायित्व भी निभाती है।

तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है परिवार को दूषित मनोवृत्तियों और समाज में फैली बुराइयों से अपने परिवार को सुरक्षित रखना पुरानो में भगवान् शिब को संहार करता बताया गया है| नारी भी परिवार में रहकर संहारक की भूमिका निभाती है जी हाँ नारी भी संहार करती है पर किसका ?

नारी संहार करती है परिवार में आई बुराइयों का आज के तनाव पूर्ण समय में जब पुरुष प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने आप को निसहाय अनुभव करता है तो वो उनसे छुटकारा पाने के लिए बुराइयों की और अगृसर होता है | शराब, जुआ, हताशा,निराशा आदि में पुरुष घिर जाता है |जिसके फलस्वरूप परिवार का पतन शुरू होता है| ऐसी परिस्थितियों में धन्य है भारतीय नारी जो पुरुष का साथ नही छोडती बल्कि अपने प्रेम और सूझ बुझ से पति को सन्मार्ग पर ले आती है, इसी कारन वो अर्धांगिनी कहलाती है | हालांकि पुरुष को सही मार्ग पर लाने के लिए उसे अग्निपथ पर चलना पढ़ता है ,कई कष्टों और पीढ़ाओं को झेलना पढ़ता है | लेकिन नारी हार नही मानती बच्चों में श्रेष्ठ संस्कारों के सिंचन से लेकर उन्हें आदर्श मानव ही नही अपितु महा मानव बनाने तक नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है |

इतिहास बड़े गर्व के साथ शिवाजी ,महाराना प्रताप जैसे शूरवीरों का नाम लेता है लेकिन इन सूरमाओं में वीरता और मात्रभूमि के प्रति अनन्य भक्ति का बीजारोपण करने वाली माँ नारी ही थी शिवाजी के पिता मुगलों के दरबार में ही काम करते थे| लेकिन शिवाजी की माँ ने शिवा को इसे संस्कार दिए जिसने मुगलों को एक बार नही अपितु अनेको बार मराठा शक्ति के सामने विवश कर दिया | महाराणा प्रताप की माता के ही संस्कार थे की मुगल सेना को कई बार महाराणा प्रताप से युद्ध में मुँह की खानी पड़ी और जीते जी मुगल महाराणा को पकड़ ही नही पाए |

 इस गौरवशाली इतिहास का श्रेय किसे जाता है “नारी ” को जिन्होंने न केवल ऐसे सूरमाओं को जन्म दिया अपितु श्रेष्ठ संस्कारों से सींचा | इतिहास में इसे अनेकों उदहारण भरे पड़े है जो सिद्ध करते है की नारी ही परिवार से लेकर समाज निर्माण, और समाज निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण में अपना मूक योगदान देती आई है |माँ न व् पत्नी के रूप में हम सब नारी के प्रेम व् त्याग को अपने घरों में देखते हैं | फिर क्यों नहीं हम उसे उसके अधिकारों को दे पाते हैं | यह सोंचना आवश्यक है |  

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