पौधे की फ़रियाद

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नन्हा सा था | तभी से तो इस घर में है | श्रीमती जुनेजा ने कितने प्यार से पाला था उसे , उसने भी तो माँ से कम नहीं समझा था उन्हें |उनका जरा सा स्पर्श पा कर कैसे ख़ुशी से झूम उठता था वह | पर अपने अंदर उठ रहे प्यार को इससे बेहतर तरीके से वो व्यक्त नहीं कर पाता  था | उसकी भी कुछ विवशताएँ थी | शारीरिक ही सही | पर प्यार तो प्यार होता है न | जिसकी अपनी ही भाषा होती है | जिसे बिना बोले बिना कहे लेने वाला व् देने वाला दोनों ही समझ लेते हैं |  पर इस बार ऐसा क्या हुआ ? न जाने क्यों श्रीमती . जुनेजा को छुट्टियों में मसूरी जाते समय उसका बिलकुल ख्याल नहीं आया |

जरूरी है असहमतियों में सहमत होना

                                    यह भी नहीं सोंचा बंद घर में कितनी तकलीफ होगी उसे | यूँ तो अकेलापन झेलने के लिए वो अभिशप्त है पर इतना दम घोंटू अकेलापन वो भी गर्मी के महीने में धूप में खड़े – खड़े | कितना रोया था , कितना चिल्लाया था वह | पर सुनता कौन |सब उसकी भाषा कहाँ समझ पाते हैं | तपती धूप  में सूरज जब उसकी रगों से जीवन की एक – एक बूँद खींच रहा था , तो कितनी देर तक वो पानी – पानी चिल्लाता रहा | पर सुनता कौन , कोई हो तो सुने न | प्यास के मारे कलेजा मुँह को आ रहा था | बस एक ही आस थी शायद दरवाजा खुल जाए और उसे भरपेट पानी पीने को मिले | पर भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया और उसने  तडप – तड़प कर प्यासे ही दम तोड़ दिया |

मृत्यु : शरीर नश्वर है पर विचार शाश्वत

                                 श्रीमती जुनेजा जब घूम – घाम कर ढेर सारी  शॉपिंग कर के लौटी , तब तक उसके प्रान पखेरू उड़ चुके थे | घबराकर श्रीमती जुनेजा ने ढेर भर पानी से उसे जैसे नहला दिया , परन्तु उसमें पुन: प्राण  न फूंक सकीं | हां ! सूखी मृत देह से ये आवाज़ जरूर आ रही थी की जब आप लोग हमें रोपते हो , प्रेम से सींचते हो तो छुट्टियों पर जाते समय क्यों नहीं हमारी देखभाल की जिम्मेदारी पड़ोसियों पर छोड़ जाते हो | जिससे आप भी आराम से छुट्टियां मनाओ और हम भी तड़प – तड़प कर न मरें |
“अपने पौधों का ख्याल रखिये ,  क्योंकि हर हत्या दिखाई नहीं देती |”


वंदना बाजपेयी 

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