कठिन रिश्ते : जब छोड़ देना साथ चलने से बेहतर लगे

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एक खराब रिश्ता एक टूटे कांच के गिलास की तरह होता है | अगर आप उसे पकडे रहेंगे तो लगातार चोटिल होते रहेंगे | अगर आप छोड़ देंगे तो आप को चोट लगेगी पर आप के घाव भर भी  जायेंगे – अज्ञात 

                                                                                     मेरे घर में  मेरी हम उम्र सहेलियां  नृत्य कर रही थी | मेरे माथे पर लाल चुनर थी |  मेरे हाथों में मेहँदी लगाई जा रही थी | पर आने जाने वाले सिर्फ मेरे गले का नौलखा  हार देख रहे थे | जो मुझे मेरे ससुराल वालों ने गोद भराई की रसम में दिया था | ताई  जी माँ से कह रही थी | अरे छुटकी बड़े भाग्य हैं तुम्हारे जो  ऐसा घर मिला तुम्हारी  नेहा को | पैसों में खेलेगी | इतने अमीर हैं इसके ससुराल वाले की पूछों मत | बुआ जी बोल पड़ी ,” अरे नेहा थोडा बुआ का भी ध्यान रख लेना , ये तो गद्दा भी झाड लेगी तो इतने नोट गिरेंगें की हम सब तर  जायेंगे | मौसी ने हां में हाँ मिलाई  और साथ में अर्जी भी लगा दी ,” जाते ही ससुराल के ऐशो – आराम में डूब जाना , अपनी बहनों का भी ख्याल रखना | बता रहे थे  उनके यहाँ चाँदी का झूला है कहते हुए मेरी माँ का सर गर्व से ऊँचा हो गया |  तभी मेरी सहेलियों   ने तेजी से आह भरते हुए कहा ,” हाय  शिरीष , अपनी मर्सिडीज में क्या लगता है , उसका गोद – भराई  वाला सूट देखा था एक लाख से कम का नहीं होगा | इतनी आवाजों के बीच , ” मेरी मेहँदी कैसी लग रही है” के मेरे प्रश्न को भले ही सबने अनसुना कर दिया हो | पर उसने एक गहरा रंग छोड़ दिया था , .. इतना लाल … इतना सुर्ख की उसने मेरे आत्म सम्मान के सारे रंग दबा लिए |

इस समय मैं एक कंप्यूटर इंजिनीयर नहीं , (जिसने अपने अथक प्रयास से कॉलेज टॉप किया था ) एक माध्यम वर्गीय दुल्हन थी जिसे भाग्य से एक उच्च वर्ग का दूल्हा मिल रहा था | मध्यमवर्गीय भारतीय समाज से उम्मीद भी क्या की  जा सकती है ?
                                               हालांकि जब मैंने शिरीष से शादी के लिए हाँ करी तो मेरे जेहन में पैसा नहीं था | शिरीष न सिर्फ M .BA . थे बल्कि , बातचीत में मुझे काफी शालीन व्  सभ्य  लगे थे | शिरीष के परिवार ने दहेज़ में कुछ नहीं माँगा था |  मेरे माता – पिता तो जैसे कृतार्थ हो गए थे | और उन्होंने कृतज्ञता निभाने के लिए जरूरत से ज्यादा दहेज़ देने की तैयारी कर ली | विवाह की तमाम थकाऊ रस्मों के बाद जब मैं अपने  ससुराल पहुँची तो मेरे सर पर लम्बा  घूंघट था | हमारे यहाँ बहुए नंगे  सर नहीं घूमती , सासू माँ का फरमान था | चाँदी का झूला जरूर था पर घुंघट पार उसकी चमक बहुत कम लग रही  थी | रात को मैं  सुहाग की सेज पर अपने पति का इतजार कर रही थी | १२ , 1 , २ … घडी की सुइंयाँ आगे बढ़ रही थी | मुझे नींद आने लगी | ३ बजे शिरीष कमरे में आये | मैंने प्रथम मिलंन  की कल्पना में लजाते हुए घूँघट सर तक खींच लिया | शिरीष एक बड़ा सा गिफ्ट बॉक्स लेकर मेरे पास आये | पर ये क्या ! शिरीष ने शराब पी हुई थी | इतनी की वो लगभग टुन्न थे | मै उनका हाथ झटक कर खड़ी हो गयी | मैं समर्पण को तैयार नहीं थी | आज शगुन होता हैं शिरीष ने बायीं आँख दबाते हुए शरारती अंदाज़ में कहा |होता होगा शिरीष पर मैं किसी शगुन के लिए अपनी जिंदगी भर की स्मृतियों को काला नहीं कर सकती | मेरे स्वर में द्रणता थी | हालांकि शिरीष नशे की हालत में ज्यादा देर तक खड़े नहीं रह सके  | और वहीँ बिस्तर पर गिर गए | कमरे में उनके खर्राटों की आवाज़ गूंजने लगी |
                                     सुबह जब मैं नहा कर निकली  तब तक शिरीष जग चुके थे | वे मुझ पर मुहब्बत दर्शाने लगे | | मैं अभी तक कल के दर्द से उबर नहीं पायी थी तो जडवत ही रही | अचानक चुम्बन लेते – लेते शिरीष ने मेरा हाथ मरोड़ दिया ,” इतनी बेरुखी , कोई और आशिक था क्या ? मैंने न में सर हिलाया | तो फिर बीबी की ही तरह रहो , जैसे घरेलू  औरतें रहती हैं | अकड़   दिखाने की क्या जरूरत है | मेरी कलाई पर शिरीष की अंगुलियाँ छप  गयी , और मन पर अपमान का दर्द |  पाँव फेरने पहली बार मायके जाने तक मैं तीन बार पिट चुकी थी व् अनेकों बार अपमानित करने वाले शब्द सुन चुकी थी | माँ के पास जाते ही मैंने शिरीष के बर्ताव की शिकायत की | माँ ने शुरू , शुरू में झगडे तो होते ही हैं कह कर मेरी बात सुनने तक से इनकार कर दिया | यह वही माँ थी , जो मुझसे कहा करती थी की अगर आदमी एक बार हाथ उठा दे तो वो जिंदगी भर मारता रहता है | फिर शिरीष तो मुझे बात – बेबात पर न जाने कितनी बार मार चुके थे | क्या उन्हें अपने वचनों का भी मान नहीं रहा | हां ! भाभी के मन में जरूर करुणा उपजी थी | उन्होंने सलाह दी  की तू  नौकरी कर लें | अपना वजूद होगा तो कोई ऐसे अपमानित नहीं कर सकेगा | भाभी की बात मुझे सही लगी | घर आते ही मैंने शिरीष के आगे अपनी बात रखी | सुनते ही शिरीष भड़क उठे |
शिरीष मिश्र की वाइफ दस हज़ार रुपल्ली की नौकरी करेगी | ओह गॉड ! इससे ज्यादा तो मेरा ड्राइवर लेता है |नाक कटानी है क्या !  मिश्रा ‘ज की बहू १० ,००० रुपये के लिए नौकरी करती है | मैं शिरीष को यह समझाने में नाकाम रही की नौकरी सिर्फ पैसों के लिए नहीं की जाती | दुःख की बात तो ये थी की मेरी अपनी माँ ने भी शिरीष का साथ दिया | अरे तुझे क्या कमी है |सही तो कहता है |हर बात को झगडे का विषय बना लेती हो | ऐसे तेरी शादी कैसे चलेगी | इतने पैसे वाला घर है | इतना दहेज़ दिया,सब मट्टी में  चला जाएगा |  मैं स्तब्ध  थी | मेरे मन में शिरीष के प्रति प्रेम व् सम्मान घात रहा था जो किसी शादी की नींव है फिर भी मुझे शादी बचानी थी | अपने लिए नहीं , माँ  के लिए , बाबूजी के लिए , समाज के लिए |लोग क्या कहेंगे इसलिए | शायद ये लोग तब कुछ न कहें जब मैं घुटन भरी जिंदगी जीती रहूँ और महंगी साड़ियों और गहनों के नीचे छिपी एक जिन्दा लाश को घसीटती रहूँ | मेरे आत्मसम्मान को रौंदने पर  समाज  की मुहर लगते ही जैसे  शिरीष के पर लग गए | अब  पिटना ,आँसू बहाना , फिर शिरीष का ” सॉरी”  बोल देना हर चौथे दिन का कार्यक्रम हो गया | मैं सिरिश को समझ पाने में असमर्थ थी | उस सॉरी का क्या मतलब जब इंसान वही अपराध बार – बार करें |  आखिरकार एक दिन मैंने माता – पिता , समाज , पैसे वाले घर और शिरीष की परवाह छोड़ कर निर्णय ले ही लिया |
                                                  मायके से मैं मुंबई  में सहेली  की शादी में जाने का  कह मुंबई जॉब इंटरव्यू देने चली आई | नौकरी मिलते ही मैंने माँ को यहीं  मुंबई में रहने व् शिरीष से शादी तोड़ने के अपने  निर्णय  से अवगत करा दिया | वहाँ  तो जैसे भूचाल आ गया | मेरे फोन की घंटी रुकने का नाम नहीं ले रही थी | बहुत देर तक मैंने अवॉयड करने की कोशिश की | माँ रो रही थी | ऐसे कैसे ? सात जन्मों का बंधन होता है | इतना पैसे वाला परिवार कुछ सोंचा है | झगडे कहाँ नहीं होते | ” सॉरी ” तो बोलता है | पुरुष कहाँ बोलते हैं”  सॉरी ‘|  पूरी जिंदगी कैसे कटेगी | जब माँ ने बोलना बंद किया तब मैंने धीरे से कहा ,” माँ , पूरी जिंदगी तो मार खाते हुए भी नहीं कटती |आप ने एक फैसला लिया था न | वो मेरे लिए गलत साबित हुआ | अब मैंने फैसला लिया है | सही या गलत जो भी हो | अब मैं इस पर ही चलूंगी | कह कर मैंने फोन रख दिया | अगला फोन शिरीष का था | आवाज़ एकदम  रूआसी थी ,” मुझे माफ़ कर दो | लौट आओ मेरे पास | अब मैं एकदम बदल गया हूँ |तुम मुंबई में यूँ नौकरी करोगी तो लोग क्या कहेंगे | प्लीज , .. मैं शिरीष की सॉरी की आदि हो चुकी थी और पहले से ही उत्तर के लिए तैयार थी | मैंने द्रण शब्दों में कहा ,” शिरीष , मैंने दिल से तुम्हें माफ़ कर दिया है | पर मैं अब वापस नहीं आ सकती | अतीत के जहर पर प्रेम की नयी फसल नहीं उगाई जा सकती | पुराने कांटे जिंदगी भर चुभते रहेंगे | मुझे ख़ुशी है की तुम बदल गए हो , मुझे विश्वास है की अब जो भी तुम्हारा जीवन साथी बनेगा , उसे बदला हुआ शिरीष मिलेगा | और तुम दोनों का रिश्ता अटूट रहेगा | मुझे बस इतना ही कहना है | दुबारा मुझे फोन करने की कोशिश मत करना | ” कहकर मैंने फोन रख दिया | अपने अतीत से पीछा छुड़ा  कर मैंने  अपनी जिंदगी की कहानी दुबारा लिखना शुरू किया | आज मैं खुश हूँ हालांकि ये मेरे लिए इतना आसान नहीं था | उसके लिए मुझे  अपने बेसिक स्वाभाव में आमूल – चूल  परिवर्तन करने पड़े | जिन्होंने मेरे जीवन को दिशा दी , और समझाया की हम बेवजह ही अनिर्णय की स्तिथि में रह कर अपनी जिंदगी को उलझाए रहते हैं | जबकि आसान रास्ते हामारी थोड़ी सी समझदारी का इंतज़ार कर रहे होते हैं |मैं बस इतना कहना चाहती हूँ की …….
रिश्ते में प्रेम से पहले सम्मान जरूरी है 

                                              एक कहावत है की ये हो सकता है की हम किसी से प्रेम करें पर उसका सम्मान न करें | परन्तु यह नहीं हो सकता की हम जिस का दिल से सम्मान करें उससे प्रेम न करें | जिन रिश्तों में औकात की बात आने लगे | वहाँ कभी भी मन में सम्मान नहीं होता |  वहाँ बराबरी का भाव नहीं होता | जिसकी औकात कम है वो दूसरे की दया पर आश्रित है | दया है , इसलिए याचक को उसकी मर्जी के अनुसार चलना ही होगा | ऐसे रिश्तों से बाहर निकल आना ही बेहतर हैं | क्योंकि अगर ये नहीं टूटते हैं तो अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं | जो न उन दोनों के लिए बल्कि उनके द्वारा रचाए जाने वाले भविष्य के परिवार  के लिए अच्छा नहीं है |

जरूरी है खुद से प्यार 
                                               माता पिता – भाई बहन , पति बच्चे ये सब हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं | हम सब इनसे प्यार करते है | करना भी चाहिए पर खुद  को नज़रंदाज़ कर के नहीं | कई बार आपको लगता है आप अपना जीवन इसलिए नष्ट कर रहे है क्योंकि आप के अपने आप से ऐसा ही अपेक्षा रखते हैं | इसलिए आप को  उनके प्यार का सम्मान रखना ही चाहिए | यही पर आप गलत होते हैं | क्योंकि आप अपने को इग्नोर करके दूसरों से प्यार नहीं कर सकते | कहीं न कहीं उनकी इच्छा आप को प्यार  नहीं दवाब लगती है | पर आप उस चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते | जब तक आप खुद से प्यार नहीं करेंगे आप सदा दवाब में रहेंगे , कोई भी कडक फैसला ले नहीं पायेंगे | जो खुद से प्यार करता है वो विपरीत परिस्तिथियों में बाहर निकल सकता है | क्योंकि वो ही खुद के साथ अकेले चलने को तैयार होता है |

बदलाव किस हद तक

निर्णय ले अपनी अंत : प्रेरणा से 
                                जीवन अनिश्चिताओं से भरा पड़ा है | ऐसे में हर कदम – कदम हमें निर्णय लेने पड़ते हैं | कुछ निर्णय इतने मामूली होते हैं की उन का हमारी आने वाली जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ता | पर कुछ निर्णय बड़े होते हैं | जो हमारे आने वाले समय को प्रभावित करते हैं | ऐसे समय में हमारे पास दो ही विकल्प होते हैं | या तो हम अपनी अंत : प्रेरणा की सुने | या दूसरों की राय का अनुसरण करें |अनिश्चितताओं से भरे जीवन में कोई भी निर्णय फलदायी होगा या नहीं न हमारा न किसी और का सुझाया हुआ, ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता | गलतियों की सम्भावना दोनों में है | हम केवल आज वो निर्णय ले सकते हैं जो हमें आज सही लग रहे हैं ,  परन्तु जरूरी नहीं है इससे वही परिणाम आये जो हम चाहते हैं | ऐसे में बेहतर है हम वो निर्णय लें जो हमारी अंत : प्रेरणा कह रही है | अगर भविष्य में वो गलत भी साबित हुआ तो भी हम दूसरों पर आरोप मढ कर उनकी आलोचना करने से बच जायेंगे | 

खुद पकडें जीवन की गाडी की स्टेयरिंग 

                                      जीवन है तो उतार चढाव होंगे ही कहीं विकराल जंगल होंगें तो कहीं समुद्र | अगर आप कम्फर्ट ज़ोन में बने रहेंगे तो आप की जिंदगी उन्हीं दुःख दर्दों में घुमती रहेगी | ये सच है की हम अपने दुःख – दर्द के भी अभ्यस्त हो जाते हैं | और उससे बाहर नुक्लने में घबराते हुएँ की कहीं वो तकलीफ इससे बड़ी न हो | परन्तु डर नन्हीं त्यागेंगें तो आगे  बदलाव की आशा करना भी व्यर्थ  है |  याद रखिये | हम अपने जीवन के उतार – चढाव का बेहतर तरीके से तभी संचालन कर सकेंगे जब हम अपनी जिंदगी की गाडी के ड्राइवर की सीट पर बैठे हो | अलबत्ता अपने निर्णय पर कायम रहने के लिए जरूरी है की हममें स्टेयरिंग पकड़ने की हिम्मत हो |




नाउम्मीद करती उम्मीदें

प्रेशर हैंडिल करें 
                             हमारे समाज में , खासकर भारतीय समाज में शादी का टूटना बेहद अपमान जनक वस्तु मानी जाती है | न सिर्फ आप को बल्कि आपके परिवार वालों को बेसिर पैर के तमाम प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है | या फिर आप के खुद के परिवार वाले समाज से बचने के लिए आप को अपमानजनक रिश्ते में बंधे रहने का दवाब डाल सकते हैं | ताकि उन्हें सामाज के प्रश्नों का सामना न करना पड़े | पर एक खराब रिश्ते में जीना , जीना नहीं घुट – घुट के मरना होता है | कहावत है की ,” आप का जीवन कितने साल था से ज्यादा महत्वपूर्ण है की आप के सालों में जीवन था | मजबूत बनिए ये सामाजिक प्रेशर आप को ही हैंडिल करना पड़ेगा | 

माफ़ करें , आगे बढे 
                             जब आप किसी दर्द भरे रिश्ते से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे होते हैं तो जो चीज आपको सबसे ज्यादा परेशां करती है | वह है आप का अतीत | गुज़रा हुआ कल दर्द के रूप में  आपके आगे खड़ा रहता है | जिस कारण आप को आने वाला कल भी साफ़ – साफ़ नज़र नहीं आता है | वैसे माफ़ करना न करना आप का अपना फैसला है | परन्तु जब तक आप माफ़ नहीं करते हैं आप आगे नहीं बढ़ सकते | आप अतीत में ही जकड़े रहेंगे | माफ़ करने का अर्थ ये भी नहीं की आप उसी रिश्ते में फंसे रहेंगे | माफ़ करने का अर्थ ये है की आप उन विचारों की कैद से अब मुक्त हैं | 


                              ये जिंदगी कभी भी आसान नहीं होती | किन्तु किसी ऐसे रिश्ते में घुट – घुट कर जीने से जहाँ आपका कोई सम्मान न हो बेहद कष्टप्रद है | याद रखिये …
 कभी – कभी छोड़ देना , साथ चलने के फैसले से ज्यादा कठिन होता है | पर अन्तत : ये ज्यादा बेहतर साबित होता है | 

रियल स्टोरी –  श्रीमती . xx ( भोपाल  ) 
कॉपी राइट – वंदना बाजपेयी 

अगला कदम के लिए आप अपनी या अपनों की रचनाए समस्याएं editor.atootbandhan@gmail.com या vandanabajpai5@gmail.com पर भेजें 
.#अगला_कदम के बारे में 

हमारा जीवन अनेकों प्रकार की तकलीफों से भरा हुआ है | जब कोई तकलीफ अचानक से आती है तो लगता है काश कोई हमें इस मुसीबत से उबार ले , काश कोई रास्ता दिखा दे | परिस्तिथियों से लड़ते हुए कुछ टूट जाते हैं और कुछ अपनी समस्याओं पर कुछ हद तक काबू पा लेते हैं और दूसरों के लिए पथ प्रदर्शक भी साबित होते हैं |
जीवन की रातों से गुज़र कर ही जाना जा सकता है की एक दिया जलना ही काफी होता है , जो रास्ता दिखाता है | बाकी सबको स्वयं परिस्तिथियों से लड़ना पड़ता है | बहुत समय से इसी दिशा में कुछ करने की योजना बन रही थी | उसी का मूर्त रूप लेकर आ रहा है
” अगला कदम “
जिसके अंतर्गत हमने कैरियर , रिश्ते , स्वास्थ्य , प्रियजन की मृत्यु , पैशन , अतीत में जीने आदि विभिन्न मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहे हैं | हर मंगलवार और शुक्रवार को इसकी कड़ी आप अटूट बंधन ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं | हमें ख़ुशी है की इस फोरम में हमारे साथ अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व् कॉपी राइटर जुड़े हैं |आशा है हमेशा की तरह आप का स्नेह व् आशीर्वाद हमें मिलेगा व् हम समस्याग्रस्त जीवन में दिया जला कर कुछ हद अँधेरा मिटाने के प्रयास में सफल होंगे
” बदलें विचार ,बदलें दुनिया “

                                                           
                                                     

4 COMMENTS

  1. रोज घुट – घुट कर मरने से अच्छा है , एक बार कठोर फैसला ले कर अलग होना , मैं इसका समर्थन करती हूँ … स्मिता शुक्ला , दिल्ली

  2. बिल्कुल सही है…जो व्यक्ति सम्मान ही नही दे सकता वो प्यार क्या करेगा? अपना सब कुछ न्योछावर करने के बाद क्या चाहती है नारी? बस थोडा सा सम्मान…लेकिन वो भी न मिले तो…निर्नय करना जरूरी है…सुंदर प्रस्तुति।

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