माँ की माला

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नेहा नाहटा,जैन
दिल्ली
माला फेरकर जैसी ही प्रेरणा ने आँखे खोली,सामने खड़ी बेटी और पतिदेव ठहाके मारने लगे
मान्या तो पेट पकड़ पकड़ कर हंसी से दोहरी हुयी जा रही थी ।

प्रेरणा आँखे फाडे अचंभे से उन्हें देखते हुए बोली,”अरे क्या हुआ,ऐसे क्यों हँस् रहे हो तुम दोनों “
पर दोनों की हंसी तो रुकने का नाम ही नही ले रही थी।

प्रेरणा ने निखिल का मुँह अपने हाथ से टाइट दबाकर उनकी हंसी रोकते हुए बेटी से पूछा,
” बाबू प्लीज़ बताना ,क्या हुआ ऐसा,जो तुम हँस रहे हो,
क्या मेरे चेहरे पर कुछ लगा हुआ है ।”

बमुश्किल हंसी रोकते हुए मान्या बोली,”मम्मा आप क्या कर रहे थे “
मैं ,मैं ,नही तो, कुछ भी नही,बस माला ही तो फेर रही थी,प्रेरणा मासूमियत से बोली।”
अरे मम्मा ,

मैं  जब स्कूल के लिए रेड्डी हो रही थी, तब बालकनी में अपने बाल बनाने आई तो मुझे मम्मी,मम्मी,मम्मी…
 की आवाज आई ,तो मैं धीरे से आपके पास आकर सुनने लगी, मैंने चुपचाप पापा को इशारे से बुलाया और  तब से दोनों बड़ी मुश्किल से हंसी रोककर बैठे है..
“आप मम्मी,मम्मी की माला फेर रही थी ।”(मतलब नानिमा की माला?)
नवकार मंत्र, ॐ भिक्षु की या राम ,कृष्ण ,साईबाबा की माला तो सभी फेरते है…
“यह मम्मी कोनसी देवता आ गयी”
और जैसे ही प्रेरणा ने निखिल के मुँह पर से हाथ हटाया तो दोनों फिर से ठहाके लगाने लगे…
“चल भाग यहां से,स्कूल को देर हो जायेगी,खिसियाते हुए  प्रेरणा चिल्लाई।”
पति और बेटी के बस स्टॉप पर जाने के बाद  प्रेरणा सोचने लगी कि

राम ,कृष्ण, महावीर या भिक्षु भी तो इंसान ही थे,
अपने कर्म से वो भगवान बने ।
और आज सब उन्हें पूजते है ।

 माँ ने भी तो यह सुन्दर जीवन दिया ,जीवन की हर ख़ुशी दी ,जो माँगा वही मिला,हमारा भविष्य संवारा …..
तो माँ कहीँ भगवान से कम है क्या, उनकी माला तो सबसे पहले फेरनी चाहिए ।
वो किसी भी देवता से कम नहीं…
यादों में माँ  के आते ही प्रेरणा की आँखे अब तक नम हो चुकी थी ।

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