क्यों न जी कर मरें

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क्यों न जी कर मरें

एक बगीचे में एक घास का फूल था वह अपने अन्य  साथी घास के फूलों के साथ ईंटों की आड़ में दबा
हुआ था | जब तेज हवा चलती उस पर कोई असर न होता क्योंकि वह इंटों की आड़ में था |
 जब तेज सूरज चमकता तो उस पर कोई असर नहीं होता |
जब बारिश आती तो भी वो इंटों की आड़ में दंबा होने के कारण बचा रहता |
इतना सुरक्षित होते हुए भी जाने क्यों उसका मन बेचैन रहता |


एक दिन उसने रात में भगवान् से प्रार्थना करी ,” हे प्रभू मुझे गुलाब
का फूल बना दो | ये जीवन भी कोई जीवन है |

भगवान् उसके सपने में आकर बोले ,” एक बार फिर सोंच लो | गुलाब के फूल
की जिन्दगी आसान नहीं है | जरा सी हवा चलती है तो हिलने लगता है , तूफान आते ही पत्तियाँ
झड जाती है | बड़ा भी नहीं हो पाता की कोई न कोई तोड़ लेता है |

घास का फूल अपने निर्णय पर अडिग था |


सुबह घास का फूल , गुलाब का फूल बन चुका था |अलसाए से घास के फूलों ने
उसे देखा तो आपस में कहा , “निरा मूर्ख था | यहाँ आराम से सुरक्षित था | क्या
जरूरत थी गुलाब का फूल बनने की |
पर गुलाब का फूल ऊपर डाली  पर
बैठ दुनिया देख बहुत खुश हो रहा था | इंटों में दबे होने के कारण तो उसे कुछ भी
साफ़ दिखाई नहीं देता था | अब कभी हवा लग रही थी कभी धूप , तो कभी भौरे गुनगुना रहे
थे | बड़ा मजा आ रहा था |
तभी हवा का तेज झोंका आया | गुलाब का पौधा बुरी तरह से हिला | उसकी
रूह काँप गयी | थोड़ी देर बाद सामने बच्चे खेल रहे थे जो उसे तोड़ने के लिए दौड़े |
गुलाब मन ही मन राम – राम करने लगा | ये तो अच्छा हुआ बाग़ के माली ने उन्हें डांट
कर भगा दिया | पर दोपहर की धूप … उफ़ लग रहा था जैसे सूरज सर पर ही बैठा है | फिर
भी किसी तरह से धुप झेल ही ली, पर शाम को तो इतनी जोर का तूफ़ान आया की गुलाब का
पौधा ही जमीन  पर आ गिरा |

अंतिम साँसे लेता हुआ गुलाब का फूल अब  घास के फूलों के करीब आ गया था | घास के फूल
हमदर्दी दिखाने लगे … च्च्च … कहा था ,मत बनो गुलाब के फूल , क्या फायदा हुआ ?
हम जैसे भी हैं , भले हैं | हाँ , कुछ दुःख हैं पर सुविधायें कितनी हैं | अगर
तुमने हमारी बात मान ली होती तो आज यूँ न मरते |

गुलाब के फूल ने उखड्ती  हुई साँसों से कहा ,  “ मुझ पर अफ़सोस जताना बंद करो | एक दिन ही सही
पर मैं आज जी भर के जिया | वहां से दुनिया देखी , भवरों का गीत सुना |तेज धूप की
तपिश झेली , तेज हवा में जोर से हिला और तूफ़ान से भी बहुत देर संघर्ष किया | मैं
अपने फैसले पर खुश हूँ | क्योंकि मैं जी कर मर रहा हूँ और तुम सब मरे हुए जी रहे
हो |

अंजू गुप्ता 
प्रेरक कथाओं से 
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