क्या सभी टीचर्स को चाइल्ड साइकॉलजी की समझ है ?

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Teachers should have basic understanding of child psychology

 वंदना बाजपेयी 
 शिक्षक दिवस -यानी  अपने टीचर के आभार व्यक्त करने का , उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने का | छोटे
बड़े हर स्कूल कॉलेज में “टीचर्स डे “ पर कार्यक्रम का आयोजन होता है  | जिसमें
बच्चे  कविता ,कहानी  नृत्य के माध्यम से टीचर्स के प्रति अपनी
श्रद्धा व्यक्त करते हैं  | लम्बी – लम्बी स्पीच चलती है  | टीचर्स को फूल
कार्ड्स , गिफ्ट्स मिलते हैं  | आभासी  जगत यानी इन्टरनेट की दुनिया में भी हर
वेबसाइट पर , फेसबुक की हर वाल पर  टीचर्स की शान में भाषण , सुविचार व् टू  लाइनर्स पढने को मिलते हैं | यह
जरूरी भी है | क्योंकि टीचर्स हमें गढ़ते हैं | उन्होंने हमें ज्ञान का मार्ग
दिखाया होता है | इसलिए हमारा कर्तव्य है की हम उनके प्रति आदर व् सम्मान का भाव
रखे |


क्या सभी टीचर्स को चाइल्ड साइकॉलजी  की समझ है ? 



सामूहिक सम्मान तो ठीक है | पर जैसे  की बच्चों का अलग – अलग मूल्याङ्कन होता
है | उसी तरह हर टीचर का मूल्यांकन करें तो क्या हर  टीचर इस सम्मान का अधिकारी है ?
क्या टीचर हो जाना ही पर्याप्त है ?क्या सभी टीचर्स बाल मनोविज्ञान की समझ रखते हैं | आइये इस की गहन विवेचना करें | 




 क्यों हो मासूम बच्चों पर इतना प्रेशर 

                           शिक्षक दिवस पर  मुझे
उस बच्चे की याद आ गयी
| जिसका वीडियो  वायरल हुआ था | जिसमें
बच्चे की माँ बच्चे को बहुत गुस्सा करते हुए पढ़ा रही थी
| सभी  ने एक
स्वर में माँ की निंदा की
| पर माँ के इस व्यवहार के पीछे क्या कारण हो सकता है | ये जानने
के लिए किसी भी स्कूल के
पेरेंट्स टीचर मीटिंग में जा
कर देख लीजिये
| टीचर किस बुरी तरीके से बच्चों के चार पांच
नंबर कम आने पर बच्चे के बारे में नकारात्मक  बोलना शुरू कर देते हैं
| जिससे
माँ
बाप के मन में एक भय पैदा होता है |शायद
 मेरा बच्चा कभी कुछ कर ही न पाए या कम से कम इतना तो लगता ही है की सबके बीच
में अगली बार उनके बच्चे को ऐसे न बोला जाए
|हमें
खोजना होगा की एक मासूम बच्चे पर इतना प्रेशर पड़ने की जडें कहाँ पर हैं
| क्या
जरूरी नहीं की पेरेंट्स टीचर मीटिंग में बच्चे के माता
पिता व्
टीचर अकेले में बात करें
| जिससे माता पिता या बच्चे में सबके सामने अपमान की भावना न आये |


होता है मासूम बच्चो का शारीरिक शोषण 

एक उदहारण  मेरे जेहन में आ रहा है | एक प्ले स्कूल का | प्ले
स्कूल में अमूमन ढाई से चार साल के बच्चे पढ़ते हैं | उस प्ले स्कूल की  टीचर बच्चों के शरारत करने पर , काम न करने पर , दूसरे बच्चे का काम बिगाड़ देने पर उस बच्चे के सारे कपडे उतार कर बेंच पर खड़ा होने
का पनिशमेंट देती थी | इस उम्र के बच्चों को शर्म  का अर्थ नहीं पता होता  है | परन्तु जिस तरह से सार्वजानिक रूप से ये
काम करा जाता उससे बच्चे बहुत अपमानित महसूस करते | कुछ बच्चों को सजा हुई | बाकी
बच्चे भयभीत रहने लगे  | कुछ बच्चे स्कूल जाने  से मना करने लगे | बात का पता तब चला जब एक बच्चा १० दिन तक स्कूल नहीं
गया | वो तरह – तरह के बहाने बनता रहा | जबरदस्ती स्कूल भेजने पर वह चलते ऑटो से कूद
पड़ा | फिर माता – पिता को शक हुआ | बच्चे से गहन पूँछतांच में बच्चे ने सच बताया
| पेरेंट्स के हस्तक्षेप से टीचर को स्कूल छोड़ना पड़ा | परन्तु बच्चों के मन में जो
ग्रंथि जीवन भर के लिए बन गयी उसका खामियाजा कौन भुगतेगा |


वर्बल अब्यूज भी है खतरनाक 

मेरी एक परिचित के तीन साल के बच्चे ने एक दिन घर आ कर बताया की ड्राइंग फ़ाइल न ले जाने पर टीचर ने मारा हालांकि वो डायरी में नोट भी लिख सकती थीं दूसरे ही दिन वे दोनों स्कूल गए व् प्रिंसिपल से बात की ,की मासूम बच्चों को न मारा जाए उसके बाद बच्चे ने स्कूल की बातें घर में बताना बंद कर दिया वह अक्सर स्कूल जाने से मना  करने लगा जब पेरेंट्स ने बहुत जोर दे कर पूंछा की क्या टीचर अब भी मारती हैं तो बच्चा बोला नहीं मारती नहीं हैं , पर रोज कहतीं हैं की इन्हें तो कुछ कह ही नहीं सकते अगले दिन इनके माता – पिता आ कर खड़े हो जाते हैं इसके बाद बच्चे ताली बजा कर हँसते हैं आप लोग मेरा स्कूल चेंज करवा दो मनोविज्ञान के अनुसार वर्बल अब्यूज फिजिकल अब्यूज से कम घातक  नहीं होता लगातार ऐसी बातें सुनने से बच्चे के कोमल मन पर क्या असर होता है ये सहज ही समझा जा सकता है |

मारपीट किसी समस्या का हल नहीं  

एक और वीडियों जो अभी वायरल
हुआ उसमें टीचर बच्चे को बेरहमी से पीट रही थी | वीडियो देखने से ही दर्द महसूस
होता है | मासूम बच्चों को मुजरिम की तरह ऐसे कैसे पीटा  जा सकता है ? हालांकि यहाँ
मैं सपष्ट करना चाहूंगी की कई पेरेंट्स भी बच्चे को रोबोट बनाने की इच्छा रखते हैं
वह आकर स्वयं कहते हैं की
,” आप इसकी तुड़ाई करिए | टीचर भी
सहज स्वीकार करती हैं
कि  मार पीट से ही बिगड़े बच्चे
सुधरते हैं |
जबकि उसे बताना चाहिए की तुड़ाई करने से कमियाँ नहीं टूटती बच्चे का
आत्मविश्वास टूटता है
|
इसके अतिरिक्त भी
 टीचर्स अक्सर बच्चों पर  नकारात्मक फब्तियां कसते रहते हैं
| एक कोचिंग सेंटर में जहाँ इंजीनयरिंग इंट्रेंस एग्जाम की तयारी
करवाते हैं | वहां के गणित के टीचर कोई भी सवाल बच्चों को हल करने के लिए देते |
फिर यह जुमला कसना नहीं भूलते की देखना कोई लड़का ही करेगा | लड़कियों से तो मैथ्स
होती ही नहीं | वैसे तो जेंडर बायस कमेंट बोलने का अधिकार किसी को नहीं है | फिर
भी यह जानते हुए की समान अवसर व् सुविधायें मिलने के बाद लडकियां लड़कों से कहीं
कम सिद्ध नहीं होती | उस क्लास में पढने वाली लड़कियों का आत्मविश्वास डगमगाने लगा
| जाहिर है एक आई क्यु होने पर भी सफल या असफल होने में मनोबल का बहुत महत्व है |

याद रखिये सफलता किसी डिग्री की मोहताज़ नहीं 

इसके अतिरिक्त भी तुमसे तो
यह हो ही नहीं सकता
, तुम जीवन में कुछ नहीं कर पाओगे | रिक्शा चलाओगे | तुम तो घर बैठ जाओ , एक सीट
बेकार कर रहे हो
| आदि आदि बातें टीचर्स अक्सर अपने स्टूडेंट्स
से बोलते रहते हैं |
क्या ये बाते बच्चो को दिशा दे सकती है |क्या ऐसी नाकारात्मक बातें बच्चों का आत्मविश्वास नहीं
तोडती | क्या ये संभव नहीं है की ऐसी बातें सुनने के बाद बच्चा जीवन में कुछ भी न
कर पाए | ये सच है की जैसे पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं होती | वैसे ही हर बच्चा
पढने में अच्छा नहीं हो सकता | सवाल ये उठता है की क्या सब सफल लोग पढने  में अच्छे रहे हैं | नाम गिनने की आवश्यकता नहीं
है |  क्या पढ़े लिखे नौकरी पेशा लोगों के
आलावा कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है | जहाँ सफलता सिद्ध न की जा सके | उत्तर हम सब को
पता है |सफलता किसी ख़ास डिग्री या काम की मोहताज़ नहीं है | फिर क्यों ये विष बीज
बचपन से बच्चों के मन में बोये जाते हैं |

 जरूरी है टीचर्स को बाल मनो विज्ञान की समझ 

टीचर होना सम्मान की बात है | हमें खुद उनका सम्मान करना चाहिए व्
अपने बच्चों को भी यही शिक्षा देनी चाहिए | पर ये भी जरूरी है की टीचर्स को भी बाल
मनोविज्ञान की समझ हो |
यूँ तो  टीचिंग जॉब के लिए बी एड अनिवार्य है बी एड में चाइल्ड साइकॉलजी पढ़ाई जाती है पर क्या सब  टीचर को व्यवहार में उसे उतार पाते हैं | पर कम से कम इतनी समझ हो की बाल मन एक नकारात्मक वाक्य से पूरी जिन्दगी निकल
नहीं पाता | मासूम बच्चे न तो रोबोट है न खिलौने की जैसे चाहों खेलों | वो लोनी मिटटी हैं | जिनको हौले से प्यार से कायदे से गढ़ना है | जिससे संस्कार की , सभ्यता की और विकास की पूरी मुकम्मल मूर्ति तैयार तो | इसके लिए सबसे जरूरी है बाल मनोविज्ञानं (चाइल्ड साइकॉलजी )  की समझ |  
टीचर होना एक गौरव के साथ साथ
जिम्मेदारी का काम है
| क्योंकि वो बच्चों को गढ़ता है | क्या ये
जरूरी नहीं की टीचर मात्र तनख्वाह लेने वाले कर्मचारी न हों
| टीचिंग
जॉब में वही  जाएँ जिन्हें इस पेशे से प्यार हो
| अपनी
जिम्मेदारी का अहसास हो
| टीचर्स का सम्मान टीचर्स डे पर दिए गए फूल ग्रीटिंग कार्ड्स या
गिफ्ट्स के स्थान पर बच्चो के दिल में हो




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3 COMMENTS

  1. सबसे पहले तो वंदना जी इतने अच्छे विषय पर चर्चा करने के लिए शुक्रिया | आजकल स्कूलों में बच्चो पर पढाई का इतना प्रेशर रहता है की उनकी मन:स्थिति के बारे बहुत कम ही टीचर सोचते है | बच्चों पर भी अच्छे नंबर लाने का दबाव डाला जाता है जबकि शिक्षा का मतलब बच्चों की अन्तर्निहित शक्तियों को बाहर लाना होता है | यह शक्तिया बच्चों को समझकर उसके अनुसार व्यहार करके ही बाहर निकाली जा सकती है | डा. साहब जिनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में हम सब यह त्यौहार मनाते है उनका भी यही कहना है शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति को तैयार करना है |

  2. वंदना दी,बिल्कुल सही कहा आपने। शिक्षकों को बच्चों की मनःस्थिति के बारे में समझना चाहिए। लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा होता नहीं हैं। विचारणीय आलेख।

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