झूठा –(लघुकथा )

0
वो थका हुआ घर के अंदर आया और दीवार के सहारे अपनी सायकिल
खड़ी कर मुँह हाथ धोने लग गया । तभी पत्नी तौलिया हाथ में पकड़ाती हुई बड़े प्यार से
पूछ बैठी “क्यों जी वो जो पायल जुड़वाने के लिए सुनार को दी थी वो ले आये..
? “ ओ-हो जल्दी-जल्दी में भूल गया
।”  उसने तौलिये से हाथ पोंछते हुए
जवाब दिया ।
 
चार दिन
से चिल्ला रही हूँ
,रोज भूल
जाते हो । मेरी तो कोई कद्र ही नहीं है इस घर में ..।” पत्नी पाँव पटकती हुई
रसोई में चली गयी थी ।
 
उसनें झाँक कर रसोई में देखा तो पत्नी अंदर ही थी । इधर उधर
देखते हुए चुपचाप वो माँ के कमरे में आ गया । बेटे को देखते ही चारपाई में लगभग
गठरी बनी हुई माँ के मानों जान आ गयी । वह अब माँ के पैताने बैठ गया था ।

क्यों रे
! कितने दिन से बहू चिल्ला रही है ..क्यों रोज-रोज भूल जावे तू..कलेस अच्छा न लगे
मोहे..।”
  माँ उसका चेहरा अपने हाथों से टटोलते हुए कह ही रही थी कि तभी
उसनें जेब से चश्मा निकालते हुए माँ को पहना दिया । “अम्मा मोहे भी न भावे
तेरा टटोल टटोल कर यूँ चलना तो आज़ तेरा टूटा चश्मा बनवा लाया । सच कहूँ माँ पायल
बनवाना तो भूल ही गया मैं ।” कहते हुए उसने माँ की गोद में अपना सिर रख दिया।

चल हट झूठे …!” कहते हुए माँ नें आँचल से उसकी आँखों की
कोरों में छलक आये आँसुओं को पोंछ दिया ।
सुधीर द्विवेदी 

यह भी पढ़ें ………





सुधीर द्विवेदी जी की लघुकथा आपको कैसी लगी | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपके पास भी कोई कहानी , कविता , लेख है तो हमें editor.atootbandhan@gmail.comपर भेजें | पसंद आने पर प्रकाशित किया जाएगा | 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here