कारवाँ -हँसी के माध्यम से जीवन के सन्देश देती सार्थक फिल्म

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कारवाँ -हँसी के माध्यम से जीवन के सन्देश देती सार्थक फिल्म

जिन्दगी एक सफ़र ही तो है | लोग जुड़ते जाते हैं और कारवाँ बनता जाता है | नये कारवाँ होता है उन लोगों का जो हमें सफ़र में मिलते हैं , हमारी जिन्दगी का जरूरी हिस्सा न होते हुए भी  हमारे शुभचिंतक होते हैं | हमारी ख़ुशी और हमारे गम में साथ देने वाले होते हैं | ये थीम है फिल्म कारवाँ की जिसमें एक सफ़र में जुड़े हुए कारवाँ के साथ जीवन के कई सार्थक सन्देश छुपे हैं | जो बेहतरीन अदाकारी के साथ हँसते मुस्कुराते हुए आपके दिल में गहरे उतर जाते हैं |

कारवाँ -हँसी के माध्यम से जीवन के सन्देश देती सार्थक फिल्म 

 निर्माता -आर एस वी पी मूवीज 


अभिनेता /अभिनेत्री -इरफ़ान खान,  दुलकर सलमान और मिथिला पारकर 
निर्देशक-आकर्ष खुराना

कभी कभी खो जाना खुद को ढूंढना होता है ….. कारवाँ में तीन लोग जो एक यात्रा  में खुद को ढूंढते हैं वो  हैं इरफ़ान खान,  दुलकर सलमान और मिथिला पारकर | रिश्ते हों , जीवन हो या सफ़र आपने जैसा सोचा होता है वैसा नहीं होता | जीवन इस रोलर कोस्टर की तरह होता है | कब खान क्या होगा , कब कहाँ रास्ते मुद जायेंगे , कोई नहीं जानता | ये फिल्म भी कुछ ऐसा ही बताती है |

फिल्म शुरू होती है फिल्म के प्रमुख नायक  दिलकर सलमान से | फिल्म का नायक एक आई .टी कम्पनी में नौकरी करता है | उसका नौकरी में बिलकुल मन नहीं लगता | नौकरी क्या उसका जीवन में ही मन नहीं लगता | वो एक फ्रस्टेटिड इंसान हैं | ऑफिस में बॉस जो उसी की उम्र का है बार -बार उसको डांटता रहता है,  कि उसने अपने पिता की वजह से उसे नौकरी पर रखा है , वर्ना कब का निकाल देता | सब के बीच बार -बार अपमानित होकर  बस जीविका के लिए नौकरी करता है , और घरेलू  जिन्दगी यूँहीं  अकेलेपन के साथ गुज़ार रहा है | उसे लोगों की कम्पनी पसंद नहीं आती , लोगों से ज्यादा देर बात नहीं कर पाता , और पर्सनल बात तो बिलकुल ही नहीं | ये सारा कुछ पढ़ कर आप ये मत समझिएगा कि वो खडूस है , वो दिल का बहुत कोमल इंसान है | उसके इस व्यवहार के पीछे उसका एक दर्द है ….वो दर्द है अपने मन का काम न कर पाने का दर्द | वो फोटोग्राफर बनना चाहता था , परन्तु उसके पिता इसके खिलाफ थे | वो हमेशा यही दलील देते , ” कमाएगा नहीं , तो खायेगा क्या ?” मजबूरन उसे सॉफ्ट वेयर इंजिनीयर बनना पड़ा | यहाँ  उसके नंबर अच्छे आये और उसे के पिता ने अपने दोस्त की आई .टी कम्पनी में उसे लगवा दिया | इस बात से वो अपने पिता से नाराज़ था | सालों से उनकी बात नहीं हुई थी |

जिंदगी यूँही खिंच रही होती है कि एक दिन नायक के पास फोन आता है की उसके पिता जो एक टूर पकेज बुक कर के तीर्थ यात्रा पर गए थे उनकी बस एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी है | उनका कॉफिन वो उस ट्रैवेल एजेंसी से कलेक्ट कर लें | वो शोक की अवस्था में फिर से ट्रैवेल ऐजेंसी को फोन लगता है , पर कोई उसकी बात सुनना नहीं चाहता | वो बस अपना नया प्लान बेचने में लगे हैं | कॉफिन कलेक्ट करने तक ” बस मैं और मेरी  रोजी रोटी ” की कई परते उधडती  हैं | जिसमें हास्य का पुट देते हुए सिस्टम और बढ़ते मानवीय स्वार्थ पर कटाक्ष किया है | नायक का अपने पिता से लगाव नहीं है फिर भी वो उनकी अंतिम क्रिया ठीक से करना चाहता है | वो कॉफिन ले कर विद्धुत शव दाह  गृह में ले जाता है | वहां उसे पता चलता है कि वो किसी  स्त्री की मृत देह ले आया है | दरसल कॉफिन बदल गए हैं | उसके पिता का शव कोच्ची पहुँच गया है | नायक उस महिला से बात करता है और दोनों बीच में कहीं मिलकर कॉफिन बदलने पर सहमत होते हैं |

नायक अपने दोस्त इरफ़ान खान से मदद मांगता है | इरफ़ान खान अपनी वैन   में कॉफिन ले कर उसके साथ चल पड़ता है और शुरू होता है सफ़र ….. |  वो लोग रास्ते में ही होते हैं कि कोच्ची से उस महिला का फोन आता है कि उसकी बेटी ऊटी के हॉस्टल से फोन नहीं उठा रही है | नानी की मृत्यु से वो ग़मगीन है कृपया  ऊटी में उससे भी मिल लें | नर्म दिल नायक हाँ कर देता है | आगे के सफ़र में वो १८ -१९ साल की बेटी (मिथिला पारकर )भी साथ में है | यहीं से शुरू होता है नायक का अपने को खोजने का सफ़र | अपने पिता से हद दर्जे की नफ़रत करने वाला नायक उस लड़की के लिए पिता की भूमिका में आने लगता है | जैसा की एक फेमस कोट है …

” एक व्यक्ति को जब ये समझ में आने लगता है कि उसके पिता ने उसके साथ क्या -क्या किया है , तब तक उसका बेटा इतना बड़ा हो जाता है कि वो कहने लगता है … आपने मेरे साथ किया ही क्या है “| 

उसके जीवन की गुत्थियां सुलझने लगती हैं | या यूँ कहे कि तीनों सफ़र में अपने को खोजते चलते हैं | मिथिला पारकर ने आठ साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया है और इरफ़ान का पिता शराबी था जिसकी वजह से उसने खुद को हमेशा अनाथ समझा | पिता और संतान का रिश्ता एक  कठिन रिश्ता है जिसके कारण खोजने का प्रयास फिल्म करती है |

अंत बहुत ही खूबसूरत है , जहाँ फिल्म थोड़ी भावुक हो जाती है , जब उसे अपने पिता को अपने दोस्त को लिखा खत मिलता है | खत का मजनूँन बताना उचित नहीं .. पर इससे आज के यूथ की एक बहुत बड़ी समस्या का हल मिलता है | दरअसल माता -पिता को दोष देने से पहले हर बच्चे को उन परिस्थितियों को समझना चाहिए जिसमें वो जिए हैं | जिनके कारण उनके विचार बने हैं | पिता के साथ मैं ये करना चाहता हूँ आप क्यों मना  करते हैं के स्थान पर ओपन डिस्कशन होना चाहिए | माता -पिता भी इंसान ही हैं , उनका नजरिया अपनी तकलीफों व् अपने  समय के समाज से बना है |

यात्रा से लौट कर नायक दुलकर नौकरी छोड़ता है , फोटोग्राफी करता है , उसकी प्रदर्शनी लगता है , अब वो सोशल है , फ्रेंडली है व् पूर्वाग्रहों  से मुक्त है |

फिल्म का सबसे खूबसूरत पक्ष उसकी सिनेमेटोग्राफी है | दक्षिण  भारत की खूबसूरती मन को मोह लेती है | फिल्म में सभी कलाकारों  का अभिनय इतना सहज है कि नाटकीयता देखने के आदी लोग भी सराहना किया बिना नहीं रह पायेंगे | कई जगह आपको लगता ही नहीं कि आप फिल्म देख रहे हैं , लगता है आप जीवन देख रहे हैं …. और आप भी इस सफ़र में उनके साथ हैं | दक्षिण के सुपरस्टार ममूटी के बेटे दुलकर का अभिनय , संवाद , आदायगी और आवाज़ दर्शकों का मन मोह लेती है | इरफ़ान खान तो जिस फिल्म में होते हैं छा ही जाते हैं | इस फिल्म में भी उन्होंने अपने जादू को बिखेरा है | मिथिला पारकर एक अच्छी अभिनेत्री साबित हो सकती हैं | उनमें प्रतिभा है …. बशर्ते उन्हें उसे दिखने का मौका मिले | फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष उसका म्यूजिक है | अगर इस पर मेहनत  कर ली जाती तो फिल्म का प्रभाव कुछ और अधिक होता | दूसरा इरफ़ान खान का लव एंगल एक गंभीर मुद्दे की जगह कॉमेडी नज़र आता है , ये लेखक द्वारा की गयी भूल है जो खटकती है |

सबसे ख़ास बात है फिल्म केवल दो घंटे की है  | और जैसा की पहले ही कहा है ये सफ़र रोलर कोस्टर का सफ़र है | आगे पीछे , हिचकोले खाने के बाद भी अंत में दर्शक एक हैप्पी मूड के साथ उठता है कि उसने एक अच्छी फिल्म देखी |

फिल्म का बजट २०- करोंण हैं | इसके १००० प्रिंट रिलीज किये गए हैं | अगर माउथ पब्लिसिटी से फिल्म दर्शकों को खींचने में कामयाब हुई तो निश्चित तौर पर अच्छी कमाई कर लेगी |

अटूट बंधन रेटिंग – 3.5 /5 

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filed under- Karwaan  film review

फोटो क्रेडिट –फ्री प्रेस जरनल

6 COMMENTS

  1. काफी खूबसूरती से फिल्म के प्रत्येक पक्ष को चित्रित किया गया है अब तो फिल्म जरूर देखेंगे हम!

  2. फ़िल्म की इतनी अच्छी समिक्षा पढ़ कर इसे देखने की तीव्र इच्छा हो रही हैं। अवश्य देखूँगी।

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