भाई -दूज पर मुक्तक

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भाई -दूज पर मुक्तक

दीपावली के दूसरे दिन भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है | इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर रोली अक्षत का टीका लगा कर उसके लिए दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं | कहा जाता है कि इसी दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमी के निमंत्रण पर वर्षों बाद उसके घर भोजन करने गए थे | तभी यमी ने संसार की सभी बहनों के लिए ये आशीर्वाद माँगा था कि जो भी भाई आज के दिन अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार कर उसके यहाँ भोजन करने जाए उसे वर्ष भर यमराज बुलाने ना आयें | इसी लिए आज के दिन का विशेष महत्व है | फिर भी बदलते ज़माने के साथ बहनें इंतज़ार करती रह जाती हैं और भाई अपने परिवार में व्यस्त हो जाते हैं | जमाना बदल जाता है पर भावनाएं कहाँ बदलती है | बहनों की उन्हीं भावनाओं को मुक्तक में पिरोने की कोशिश  की है | 

भाई -दूज पर मुक्तक 



कि अपने भाई को देखो बहन  संदेश लिखती है
चले आओ  कि
ये आँखें
  तिहारी
राह तकती हैं
सजाये थाल  बैठी हूँ तुम्हारे ही लिए भाई
तुम्हारी याद  में आँखें घटाओं सम बरसतीं हैं
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तुझे भी याद तो होंगी पुरानी वो सभी दूजे
बहन के सात भाई चौक पर जो थे कभी पूजे
बताशे हाथ में देकर सुनाई थी कथा माँ ने
सुनाई दे रहीं मुझको न जाने क्यों अभी गूँजें
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वर्ष बीते  मिले  हमको
गिना है क्या कभी तुमने
पलों को  भी 
जरा सोचो    लगाया है   गले      हम ने 
खता हुई      बताओ क्या  जरा  सी  बात पर रूठे     
                 
कि आ जाओ मनाउंगी 
 उठाई 
 है कसम  हमने 
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बने भैया    बहन आठों       धरा पे  चौक  आटे से 
लगे ना चोट पाँवों  में     कभी  राहों के    काँटे  से 
चला मूसर कुचल दूँगी     अल्पें तेरी   मैं  राहों की 
बटेगा   ना  कभी 
   बंधन 
  हमारा  प्रभु    बांटे से 
वंदना बाजपेयी
मुक्तक –मु –फाई-लुन -1222 x 4




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