गुज़रे हुए लम्हे – परिचय

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गुज़रे हुए लम्हे
गुज़रे हुए लम्हे

हम सब का जीवन एक कहानी है पर हम पढ़ना दूसरे की चाहते हैं | कोई लेखक भी अपनी कहानियों में अपने आस -पास की घटनाओं को संजोता है | कोई लेखक कितनी भी कहानियाँ लिखे उसमें उसके जीवन की छाया या दृष्टिकोण रहता है ही है| आत्मकथा उनको परदे में ना कह  कर खुल कर कहने की बात है | आत्मकथा लेखन में ईमानदारी की बहुत जरूरत होती है क्योंकि खुद के सत्य को उजागर करने के लिए साहस चाहिए साथ ही इसमें लेखक को कल्पना को विस्तार नहीं मिल पाता | उसे कहना सहज नहीं होता | बहुत कम लोग अपनी आत्मकथा लिखते हैं | बीनू दी ने यह साहसिक कदम उठाया है | इस आत्मकथात्मक उपन्यास “गुज़रे हुए लम्हे “को आप अटूट बंधन.कॉम पर एक श्रृंखला के रूप में पढ़ पायेंगे |

 

गुज़रे हुए लम्हे – परिचय

 

समर्पण

 

 

गुज़रे हुए लम्हे

मैं, मेरे स्वर्गीय माता-पिता श्री त्रिलोकी नाथभटनागरऔरश्रीमती शील भटनागरकी स्मृतियों को समर्पित करती हूँ, जिनकी वजह से मैं हूँ और येगुज़रे हुए लम्हे है |

 

विषय-क्रम

क  आत्मकथा की परिधि में (दोहे)

ख स्वानुभूति

आत्मकथा लिखते लिखते(कविता)

अध्याय -विषय          समय                      शहरपृष्ठ                                                                          

1शैशव व कुछ घबराया        1947-56बुलंदशहर

सा बचपन

2 ख़ुश सा बचपन             1956-1963    हरिद्वार, अलीगढ़ और मैनपुरी

3 बेफिक्र किशोरावस्था        1963-67लखनऊ

4 उलझनों में घिरा यौवन       1967- 69             लखनऊ ओबरा उ.प्र.

व विवाह समारोह

5 विवाह के बाद              1969-72ग्वालियर, कोरेगाँव, काज़ीपेट

6 मुश्किल वक़्त मे धैर्य       1972- 78शोलापुर, सिकंद्राबाद

7महानगरीय जीवन         1978 –82 , दिल्ली

का आरंभ

8 बच्चे बड़े हो रहे थे        1982 -91 , दिल्ली

9ग्वालियर छोड़ना            1991-96 ,दिल्ली

10 लेखन की शुरुआत         1896-2000, दिल्ली

11अमरीका यात्रा और

सेवानिवृति2001 से06 दिल्ली

12 साहित्यिक गतिविधियाँ   2006- अब तक ,दिल्ली

13 कभी ख़ुशी कभी ग़म       2006- अब तक ,दिल्ली

14यात्रा वृत्त2011अब तक       केरल दार्जिलिंग गैंगटाक

उत्तराखंड,ग्वालियर

उपसंहार

 

संस्मरण तालिका

शीर्षक पृष्ठ संख्या

1आरयूरैड्डी?

2 चित्रकला

3 अपूर्व का पहला सप्ताह स्कूल में

4 अगले 6 महीने में स्कूल मे

5 एकाग्रता

6 कार का पहिया निकलने वाला है

7चॉकलेट

8 रक्षाबंधन पर निबंध

9 मैं और मेरा बेटा

10 नाम गुम जायेगा

11आइने

12आत्मव्यथा(अँश)

13 नाम में क्या रखा है(अंश)

14 किताब तो छप गई मगर

15 शुगरफ्री

 

 

 

 

आत्मकथा की परिधि में

आत्मकथा की परिधि में, सच्चे सब अहसास,

झूठा सच्चा काल्पनिक, नहीं लिखा इतिहास।1।

आत्मकथ्य लिखते हुए, कभी छू दिये घाव

मरहमपट्टी हो रही, शब्दों से सहलाव।2।

आत्मकथ्य की सिलवटें, कुछ उलझे से तार,

गाँठें सुलझाती गई, शब्द-भाव विस्तार।3।

संस्मरण जुड़ते गये, आत्मकथा के संग,

समय- सिंधु मे उठ रहीं, देख अमित तरंग!4।

आज बुनू कल उधेड़ूँ, अपना ही इतिहास,

कलमबद्ध हो रहे हैं, जीवन के अहसास।5।

शब्दों की बेचैनियाँ, भीतर हैं तूफ़ान,

लिखना चाहूँ कुछ मगर, कलम खड़ी हैरान।6।

समय सरित की धार में, उतरी जब हर बार,

कभी अमोलक पल मिले, मिले न वही उधार।7।

आत्मकथ्य की पुस्तिका, कितने ही किरदार,

यात्रा सत्तर वर्ष की, स्मृतियाँ ही आधार।8।

गगरी जीवन वृत्त की, डालूँ पल दिन रैन,

आत्मकथा पूरी करूँ, शब्द शब्द बेचैन!9।

सागर गहरा वक़्त का, उतरी हूँ बहु बार,

चुन के मोती लाउँगी, आत्मकथा विस्तार।10।

खलिहानों में समय के, यादों के भंडार,

धीरे धीरे बह रहे, काग़ज पर उद्गार।11।

यादों की मरुभूमि में, खिलते कैक्टस-फूल,

फूल संग काँटे घने, उड़ती है बस धूल।12।

आत्मकथ्य की डोरियाँ, उलझे जब विश्वास,

सुलझाया कुछ इस तरह, दी न बिखरने आस।13।

आत्मकथा के सिंधु में, नदियाँ ही किरदार,

संगम भी बनते गये, सूखी भी मझधार।14 ।

सच्चे मोती पिर रहे आत्मकथा के तार,

मुतियन की माला पहन, दूँ ख़ुद को उपहार।15।

क़लम हाथ में आ गई,आँखों में कोई याद,

कानों में अब गूँजते, बीते पल के नाद ।16।

यादों की ये पोटली,बाँधी अनुभव डोर,

कभी दर्द दे जाय है, मन हो कभी विभोर।17।

उलझी सी थीं डोरियाँ, सुलझाये सब तार,

शब्दों में पिरते गये, यादों के अम्बार।18।

याद पुरानी आ गईं, जब भी मन के द्वार,

संस्मरण रचती रही, यादों के विस्तार।19।

बीते वक़्त की दास्तां, नहीं रेत पर नाम,

हवा समय की उड़ा दे, ये ऐसा न कलाम।20।

यादें जुड़ जुड़ कर बनी,आत्मकथा की डोर,

सिरा आख़िरी बुन रही,पल पल रही निचोर।21।

 

 

 

 

स्वानुभूति

कभी मैने ही किसी और संदर्भ में लिखा था ‘गुज़रे हुए लम्हों का कोई मोल नहीं है,जो बीत गया उसे बीत जाने दो’ सही है, भूतकाल में जीने का कोई अर्थ नहीं है, यदि वो आपके पुराने घावों को ताज़ा करे। गुज़रे हुए लम्होंको याद करके एक एक पल दोबारा जीना,उन्हे लिखना सुकून पहुँचा रहा है, तो उसे लिखना अच्छा है।डायरी लिखना तो मनोचिकित्सा का अंग है ।मेरे लेखन का तो आरंभ ही यहीं से हुआथा।डायरी लिखते लिखतेकवितायें लेख, कहानियाँ,संस्मरण, यात्रा संस्मरण, साहित्यिक निबंध, व्यंग्य और रिपोतार्ज  लिखती रही, प्रकाशित होते रहे। गुरुवरस्व. प्राण शर्मा जी का मार्गदर्शन भी मिलता रहा।

आत्मकथा और डायरी लेखन में कथा वही होती है, पर लिखने का अंदाज़ अलग होता है।आत्मकथा में भी सच्चाई ही होती है और डायरी में भी सच्चाई ही होती है। यदि पूरी सच्चाई नहीं हो तो वो आत्मकथा पर आधारित उपन्यास होता है, आत्मकथा नहीं, जैसे चेतन भगत का ‘’द टूस्टेट्स। ‘’

आत्मकथा लिखने में मेरी यही कोशिश रहेगी कि मेरे आस पास के किसी व्यक्ति को कोई भावनात्मक ठेस न पहुँचे क्योंकि किसी एक घटना को देखने का नज़रिया दो लोगों का एक सा नहीं होता है।यदि किसी प्रियजन की भावना अंजाने में ज़रा भी आहत होती है, तो उसके लिये मैं पहले ही क्षमा माँग लेती हूँ।

आम तौर पर जानी मानी हस्तियाँ आत्मकथा लिखती हैं या लिखवाती हैं, क्योंकि उनकी ज़िन्दगी में झाँकने की लोगों में दिलचस्पी होती है। एक आम इंसान की ज़िंदगी मे भी संधर्ष, चुनौतियाँ, रिश्ते उनको निभाने की ज़िम्मेदारी होती है।यदि प्रस्तुतीकरण अच्छा हो तो कोई भी आत्मकथा रोचक हो सकतीहै।

आत्मकथा व्यक्ति के जीवन मे घटी घटनाओं का ब्योरा ही नहीं होता, उसमें विचार होते हैं, संधर्ष होते है, किरदार होते है, रिश्ते होते है, अच्छे बुरे दिन होते है।उपन्यास की तरह उत्कर्ष और अंत नहीं होता, पर उत्सुकता जीवंत रहती है, ख़ासकर लिखने वाला यदि कोई आम इंसान हो तो।नामी लोगों के बारे में तो पहले ही बहुत कुछ मालुम होता है।

‘गुज़रे हुए लम्हे’ में कुछ रोचक संस्मरण जो कि अलग अलग जगह अलग अलग समय पर प्रकाशित हुए हैं, वो भी शामिल हैं।ये संस्मरण किसी भी पत्रिका या ई-पत्रिका में प्रकाशित हुए हों परन्तु इनका कॉपी राइट मेरे पास है। ये घटनाक्रम के साथ अध्यायों का हिस्सा हैं,जब कि ये लिखे बहुत बाद में गये थे।इसके अतिरिक्त अंतिम अध्याय में केवल यात्रा वृत्त हैं।

-बीनूभटनागर

 

 

आत्मकथा लिखते लिखते-

वक़्त के सागर में,

उतरी मैं,

यादों की रस्सी

को पकड़ कर,

कुछ यादें मज़बूत

कड़ी हैं,

कुछ धुँधली

सूत सी कच्ची हैं।

वक्त के सागर की गहराई,

पल छिन नापूँ या तारीख़े!

या अपना इतिहास खंगालूँ?

चुन चुन कर कुछ पल छिन नापूँ

चाहें वो पल टीस भरे हों

या फिर हों ख़ुशियों के ख़ज़ाने

शब्दों की चादर पहनाऊँ,

संस्मरण कुछ लिखती जाऊँ ।

यादों के अथाह सागर में,

कितने ही किरदार पड़े हैं,

कुछ साथ हैं,

कुछ बिछड़ गये है।

सबने अपने धर्म निभाये,

सबने अपने कर्म निभाये,

तब मैं शायद समझ न पाई।

लिखते लिखते….

अब हर गाँठ सुलझती जाये।

मैने भी कर्तव्य निभाये,

कुछ किरदार यहसमझ न पाये।

कभी कभी रिश्ते उलझाये,

सब रिश्तों का मान किया,

पर नहीं कहूँगी त्याग किया

मैने भी कोई।

दरार खाई बन न जाये,

सत्य इसे स्वीकार किया,

तभी आज मैं लिखती जाऊँ

गुज़रे हुए लम्हों के किस्से

आत्मकथा के पन्ने पन्ने..

वक़्त की गहराई से छनके

काग़ज पर हैं छलके छलके,

धीरे धीरे हल्के हल्के………

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बीनू भटनागर 

बीनू  भटनागर

आपको गुज़रे हुए लम्हे का परिचय कैसा लगा हमें अवश्य बताये | कल इसका पहला अध्याय पोस्ट किया जाएगा | अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ अच्छी लगती हैं तो वेबसाईट को सबस्क्राइब करें व् अटूट बंधन का पेज फॉलो करें |

 

1 COMMENT

  1. बेहद रोचक लगा, आपके लिखने का अंदाज पसंद आया।

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