जेल के पन्नों से

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जेल के पन्नों से

जेल .. ये शब्द सुनते ही मन पर एक खौफ सा तारी हो जाता है | शहर की भीड़ -भाड़ से दूर,अपनों से अलग, एक छोटा सा कमरा,अंधेरा सीलन भरा | जेल जाने का डर इंसान को अपराध करने से रोकता है |फिर भी अपराध होते हैं | लोग जेल जाते हैं |क्या सब वाकई खूंखार होते हैं ?या कुछ परिस्थितिजन्य  अपराधी होते हैं और क्षणिक आवेश में किये गए अपराध की सजा भुगतते हैं | आइए मिलते हैं ऐसे ही जेल के कैदियों से और जानते हैं उनकी सच्ची कहानी वरिष्ठ लेखिका आशा सिंह जी की कलम की जुबानी ..

जेल के पन्नों से 

जेल का नाम ही मन में भय उत्पन्न कर देता है ।एक बार जेल में ही पतिदेव की पोस्टिंग हुई,सो जेल और क़ैदियों से मिलने का अवसर मिला ।
गीता का ज्ञान देने वाले भगवान श्री कृष्ण का जन्म जेल में हुआ था ।जेल के परिसर में कृष्ण जन्माष्टमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है ।जन्माष्टमी पर झाँकी देखने जेल परिसर में गयी।बड़े ही सुंदर ढंग से सजाया गया था कागज की पट्टियों को काटकर मंदिर बनाया गया था ।एक्स-रे प्लेट पर बालकृष्ण की छवि जो लाइट पड़ते जगमगा उठती।किसी पंखे के चक्र पर किनारे गोपियाँ और बीच में बाँसुरी बजाते कृष्ण ।बुरादे को अलग अलग रंगों में रंग कर रास्ते,उसपर प्रभु के नन्हे चरण,जो नंदवाल के झूले तक जा रहे थे ।
मैं तन्मयता से झांकी को देख रही थी।कुछ क़ैदी भजन कीर्तन कर रहे थे।एक क़ैदी से पूछा -‘बहुत सुंदर सजाया है।‘उसने बताया कि उमर का कमाल है।
मैंने उमर को बधाई देनी चाही,एक दुबला पतला सांवले रंग का युवक मेरे सामने लाया गया मैंने उसकी कला की बहुत तारीफ की। उसने झुक कर शुक्रिया कहा।
उसके चेहरे पर इतनी मासूमियत भरी थी कि मैं सोच में पड़ गई कि इससे अपराध हुआ होगा।
डाक्टर सिंह ने बताया कि इस पर तीन कत्ल का जुर्म है। फांसी की सजा हुई थी,पर महात्मा गांधी के सौ वर्ष पूरे होने के कारण उम्रकैद में तब्दील हो गई।
‘पर यह कितना मासूम दिखता है,शरीफ लगता है।इसने खून किया,
विश्वास नहीं होता।‘
‘अच्छा ,आप खुद ही पूछ लेना ।‘जेलर साहब ने मेरी जिज्ञासा शान्त करने के लिए उसे मेरे बंगले पर भेज दिया।
हथकड़ी बेड़ी में जकड़ा उमर सिपाही के संग लाया गया।उसको देखकर मस्तिष्क में ववंडर चलने लगा। इतनी कम उम्र में जेल में आ गया।जब तक छूटेगा एकदम कृशकाय वृद्ध हो चुका होगा।
शायद उसे खुले आसमान के नीचे अच्छा लगा। मैंने चाय मंगवायी तो उसने अपने तसले में ली।
‘अरे तुम लोग अपना तसला साथ लेकर चलते हो।‘
‘अरे मालकिन, छोड़ कर आता तो चोरी हो जाता।ससुरे चोर डकैत तो भरे हुए हैं।‘चाय में बिस्कुट डुबो कर खाते हुए बोले।
देखो हम बैठे है, मैडम जो पूछे बता देना।
बड़ी मुश्किल से वह मोंढे पर बैठा।
ज्यादा समय नहीं था,सो मैंने बात शुरू की-‘तुम तो शरीफ खानदान के लगते हो। यहां कैसे आ गये।‘
उसने सिर झुकाए कहा-‘मैडम इश्क के कारण। मैंने किया नहीं पर हो गया।
लखनऊ में अब्बा हुजूर की फोटो फ्रेम करने की छोटी सी दुकान थी,साथ में बुक बाईंडिग का भी काम करते थे। मैं इकलौता बेटा, मां बाप की आंखों का नूर था।दो मकान भी थे। किराया अच्छा खासा आ जाता। जिन्दगी मजे से बीत रही थी।
अचानक तूफान आ गया।कश्ती डगमगाने लगी।
दुपहर को अब्बा खाना खाने घर जाते,उस समय मैं कालेज से लौटकर दुकान पर बैठता।
मैं एक फ्रेम सही कर रहा था कि दुकान रोशन हो गई। निहायत खूबसूरत हसीना मेरे सामने खड़ी थी।उनके गोरे रंग की वजह से पूरी जगह जगमगा उठी।
मैंने पूछा‘जी बताइए।‘
उन्होंने एक बेहद पुरानी तस्वीर जो पानी में भीग कर खराब हो गई थी। जगह जगह से फट गई थी,कई जगह बदरंग हो गई थी,‘यह मेरी दादी
जान की तस्वीर है। पता नहीं कैसे पानी में भीग गई। अब्बा हुजूर को बहुत ही प्यारी है। अम्मी ने कहा कि किसी तरह ठीक कराओ,अब्बू को पता नहीं लगे।
मैने तस्वीर ली-‘कोशिश करता हूं।‘
‘कोशिश नहीं,आपको करना ही है।आपकी दुकान का नाम सुनकर ही आई हूं।‘
मैने फोटो देखी।वे भी अपने जमाने की हूर की परी होंगी। एकाएक दिमाग में बिजली कौंधी,ये तो अपनी दादी पर पड़ी है।
पुराने जमाने के ढेरों जेवरात पहिने गोया खुद से शरमा रही हो। पता नहीं कैसे फोटो खींचने की इजाजत दी होगी।
विचारों के समन्दर से बाहर आया। धीरे धीरे फोटो फ्रेम से अलग की। बाबा आदम के जमाने की तस्वीर,किस मुसीबत में फंसा गई।
मैं पेन्टिग कर ही लेता था। आहिस्ता आहिस्ता खराब जगहों को भरने लगा। एक एक जेवर को संवारा। बालों पर, कपड़े सब पर कहीं ब्रश कहीं पेन्सिल चली।अब्बा मुझे व्यस्त देख बहुत खुश हुए।
तीसरे दिन वे आ धमकी। अपने मोतियों जैसे दांतों की नुमाइश करती हुई-‘हो गया।‘
मैंने धीरे से पेपर में लिपटी हुई फोटो उन्हें दी।
‘माशा अल्लाह।कमाल कर दिया।जी चाहता है कि ऊंगलियां चूम लूं।‘अपनी बात पर खुद ही शर्मा गई।
बटुआ खोल कर मेहनताना देना चाहा, मैंने मना कर दिया।
‘आपने इतनी तारीफ कर दी, मेहनताना वसूल।
वे शुक्रिया अदा कर चली गई।
अगले दिन वे पेन्टिग का ढेरों सामान लेकर हाजिर हो गई।ब्रश बहुत नफीस और महंगे थे।
मैं हतप्रभ-‘ नहीं बहुत महंगे हैं।‘
मैं चाहती हूं कि तुम बहुत बड़े आर्टिस्ट बनो। खूब नाम कमाओ।
‘अरे नहीं साहब‘मैने कहना चाहा।
‘क्यो मकबूल फिदा हुसैन साहब हैं ना। तुम क्यों नहीं उनकी तरह मशहूर हो सकते।‘
मन में सपने जगाकर चली गई। हुसैन तो नहीं बन पाया, कैदी नंबर २२१ बन गया।
मैं ने तसल्ली दी।
मैंने कैनवस पर शायरी शुरू कर दी।वे आतीं,पेन्टिग को सराहती।मेरा हौसला अफजाई करतीं।‘बहुत सारी बना डालो।मै आर्ट गैलरी में नुमाइश लगवा दूंगी‘
मेरी उड़ान को पंख देती।
अब्बू की अनुभवी आंखों ने ताड़ लिया-‘बेटा हम छोटे लोग हैं।वे बड़े बिजनेसमैन मिर्जा साहब की बेटी हैं।‘
‘नहीं अब्बू,वे बस हौसला अफजाई करतीं हैं।‘
हौसला अफजाई कब मुहब्बत में तब्दील हो गई, पता नहीं चला।
हम अक्सर पार्क में मिलते।वे अपनी शानदार कार से आतीं, मैं अपनी खटारा सायकिल से।
‘जब तुम्हारा नाम हो जाए, मुझे भूल न जाना।‘
‘सवाल ही नहीं है,आप हमेशा मेरे साथ रहेंगी‘
पर हमारे फैसले पर खुदा ने मुहर नहीं लगाई थी।
उनके बड़े भाई ने हमें देख लिया।
मेरी दुकान पर अपने कद्दावर साथियों के साथ आ धमके।गरज कर बोले-‘टीन टप्पर में रहने वाले महलों का ख्वाब छोड़ दो।वरना कहां पहुंच जाओगे, अपने बूढ़े अम्मी अब्बू का ख्याल करो‘
जरा धमका कर वे चले गए। अब्बू बहुत घबरा गए।फौरन दुकान बंद कर मुझे लेकर घर चले गए। अम्मी बहुत ही ज्यादा डर गई। अपनी सहेलियों को बुलाया। उनके खाविन्द भी आ गए। मिर्जा एन्ड सन्स का नाम सुनकर सबको सांप सूंघ गया।
आखिर में सलाह दी गई कि जल्दी से जल्दी लौन्डे को लखनऊ से दूर किया जाए।
फूफी झांसी में थीं। अब्बू ने मेरे बारे में बताया और वही कहीं काम दिलाने को कहा।
मेरी सारी पेंटिग रंग ब्रश सब लखनऊ में छूट गये।
मुझे एक प्रेस में रखवा दिया गया।अब हाथ कालिख से सने होते।कम्पोजिटर राशिद मियां ने कुछ जान पहचान हो गई , मेरे बुझे हुए चेहरे से सबकुछ समझ गये।‘बेटा आशिकी की चोट खाकर आये हो।‘जख्म हरा था सो कुछ मुंह से निकल गया।
राशिद भाई ने कुछ प्रेस की कटिंग जोड़ कर (लिखावट न पहचानी जा सके) यहां के बारे में लिखा।खत को एक रिसाले के अंदर रख कर लखनऊ भेज दिया। पता अपने घर का दिया। मुझे समझाया-‘देख मुन्ना अगर उसे भी इश्क होगा,तो जरुर जबाव आयेगा।‘
इंतजार की घड़ियां लम्बी होती जा रही थी।एक दिन राशिद ने चिढ़ाया-‘चलो मिठाई खिलाओ‘। बहुत दिनों बाद हंसी आई।
राशिद भाई ने लिफाफा दिया। एकदम कुहांसा छट गया। इसी तरह रिसाले आते जाते रहे।प्रेस का फोन नंबर भी दे दिया। कभी कभी खनकती सी हंसी भी सुनाई देती।
अचानक खबर मिली कि शायद भाई जान को शक हो गया है।अगले हफ्ते निकाह है।उसके बाद दुबई भेज दिया जाएगा।
मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया।आव देखा न ताव। रशीद भाई से पैसे लेकर लखनऊ रवाना हो गया।
सीधे मिर्जा साहब की कोठी पर पहुंच गया। वहां मेरे इस्तकबाल की पूरी तैयारी थी।
दोनों भाई अपने खूंखार दोस्त के साथ खड़े थे। मैं जनून में फाटक के अंदर चला गया। चौकीदार रोकता ही रह गया।
दोस्त मुझसे चिपट कर छुरे से वार करना चाहता था,पता नहीं कैसे मुझमें इतनी ताक़त आ गई, मैंने छुरा छीनकर उसके पेट में पैबस्त कर दिया। मैं बिल्कुल पागल हो गया था,आगे बढ़ कर दोनों भाईयों पर भी छुरे से तडातड वार कर दिया।
चारों ओर खून ही खून,चीख पुकार मच गई।मेरे सामने तीन तीन लाशें पड़ी थी।सबने मुझे घेर लिया था। पुलिस आ गई और मैं वारदात पर पकड़ लिया गया।छुरी मेरे हाथ में थी।
अम्मी अब्बा का बुरा हाल। अम्मी ने खाट पकड़ ली।बेचारे अब्बू कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने लगे। लोअर कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई।अब्बू हाईकोर्ट पहुंचे।एक मकान बिक गया। अम्मी भी खुदा के पास चली गई।
मिर्ज़ा साहब ने बेटी की शादी कर उसे दुबई भेज दिया। अब उनकी जिद थी कि मेरी फांसी की सजा बरकरार रहे।अपने बेटों की मौत का बदला लेना था।
हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा बरकरार रखी।अब्बा से मैंने कहा-‘आप गम न करें। मुझे अपने किये की सजा भुगतने दें।‘
अब्बा एकदम बूढ़े हो गए थे।‘वे अपने मरे हुए बेटों के लिए लड़ रहे हैं। मैं अपने जिंदा बेटे को बचाने के लिए कुछ भी करूंगा।‘
दूसरा मकान बिक गया। अब्बा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। फांसी की सजा बरकरार रही। महात्मा गांधी के सौ वर्ष पूरे होने पर उस समय के सभी की फांसी की सजा माफ कर दी गई, आजीवन कारावास कर दिया।
तब से यही पर हूं।
पहले अब्बा मिलने आते थे, अब नहीं आते। पता नहीं किस हाल में हैं। मेरी गलती के कारण मेरा पूरा परिवार बर्बाद हो गया।जब भी झांकी सजाता हूं, कृष्ण जी का ख्याल आता है। प्रेम राधा से करते रहे,पर पिता वासुदेव को जेल से छुड़ाने के लिए प्रेम को पीछे छोड़ दिया।
मैं निशब्द बैठी रही। वार्डन उसे लेकर चले गए। प्रेम अंधा क्यों होता है? प्रेम और कर्तव्य में किसको वरीयता दे?

आशा सिंह

आशा सिंह

अहसास

ऊँटकी करवट

गीदड़-गश्त

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