बस अब और नहीं !

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बस अब और नहीं

स्वतंत्रता या गुलामी ये हमारा चयन है | कई बार गुलामी के चयन के पीछे सामाजिक वर्जनाएँ होती हैं  तो कई बार इसके पीछे विलासिता और ऐश की चाह  भी होती है जो हँसकर गुलामी सहने को विवश करती है | स्वतंत्रता अपने साथ जिम्मेदारियाँ लाती है, संघर्ष लाती है और कठोर परिश्रम का माद्दा भी .. “बस अब और नहीं” केवल कह कर समझौता कर लेने वाले शब्द नहीं है | ये शब्द है.. अपने स्वाभिमान को बचाए रख कर जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने के | आइए पढ़ें सुपरिचित लेखिका रश्मि तारिका जी की एक ऐसी कहानी जिसकी नायिका  लता  विपरीत परिस्तिथियों  के सामने मजबूती से खड़ी हुई |

बस अब और नहीं !

 

दर्द अगर कहानियों में निहित है तो कहानियाँ हमारे आस पास ही बिखरी होती हैं  और कहानियाँ हैं तो किरदार भी होंगे ही ..बस ज़रा ढूँढने की ज़द्दोज़हद करनी पड़ती है ! चलिये आज आपके लिए मैं ही एक किरदार ढूँढ लाई हूँ …ऐसा ही शायद आपके भी इर्द गिर्द होगा ही।चलिये इस किरदार से मिलने चलते हैं जो एक ईंटों से बने एक कमरे को ही अपना घर बनाने की कोशिश में है।

*

सुबह दस बजे का समय और रसोई में  उठा पटक का स्वर रोज़ की बजाए आज तेज़ था।पल्लवी के दिमाग और कदमों ने भी कमरे से रसोई तक पहुंचने में भी एक तीव्रता दिखाई। कारण था किसी नुक्सान की आशंका !

 

“लता !  ज़रा ध्यान से ! आज जल्दी है या कोई गुस्सा है जो बर्तनों पर निकाल रही है ? पिछली दफा भी तूने जल्दबाज़ी में एक काँच का गिलास तोड़ दिया था।आज ज़रा संभलकर।”

पल्लवी ने कहा और लता के उखड़े मूड को देखकर खुद ही चाय चढ़ा दी ,अपने लिए और लता के लिए भी।वरना तो गरमा गरम चाय लता के हाथों, कुर्सी पर बैठे बिठाए उसे रोज़ ही मिल जाती थी।लता काम बाद में शुरू करती और चाय पहले चढ़ा देती थी।

“लता ..चाय बन गई है पहले गरम गरम पी ले फिर करती रहना काम।”

पर आज लता ने  बर्तनों का काम पूरा किया और हाथ पौन्छ कर चाय लेकर फटाफट पी और अपना मोबाइल उठाकर ले आई।

“भाभी ..पहले तो आज मुझे यह बताओ कि ये जो फेसबूक होती है ,उस में  जो अपुन फ़ोटो डालते हैं क्या वो सबके पास पहुँच जाती है ?”भोलेपन से लता ने पूछा।

“हाँ ,पहुँचने का मतलब वही लोग देख सकते हैं अगर तुमने उसे अपना दोस्त बनाया हुआ है।”

 

पल्लवी को लगा फ्रेंड लिस्ट ,मित्र सूची शब्दों का इस्तेमाल लता के समक्ष लेना व्यर्थ है कि वो समझ नहीं पाएगी।

” हाय री मेरी अल्पबुद्धि ! इतना भी न सोच सकी कि फेसबूक की दुनिया में कदम रखने वाली लता क्या फ्रेंड लिस्ट का मतलब भी न जानती होगी ?”पल्लवी को अपनी सोच पर खुद ही हँसी आने लगी।

 

“अरे भाभी , ये तो मालूम कि एक फ्रेंड लिस्ट होती है जिस में हम अपनी मर्ज़ी से लोगों को लिस्ट में बुलाते हैं।आप भी तो हो न मेरी लिस्ट में !”

 

लता ने बड़े फ़ख्र से बताया जबकि पल्लवी उसी फ़ख्र से यह न बता सकी कि उसने लता की फ्रेंड रिकुवेस्ट कितना सोचने के बाद स्वीकार की थी।

“हाँ ..तो फिर क्या हुआ अब ! परेशानी किस बात की है लता?”

 

“भाभी ..कल मेरी बेटी ने अपनी एक फ़ोटो डाल दी फेसबूक पर और मेरी जान को एक मुसीबत खड़ी हो गई।इसीलिए परेशान हूँ।”

“क्या परेशानी ज़रा खुल कर बताओ न! ”

“वो मेरी बेटी की फ़ोटो मेरे किसी रिश्तेदार ने देख ली और  उसने गुड़िया के पप्पा को शिकायत कर दी कि फ़ोटो क्यों डाली ।”

“तो क्या हुआ ! आजकल तो सब बच्चे ही अपनी फोटो फेसबूक पर हैं तो डाल ही देते हैं।चिंता वाली क्या बात है ? बस फोटो सही होनी चाहिए, मर्यादा में।”

पल्लवी ने मर्यादा शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा ताकि लता आराम से समझ जाए।

“भाभी ,बच्ची ने केवल मुस्कुराते हुए ही अपनी फोटो डाली।अब हम लोग कहाँ ऐसे वैसे कपड़े पहनते कि मर्यादा का सोचें।लेकिन लोग फिर भी बातें बनाएँ तो क्या करें ! खुद के अंदर तो झाँक कर नहीं देखते !”

 

लता का उखड़ा स्वर बता रहा था कि किसी अपने ने ही उसकी बेटी की शिकायत की थी।पल्लवी सुनकर हैरान थी कि एक बारह तेरह साल की मासूम बच्ची जो न बोल सकती है ,न सुन सकती है।केवल इशारों से जो बात सुनती समझती है तो क्या वो मुस्कुरा भी नहीं सकती ? क्या उसके मुस्कुराने पर भी कोई बैन लगा है?

“तूँ लोगों की बातों की परवाह क्यों करती है, लता ?कहने दे जिसने जो कहना है।बच्ची ने कोई गुनाह नहीं किया जो तूँ इतना डर रही है।”पल्लवी ने समझाने का प्रयास किया।

“”नहीं न भाभी ..आपको मालूम नहीं। अभी तो गुड़िया के पप्पा अपनी साइट(काम) पर गए हैं।आएँगे तो बहुत बवाल करेंगे।अभी तो बस उन्होंने फ़ोन पर बताया।मैं इसी बात को लेकर परेशान हूँ।”

 

“तो अब क्या इरादा है ,क्या चाहती है तूँ और तूने गुड़िया से पूछा क्या इस फ़ोटो की बात को लेकर ?”

 

“मैंने उसे इशारे से समझाया तो वो पहले तो अड़ी रही कि फ़ोटो नहीं हटाएगी पर जब मैंने उसे कहा कि पप्पा गुस्सा होंगे तो उसने गुस्से में आकर अपनी फोटो भी हटा ली और  मेरे मोबाइल से फेसबूक भी हटा दिया।”

“एक तो तूँ बच्ची को नाहक ही गुस्सा हो रही है।फिर अगर उसने फ़ोटो हटा दी है तो अब क्यों परेशान है ?”

 

“वो यह पूछना था कि गुड़िया ने फ़ोटो हटा ली तो क्या अब भी फ़ोटो वो रिश्तेदार के पास होगी तो नहीं न ?”लता अपनी बुद्धि के हिसाब से अपनी समस्या का निवारण ही पूछ रही थी ।

पल्लवी सोचने लगी कि आजकल के बच्चे इतना कहाँ सोचते हैं कि सोशल साइट्स पर तस्वीरें डालने से कई बार समस्याओं का सामना करता पड़ता है।जबकि लता तो अपनी बेटी की मासूमियत को भी लोगों की नज़रों से बचाने का प्रयास कर रही थी। पल्लवी जानती थी कि लता आज संघर्षों और हिम्मत से जूझती हुई एक साहसी महिला थी पर कहीं न कहीं वो एक माँ थी ।

“देख लता ! फ़ोटो तो उसने हटा ली तो अब कोई देख नहीं पायेगा लेकिन मोबाइल से फेसबूक को हटाने से फेसबूक तो ऑन ही रहेगा।उसके लिए फेसबूक अकॉउंट से तुम्हें लॉग आउट करने पड़ेगा या वो एकाउंट बंद करना होगा।”

“ओह्ह .. मुझे तो ये सब समझ आता नहीं  भाभी। मैं कल आपके पास फुरसत से आती हूँ ।आप बंद कर देना न !”

 

अगले दिन लता ने बोझिल ,अनमने भाव से काम निबटाया और पल्लवी के पास आकर बैठ गई।

“लाओ लता अपना मोबाइल दो ,फेसबूक बन्द कर देती हूँ।”पल्लवी ने उसके इस तरह से बैठ जाने की वजह का अन्दाज़ा लगाते हुए कहा तो लता ने मोबाइल थमा दिया।

“लो देखो एक बार के लिए केवल बंद किया है जिसे लॉग आउट कहते हैं।पूरी तरह से बंद नहीं किया कि कभी बच्चों का फिर से मन करे तो वो इसका इस्तेमाल कर सकें।समझी न ?”

“ठीक …है भाभी !”लता कुछ कहते अचानक कहते हुए चुप हो गई।

“क्या हुआ ..क्या परेशानी है।बोल न लता।”

“भाभी ..कल से गुड़िया नाराज़ है मुझसे।क्या करूँ बच्चों  के भले के लिए ही तो कुछ समझाती हूँ।।पहले ही मन से दुखी हूँ उसके पप्पा की वजह से अब बच्चे भी नाच नचाते हैं।क्या करूँ ?”

“सही सही बता हुआ क्या है ? तेरे घरवाले ने कुछ कहा है क्या ?”पल्लवी ने ज़ोर देकर पूछा।

“नहीं अभी तो वो साइट से आये नहीं।बस गुड़िया की बात को लेकर परेशान हूँ ।भाभी ,जब उसे कल कहा न कि तेरे पप्पा गुस्सा होंगे तेरी फ़ोटो वाली बात पर तो उसने मुझे इशारे से कहा कि मैंने  फ़ोटो तो हटा दी पर अगर पप्पा कुछ कहेंगे तो मैं भी उन्हें सब सुना दूँगी।”

 

“अरे ..ऐसा कहा गुड़िया ने ? पर क्या सुना देगी ,इसका क्या मतलब ? तूने पूछा क्या ?”

 

जब से लता उसके घर काम करने लगी थी तब से उसकी बेटी डोली को जानती थी।कई बार लता के साथ आती थी।उसे देखकर कई बार पल्लवी और उसकी बेटी को बेहद दुख होता था ईश्वर की इस नाइंसाफ़ी पर।फिर भी गुड़िया एक मुस्कान के साथ यदा कदा माँ के साथ स्कूल की छुट्टियों में लता के साथ आ जाती थी।

“भाभी , डोली अभी छोटी नहीं रही न ।सब समझने लगी है। जब मैंने उससे पूछा कि तुम क्या सुना दोगी तो उसने जो कहा सुनकर मेरा तो माथा घूम गया है।”लता ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा।

 

“ओह्ह पर क्या कहा उसने ?”

 

“यही कि अगर पप्पा मुझे फोटो वाली बात पर गुस्सा करेंगे तो मैं भी कह दूँगी कि उसने कई बार उन्हें पड़ोस वाली औरतों को घूरते हुए देखा है।”

 

बात लता के लिए चिंताजनक थी और चिंता भी अकारण नहीं थी। एक पल के लिए तो पल्लवी भी चौंक गई गुड़िया की बात सुनकर।

लता खुद को कितना भी सम्भाल लेती ,कितना भी बच्चों से अपने बिखरे रिश्ते को छुपाने का प्रयास करती ,आखिर तो जो सच था वो सामने आना ही था।सच यही था कि अपने पति की फितरत ,पति के नाज़ायज़ रिश्ते को न अपने बच्चों से ,न रिश्तेदारों से न आस पड़ोस मुहल्ले वालों से छुपा सकती थी क्यूँकि ऐसी बातें सौ तालों की तह में भी छिप नहीं सकतीं थीं।

 

“लता …बहुत गंभीर बात कह दी है ,तेरी बेटी ने।यह नहीं होना चाहिए था।इसका मतलब उनके मन में अपने पिता का कोई डर ही नहीं ? लेकिन तुम एक बात बताओ कि अगर गुड़िया के मन में फ़ोटो वाली बात के लिए कहीं न कहीं जवाब तैयार है तो उसने  फिर फ़ोटो हटाई क्यों ?”

“भाभी ..बाप का डर नहीं है !  बस मेरे लिए बच्चों की इज़्ज़त या हमदर्दी कहूँ  या फिर उनका पप्पा तो साथ नहीं तो  कहीं उन बच्चों को माँ के खो जाने का डर है ,नहीं जानती लेकिन वो मेरी बात मान लेते हैं ,समझ जातें हैं।जब से मेरे और गुड़िया के पप्पा का रिश्ता खराब हुआ है तब से बच्चे अपने पिता से नाराज़ तो हैं लेकिन न उनसे पूरी तरह नफरत करते हैं न प्यार।बस इतना समझ रही हूँ।”

“पड़ोस की महिला को घूरने वाली बात कहीं न कहीं सच ही होगी न तभी तुम्हारी बेटी ने इतनी बड़ी बात कह दी ?”

पल्लवी ने चिंता जताते हुए पूछा जबकि उस तेरह साल की बच्ची की मनोदशा से उसका पिता पूरी तरह से अंजान था।बेटी के अलावा लता के दो और बच्चे भी थे । बेटी 2डोली से एक साल बड़ा और एक उससे छोटा। लता के दोनों बेटे शारीरिक रूप से सक्षम थे लेकिन बेटी की इस बात को सुनकर ,लता के घर के हालातों को देख सुन लगा कि बेटी की शारीरिक अक्षमताओं के साथ साथ उसे हालात कहीं मानसिक रूप से अक्षम तो नहीं कर रहे ?”

सोचते सोचते पल्लवी की आँखें गुड़िया की मनोस्थिति का सोचकर नम हों गईं।

“भाभी , क्या जवाब दूँ ? मैं अगर बच्चों के भविष्य के लिए इन्हें समझाती हूँ तो गुड़िया के पप्पा तो लड़ते ही हैं ,बड़ा बेटा परम भी गुस्सा होने लगता है।कहता है पप्पा एक दो दिन के लिए घर आते हैं उस में भी तुम उनसे लड़ती हो।”

“अरे  ! परम अपने पिता को नहीं समझाता क्या ? तूँ तो कह रही थी कि परम बहुत होशियार और समझदार है ।वो तेरे चेहरे की परेशानी झट से समझ लेता है ।तो उसे कह न कि वो अपने पप्पा को समझाए ।”

“उसने एक दो बार कहा तो उसके पप्पा ने मेरे लिए ही भड़का दिया इसीलिए अब वो भी मुझे कहता है कि तुम पप्पा के आने पर झगड़ती हो।

 

अब बताओ भाभी ,कि एक पति जिसने अपनी साइट पर एक औरत से गलत रिश्ता बना लिया ,वो महीने के बीस दिन वहीं रहे और मैं यहाँ अकेली बच्चों को संभालूँ ,घरों के काम करूँ ,बाहर के सब काम बिजली के बिल भरूँ ,किराया भरूँ सब काम मेरे जिम्मे !  फिर भी मैं कुछ न कहूँ आदमी को ? क्या सारा ठेका मैंने लिया घर गृहस्थी का ?”

कहते कहते लता का स्वर भीग गया और आँसुओं को पौंछते हुए उठ खड़ी  हुई कि क्योंकि उसे दूसरे घर का काम निबटाने जाना था।

लता की बिखरती गृहस्थी के दुख का एहसास पल्लवी को करीब छ माह पहले ही हुआ था जब उसे अपने पति से ऊँचे और निर्णयात्मक स्वर में बात करते देखा था।काम बीच में छोड़कर लता आधे घन्टे से पति से बहस कर रही थी।पल्लवी सुनकर हैरान थी जब उसने सुना कि लता अपने पति को आम लाने के लिए मना कर रही है। एक पल को  पल्लवी को लगा  कि शायद पैसों की किल्लत की वजह से लता आम लाने को मना कर रही है।लेकिन बात कुछ और निकली जो चौंकाने वाली थी।

“लता , बच्चों के लिए आम चाहिए तो मुझे बोल देती।चल मैं मंगवा दूँगी कल। आज ये दो तीन पड़ें हैं ले जाना।”

“अरे नहीं भाभी ! आम तो पड़े हैं घर में।मैं कल ले गई थी ।मैं तो गुड़िया के पप्पा को लाने को मना कर रही थी।”

“तो मना क्यों किया? लाने दे न उसे।यूँ भी ये एक महीना ही आम मिलते हैं बस।बच्चों के लिए लाना चाहता है तेरा आदमी तो लाने दे।”

“भाभी , बच्चों को उसके आम की नहीं अपने पप्पा की ज़रूरत है जबकि वो तो कितने कितने दिन घर भी नहीं आते।”

लता ने अपनी बिखरी ज़िंदगी ,बिखरे रिश्ते की पहली परत खोली तो पल्लवी हैरान रह गई।

“साइट पर ठेकेदारी का काम करता है न ? तो तूने ही तो बताया था कि चार पाँच दिनों बाद आता है जहाँ  पगार मिलती है।तो उसकी भी तो मजबूरी है न ?”

 

“नहीं ये बात नहीं है न भाभी ! अब कैसे बताऊँ आपको। गुड़िया के पप्पा अब कई कई दिनों तक साइट पर ही रहते हैं ,एक औरत के साथ ।”

 

“औरत के साथ मतलब ?”पल्लवी ने हैरानी से पूछा।।

“मतलब कि  साइट पर ही कुछ औरतें भी काम करती हैं तो वहीं एक औरत के साथ उसके कमरे में रहने लगे हैं।”

“तो तुझे पक्का यकीन है कि उसका इस औरत के साथ “गलत” रिश्ता है ?”

“भाभी ,खुद देखकर आई हूँ अपनी आखों से ! और क्या कहूँ ?”

लता के चेहरे पर अविश्वास के साथ दुख का भाव था।

 

“यह तो गलत बात है ! तूने समझाया नहीं ?”

 

“कोई कसर नहीं छोड़ी भाभी।पहले तो मानता ही नहीं था लेकिन एक दिन घर आया ।हमारी बहुत लड़ाई हुई तो मैंने उसी वकत उसका फोन अपने हाथ में लेकर ,अपने एक्टिवा पर उसे बिठा कर साइट पर चलने को कहा ।बार बार  यही कह रहा था कब से कि वहाँ कोई औरत नहीं रहती ।लेकिन जब मैं वहाँ पहुँची तो वो औरत वहीं थी। वो वहाँ से चली भी गई होती अगर गुड़िया के पप्पा ने उसे फोन कर दिया होता पर फोन तो मैंने पहले ही छीन लिया था ताकि सच सामने आ जाये।”

“बड़ी हिम्मत दिखाई री लता तूने तो ! फिर उसने गलती मानी या नहीं ?”

“भाभी ,यह आज की नई बात नहीं।कुछ साल पहले भी एक औरत के साथ चक्कर पड़ा था।रिश्ता भी बना ।उस वकत तक मेरे बच्चे बहुत छोटे थे।बहुत समझाया पर नहीं समझा।अपनी किस्मत समझ चुप रह गई।”

“तो वहाँ उसके ज़ाल से कैसे निकला वो ?”

“अपने आप ही ! ऐसे आदमियों का दिल भी तो जल्दी भर जाता है न भाभी। पर अब इतने सालों बाद फिर से उसी पटरी पर ! बार बार थोड़े न बर्दाश्त करूँगी।बच्चे भी बड़े हो गए हैं ।उन पर भी गलत असर पड़ेगा कि नहीं ?”

“वो तो सही कहा तूने लता ।पर अब आगे क्या सोचा है?”

“सोचने से कहाँ पूरा पड़ता है भाभी !  बोल तो  दिया है या तो उस औरत के पास रहो या मेरे पास।एक को चुन लो।पर ये आदमी की जात है बड़ी ढीठ ! जब सीधी उँगली से घी न निकला तो अब उंगली टेढ़ी कर ली।”

 

पल्लवी को लता की बातों में अब नाजायज़ रिश्तों की ही नहीं नाज़ायज़ बातों से भी परहेज़ करने की भावना बलवती होती नजर आ रही थी जो कि एक शुभ संकेत था ।

” वो कैसे लता …?”पल्लवी ने हैरानी से पूछा।

“वही ..बस अब बच्चों से प्रेम मुहब्बत दिखा रहे हैं। आपको कल बताया था न कि परम और छोटे बेटे  ने  रोते हुए ही मुझे कहा था कि पप्पा को बोल देना कि  हमें आम नहीं पप्पा चाहिए।सोचो न भाभी  ,बच्चों के मन में जो ये बात आई तो कोई छोटी बात नहीं ।इसलिए वो पहले दो दिन से आने का कह रहे थे।फिर आज सुबह बोले कि खुद नही आ सकता पर मैं आम की पेटी भेज रहा हूँ बच्चों के लिए । मैंने गुस्से में बोल दिया कि हमें उनका कोई सामान ,कोई आम नहीं चाहिए।”

“सही बात है लता ! अपना स्वाभिमान और बच्चों के लिए सही फैसला है तुम्हारा।मेरा तो यही सोचना है।”

 

बातों के उधेड़बुन में लता उस दिन काम निबटा कर चली गई।लता की हिम्मत की बातों को सोचते हुए अपनी सखी उर्वशी के बारे सोचने लगी कि कहाँ हम बँगले ,कोठियों में रहने वाली महिलाएँ खुद के साथ हुए अत्याचारों को अपनी खोखली इज़्ज़त ,दुनिया क्या कहेगी के खौफ की वजह से किसी से बता नहीं सकते तो विरोध में कोई कदम उठाने का सोच भी नहीं सकते। उर्वशी ने भी तो पति के प्रेम संबंध और उससे उपजी कड़वाहटों को अपने आलीशान बंगले की चारदीवारी में ,कीमती सोफ़े के सुंदर गोल तकियों में भर कर रख दिया था ताकि कोई देख न सके ! सुविधाओं से भरी जिंदगी थी ।उस पर उसके पति ने उर्वशी को सर से पैर तक हीरे मोतियों से सजा दिया ताकि उनकी चकाचौंध में ही वह खोई रहे । उर्वशी ने भी आसानी से पति के दिए हुए इस प्रलोभन को स्वीकार कर लिया।

पल्लवी जानती थी कि कोई समझे न समझे ,उर्वशी की अपने पति पर आर्थिक निर्भरता ही उसकी मजबूरी थी।सोचने  लगी कि वो खुद भी तो आज तक आर्थिक रूप से निर्भर है पति पर ,बच्चों पर ! उर्वशी  या वो खुद क्या किसी भी अप्रिय घटना से मजबूर होकर  लता जैसे हिम्मत कर सकती है ? शायद नहीं ..आर्थिक और शारीरिक रूप से निर्भरता को अब मानिसक निर्भरता ने इतना जकड़ लिया है उर्वशी और उसके जैसी महिलाओं को अब कोई भी कदम उठाना ही दुश्वार लगता है ।जबकि लता जैसी महिलाएँ संघर्षों में तपकर एक हिम्मत और आत्मविश्वास की जीती जागती मिसाल बन जाती हैं !

पल्लवी लता की हिम्मत का मूल्यांकन करते करते   सोचने लगी कि उससे कम उम्र लता ने इन पिछले छ महीनों में ऐसे सब कार्य कर डाले जिससे कि वह न केवल आर्थिक रूप से सबल हुई बल्कि मानिसक रूप से भी हुई। तभी आज अपने पति को मना कर पा रही है ।

हर्बल प्रोडक्ट की एजेंट बनी ,पैसे जोड़कर अपने लिए एक्टिवा लिया ताकि ऑटो पर आने जाने से समय की बचत हो और वो चार और घरों के काम पकड़ कर बच्चों को सुविधाएं दे सके। चेक बुक ,घर खरीदने के नियम ,वाट्स एप पर सब भाभियों को ऑडियो से अपने आने न आने की इत्तिला करना ,बच्चों को घुमाने ले जाना सब उसकी ज़िन्दगी के सहज और सुखद परिवर्तन थे।

 

अगले दिन लता आई तो पल्लवी उसके चेहरे को गौर से पढ़ने का प्रयास करने लगी।

“भाभी ..आज तो बेहद मगजमारी हो गई घर में ,इसलिए आते आते देर हो गई। “चाय देते हुए लता ने  कहा।

“क्या हुआ आज ?” लता के मन के भाव को समझते हुए पल्लवी ने पूछा।

जब कोई आपकी बात ,आपके दर्द को समझने लगता है और यह एहसास करवाता है कि कोई है जो उसे समझ रहा है तब कहने वाले का दुख आधा हो जाता है।लता पल्लवी से अपने दिल के हर बात साँझा करती ही थी तो आज कैसे न करती।

 

“वो क्या हुआ कि मना करने के बावज़ूद भी गुड़िया के पप्पा घर आ गए कल रात।मेरे गुस्से को देख बच्चों के सामने ही मेरे चरितर पर ऊँगली उठाने लगे कि मैं भी एक्टिवा पर न जाने कहाँ कहाँ जाती घूमती हूँ।”

“ये तो गलत बात है ।अब उसके पास बचाव के तरीके नहीं बचे न लता इसलिए ऐसा ही करेगा ।”

“तो और क्या ! इतना तो मैं भी समझ गई भाभी।मैंने बोल दिया कि तुम कमा कर लाओ ,  बच्चों की ज़रूरत पूरी करो । तो मैं घर में बैठती हूँ।मुझे क्या ज़रूरत सुबह शाम खटने की।मैंने तो यहाँ तक कह दिया कि इतना ही शक है तो ये एक्टिवा बेच दो ।मैं कहीं नहीं जाऊँगी बस तुम ही कमाओ।”

“ओह तो फिर क्या जवाब दिया तेरी गुड़िया के पप्पा ने ?”

“जवाब क्या देगा भाभी वो ..! जवाब होगा तो देगा न।जानता है न कि हम मैं घर बैठ गई तो कमाई कम होगी और उसकी अपनी कमाई कम पड़ेगी ही।घर ख़र्च कैसे चलेगा जब आधे पैसे तो उस औरत को दे देते हैं। और एक्टिवा मैंने लोन पर लिया जिसकी क़िस्त भी मुझे ही उतारनी।वो बेच के करेगा भी क्या ?”

“तूँ तो वक़्त के साथ साथ समझदार और होशियार हो गई है लता।बहुत अच्छी बात है कि तुझे इन सब बातों की समझ है।”

“पर आज मैंने  गुड़िया के पप्पा को कह दिया  कि मैं बार बार ठोकर खाकर भी तुम्हारे साथ रहूँ वो नहीं होगा।पर मेरा बेटा है न परम आज फिर मुझसे झगड़ने लगा । उसे अपने पप्पा पर गुस्सा आता है अपने पप्पा पर उन्हें छोड़ना भी नहीं चाहता।

डोली देख रही सब , और अजीब से तरीके से अपने पप्पा को देखती रहती।उसकी बात तो आप सुन ही चुके कि क्या दिमाग में चलता रहता होगा उसके।बच्चों का सोच सोच के मेरा भी माथा दुखने लगता है ।

लता की चिंता बच्चों के बदलते व्यवहार को लेकर थी ।

“जब इतनी हिम्मत आज तक बना कर रखी न तुमने तो अब आगे भी विश्वास रखो।सब सही होगा।जो गलत है वही खुद को साबित करने का प्रयास करता है लता ।सही को खुद को साबित करने की ज़रूरत नहीं पड़ती।”

“सही कहा भाभी आपने ! बस अब अपने बच्चों के  भविष्य के लिए ही जी रही हूँ। अगर मेरे बच्चों के लिए उनके पिता का हाथ ,उनका साथ ज़रूरी है तो मैं उनके आने पर ,उनके मिलने पर तो रोक नहीं लगाऊँगी क्योंकि सबको पता चल गया तो अब रिश्तेदार भी कहते कि जैसा भी है निभा ले।कोई कहता कि तेरी गलती होगी जो बार बार तेरा आदमी भाग जाता तेरा पल्लू छुड़ा के।

इतना सब अपने ऊपर  सुनके भी बच्चों को जितना अच्छा सीखा सकती ,जितना अच्छा खिला सकती पाल सकती मैंने  तो अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी और आगे भी अपनी कोशिश करती रहूँगी।आगे तो भगवान ही मालिक है।”

 

“पर एक बात बताओ लता कि अगर तेरी गुड़िया का पप्पा कल को दिल से ,तुम्हारे पास लौट आया तो क्या उसे मन से अपना लोगी ?”

 

“भाभी , जब पहले गया था तो मुझे  लगता था कि मैं कैसे खुद को सभालूंगी खुद को छोटे छोटे बच्चों के साथ। तब मैंने सब तरह के समझौते कर लिए।रिश्ते नाते वाले हमेशा बोलते थे कि वो लौट आएगा और आ भी गया।वो एक भाभी के यहां काम करती थी न उसने  तब बोला था कुछ कि ” किसी को बाँध के रखोगे और उसने जाना होगा तो वो तो भी चला जाएगा और जो तुम्हारा है उसे कोई बांध के रखेगा तो भी वो लौट आएगा।” भाभी उस वकत तो मैं इन बातों के मतलब ही ढूँढती रह जाती थी और जब गुड़िया के पप्पा  लौट आये तो लगा कि उस भाभी ने सही कहा था।मेरा था इसलिए लौट आया सोचकर खुश हो गई मैं तो।पर अब ये बातें बेकार लगती।”

“ऐसा क्यों …? क्या अब उम्मीद नहीं उसके वापिस आ जाने की ?”

“उम्मीद रखनी भी नहीं न भाभी ..! बार बार धोखा दे एक आदमी तो उसका क्या इंतज़ार करना ? बच्चों को है क्योंकि अभी इतने बड़े नहीं हुए वो कि अपने पप्पा के बिना रह पाएँ। अगर बच्चों का प्यार कच्चा है तो उनकी नफरत भी कच्ची है अपने पिता के लिए। वकत के साथ बच्चे खुद समझ जाएँगे क्या सही क्या गलत ।मैं ज़बरदस्ती क्यों करूँ बच्चों के साथ ! बस मेरा मन नहीं अब कि साइट पर रखी औरतें उसे मन भर जाने पर धक्का दें और वो वापिस मेरे पास आकर गिरे ,या फिर वो खुद ठोकर खाकर आ जाए।सच्ची भाभी ..अब न उठा पाऊँगी उसे ! बस अब और नहीं ..!  मैं तो कहती हूँ वो बच्चों का पिता ,बच्चों का पप्पा बनकर रहे ,मेरा आदमी बनकर नहीं !”

 

लता ने सभी सोच ,सभी दलीलों से हटकर अपने दिल की एक बात कह दी थी।आने वाले समय में क्या होना था ,क्या नहीं पर एक बात तो निश्चित थी कि उसके संघर्षों से ,उसके हौसले की  और उसके आत्मविश्वास की महक आ रही थी जो कह रही थी कि ..

“मैं अपनी परिस्थतियों का परिणाम नहीं।मैं अपने फैसलों का परिणाम हूँ !!”

रश्मि तारिका

रश्मि तारिका

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