रेगिस्तान में फूल

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रेगिस्तान में फूल

जीवन के मौसम कब बदल जाएँ कहा नहीं जा सकता | कभी प्रेम की बारिशों से भीगता जीवन शुष्क रेगिस्तान में बदल जाए, पर कहीं ठहर जाना, मनुष्य की वृत्ति भले ही हो जीवन की नहीं | आइए पढ़ें बारिशों के बाद एक ऐसे ही रेगिस्तान में ठहरे जीवन की कहानी ..

रेगिस्तान में फूल

 

वह मेरी तरफ हैरान सा होता हुआ देखता रहा | जैसे मैंने कोई बहुत बड़ी बात कह दी हो |अब इसमें मेरा क्या दोष था ? अब इसमें मेरा दोष क्या था ? मैंने उसे कोई ऐसा अवसर नहीं दिया था की वो समझने लगे की मुझे उससे प्यार है | मुझे तो अपने देश वापस जाना ही था | उसके इस एकतरफा प्यार की जिम्मेदारी लेने को मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी | मुझे अहसास  था की पीटर एक सीधा -सादा सच्चा  इंसान है | पर मैं क्या करती मेरे दिमाग में तो यह कूट कूट कर भरा था की यहाँ के अंग्रेज लोग फरेबी, दिलफेंक और अस्थायी रूप से घर गृहस्थी पर ध्यान देते हैं |

 

अपने देश की बात ही कुछ अलग है |संस्कार कए भूत सर चढ़ कर बोल रहा था | वह अमरीकी एक ही कार्यालय में काम करता हुआ कब मुझसे प्यार कर बैठा, उस समय शायद उसे भी पता ना चला | चे की फुरसत पर वह मुझे निहारता मुझे कुछ कहने से सकुचाता |पर अब मुझे लगने लगा था कि  उसके मन में कोई और ही दवंद चल रहा है |

 

जब मैंने पीटर से इंडिया जाने की बात कही उसे विश्वास ही नहीं हुआ | उसकी हैरानगी चरम सीमा पर तब पहुंची जब मैंने उससे कहा कि, “मेरी शादी होने वाली है | और मैं नौकरी छोड़ कर हमेशा के लिए जा रही हूँ |”

वह एकदम अवाक सा मेरी ओर देखता रह गया |

उसकी नीली आँखों में मुझे समुद्र की गहराई नजर आने लगी |

 

अपनी नम हुई आँखों को तनिक छुपाते हुए वो एकदम से बोल उठा, “ हे (hey ) listen meera, please don’t go.I will miss you .”

 

“अरे यह क्या उसमें इतना साहस कैसे आ गया |मुझे उसकी बात पर अचानक हँसी आ गई | मुझे मुसकुराते देख वो अचानक से गंभीर हो गया |उसे गंभीरता से उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और बोल उठा, “please marry me meera.”

 

उसकी हालत देखकर मुझे लगा जैसे कोई बच्चा अपने खिलौने के लिए जिद कर रहा हो | मैं क्या जवाब देती ? चुपचाप अपने आप को समेटते हुए घर चली आई, और दो दिन बाद की फ्लाइट की तैयारी करने लगी |

 

दिन कैसे उड़े पता  नहीं चला | मेरी शादी एक फौजी अफसर से बड़ी धूमधाम से हुई |अपने सपनों की रंग भरी दुनिया में मैं खो गई |ना मुझे पीटर याद रहा और ना ही उसका शादी का प्रस्ताव |पर कहते हैं ना किस्मत कब पलट जाए किसी को पता ही नहीं चलता |

 

6 महीने भी ना बीते थे कि मेरी दुनिया जो खुशियों से सराबोर थी उजाड़ गई | मेरे पति मरणोंपरांत परमवीर चक्र मेरे हाथों में पकड़ा कर, मुझे रोता बिलखता छोड़ गए | शहादत की गरिमा, तालियों की गड़गड़ाहट मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती |

 

दो साल बीत गए | जिंदगी थोड़ी बहुत पटरी पर चल निकली थी | अचानक एक दिन पीटर का फोन आया | मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ | इतने दिनों बाद मैं उसे कैसे याद आ गई , और मेरा नंबर उसे कहाँ से मिला ? मैं थोड़ा घबरा गई |उधर से आवाज आई, “क्या मैं मीरा जी से बात कर रहा हूँ ?”

 

 

एक क्षण को मई स्तबद्ध रह गई मैंने कहा “जी कहिए, क्या आप पीटर हैं ?”

इतना सुनते ही वो भी खुश हो गया, “अरे वाह तुम मुझे भूली नहीं?”

वह मुझसे  मिलना चाहता था |मैंने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया | शाम होने से कुछ पहले ही वो मेरे घर पहुँच गया | उसने बताया कि वो किसी ऑफिसियल काम से इंडिया आया है | कुछ औपचारिक बातों के बाद उसने मेरे पति के बारे में पूछा | मेरा दुख सुन कर उसकी आँखें भर आईं | थोड़ी देर वो यूँ ही चुपचाप बैठा रहा और फिर भारी मन से फिर आने का वायदा कर वह चला गया |

 

 

आज मैं पीटर के साथ उसके देश जा रही हूँ, उसकी पत्नी बनकर | बीते दो साल के अंतराल में पीटर मुझे भुला नहीं पाए | मेरी बिखरी जिंदगी को अपने सशक्त हाथों में थामकर उन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि आत्मीयता, संस्कार और भावनाओं का कोई देश जात पात  और मजहब नहीं होता | वह इन सबसे ऊपर है |

 

आज सब कुछ बदल चुका है | वो मेरी साथ वाली सीट पर मेरे हाथों को कसकर पकड़ कर बैठे हैं | जैसे कह रहे हों , “ मीरा  अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं जाने दूंगा |

स . सेन गुप्ता

एस सेनगुप्ता

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