सुशांत सुप्रिय की कवितायेँ

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सुशांत सुप्रिय की कवितायेँ









सुशांत सुप्रिय की कवितायेँ 



1. खो गई चीज़ें
                              
वे कुछ आम-सी चीज़ें थीं
जो मेरी स्मृति में से
खो गई थीं

वे विस्मृति की झाड़ियों में
बचपन के गिल्ली-डंडे की
खोई गिल्ली-सी पड़ी हुई थीं


वे पुरानी ऐल्बम में दबे
दाग़-धब्बों से भरे
कुछ श्वेत-श्याम चित्रों-सी दबी हुई थीं

वे पेड़ों की ऊँची शाखाओं में
फड़फड़ाती फट गई
पतंगों-सी अटकी हुई थीं

वे कहानी सुनते-सुनते सो गए
हम बच्चों की नींद में
अधूरी-सी खड़ी हुई थीं

कभी-कभी जीवन की अंधी दौड़ में
हम उनसे यहाँ-वहाँ टकरा जाते थे
तब हम अपनी स्मृति के
किसी ख़ाली कोने को
फिर से भरा हुआ पाते थे …

खो गई चीज़ें
वास्तव में कभी नहीं खोती हैं
दरअसल वे उसी समय
किसी और जगह पर मौजूद होती हैं

                          ———-०———-









                            2.  स्वप्न
                           ————-
                                             
वह एक स्वप्न था

मेरी नींद में
आना ही चाहता था कि
टूट गई मेरी नींद

कहाँ गया होगा वह स्वप्न —
भटक रहा होगा कहीं
या पा ली होगी उसने
किसी की नींद में ठौर

डर इस बात का है कि
यदि किसी की भी नींद में
ठिकाना न मिला उसे तो
कहीं निराश हो कर
आत्म-हत्या न कर ले
आज की रात
एक स्वप्न

                              ———-०———-


                                 3. वे जो वग़ैरह थे
                               ———————
                                                              
वे जो वग़ैरह थे

वे बाढ़ में बह जाते थे
वे भुखमरी का शिकार हो जाते थे
वे शीत-लहरी की भेंट चढ़ जाते थे
वे दंगों में मार दिए जाते थे

वे जो वग़ैरह थे
वे ही खेतों में फ़सल उगाते थे
वे ही शहरों में भवन बनाते थे
वे ही सारे उपकरण बनाते थे
वे ही क्रांति का बिगुल बजाते थे

दूसरी ओर
पद और नाम वाले ही
सरकार और कारोबार चलाते थे
उन्हें भ्रम था कि वे ही संसार चलाते थे

किंतु
वे जो वग़ैरह थे
उन्हीं में से
क्रांतिकारी उभर कर आते थे
वे जो वग़ैरह थे
वे ही जन-कवियों की
कविताओं में अमर हो जाते थे …

                            ———-०———-






                                 4. जब तक
                               —————
                                                       –
जब तक स्थिति पर
क़ाबू पाने
पुलिस आती है
जल चुके होते हैं
दर्जनों घर आगज़नी में

जब तक
फ़्लैग-मार्च के लिए
सेना आती है
मर चुके होते हैं
दर्जनों लोग दंगों में

जब तक
शांति-वार्ता की
पहल की जाती है
आ चुकी होती है
एक बड़ी दरार मनों में

जब तक
सूरज दोबारा
उगता है
अँधेरा लील चुका होता है
इंसानियत को …



प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
         A-5001,
         गौड़ ग्रीन सिटी ,
         वैभव खंड ,
          इंदिरापुरम ,
          ग़ाज़ियाबाद -201010
         ( उ. प्र. )
मो: 8512070086
ई-मेल: sushant1968@gmail.com
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