एक पाती भी /बहन के नाम ( निशा कुलश्रेष्ठ )

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एक चिट्ठी भाई के नाम.. 
प्रिय  भाई अतुल 
तुम्हे याद है जब हम छोटे थे तब तुम हमेशा राखी पर रूठ जाया करते थे|  तुम्हारे रूठ जाने के  अपने कारण होते थे.. जहाँ  हमें राखी का इन्तजार रहता था  वहां तुम्हे राखी पर हमेशा भन्नाहट रहती थी तुम्हे याद है न?
        हमेशा हम बहिने राखी पर तुम्हारे पीछे पीछे राखी लिए घूमती रहती थीं और तुम आगे आगे टेड़े टेड़े चलते जाते थे , तुम्हारा कहना होता था कि हम बहिने राखी तुमसे पैसे लेने के लिए बांधती हैं 🙂  और तुम्हे नाराजगी इस बात से भी थी कि इन्हें पैसे भी दो  और इनके पैर भी छुओ हा हाहा हा. भाई क्या दिन थे वो भी| मुझे याद है तब मैं तुम्हे खूब मनाती थी राखी बंधवाने को सुबह से शाम हो जाती थी  |
 तुम तरह तरह से ब्लैकमेल करते थे पता है कैसे कैसे?  तुम कहते थे   मुझे झूला झुलाओ  पहले तब बंधवाऊँगा राखी |  और तब मैं तुम्हे खूब देर देर तक झूला झुलाती थी | कभी कहते मेरे लिए पानी लेकर आओ | और फिर  भी उसके बाद भी तुम इसी मिज़ाज में जीते थे………. नहीं बंधवाउंगा तब तुमको पापा से जब शिकायत करने की धमकी दी जाती थी तब  कहीं राखी  बंधवाते थे तुम  🙂  वो भी दिन थे कभी भाई..अब जब पापा नहीं हैं तो उनके जाने के बाद वर्षों बाद मैं तुम्हे राखी बाँधूँगी……. सब होंगे… पर हमारे पापा होंगे अब कभी…….. किसी भी त्यौहार पर :'( 
   पता है भाई… कल जब तुम्हे फोन किया मैंने और पापा को याद कर खूब रोई तुम भले ही मुझसे मीलों दूर थे… पर तुम्हारे इस कथन ने  ” जीजी तुम चुप हो जाओ……… मैं हूँ न अब पापा नहीं हैं तो क्या मैं बड़ा   हूँ न अब… सब ठीक होगा धीरे धीरे… तुम परेशां मत हो”  | मुझे जो हिम्मत दी है न , वह हर उपहार से बड़ी है | 
 तुम सभी भाई सदा खुश रहो | तुम्हारी उम्र लम्बी हो यही दुआ करतीहूँ | 
निशा कुलश्रेष्ठ 

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