हामिद का चिंमटा

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संगत का
साथी हो सकता है यह
औखत पर औज़ार


फकीर का मँजीरा
सिपाही का तमंचा




सबसे सलोना
यह खिलौना
जो साबुत रहेगा
अन्धड़ पानी तूफ़ान में
सहता सारे थपेड़े


कविता मेरे लिए
तीन पैसे का चिमटा है
जिसे बचपन के मेले में
मोल लिया था मैंने


कि जलें नहीं रोटियाँ सेंकने वाले हाथ
कि दूसरों को दे सकूँ अपने चूल्हे की आग !


प्रेम रंजन अनिमेष 
कविता कोष से साभार 
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