टाईम है मम्मी

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टाइम है मम्मी
किरण सिंह
जॉब के बाद
ऋषि पहली बार घर आ रहा था..!
कुछ छःमहीने ही हुए होंगे किन्तु लग रहा था कि छः वर्षों
के बाद आ रहा है ! बैंगलोर  से आने वाली फ्लाइट
पटना में ग्यारह बजे लैंड करने वाली थी.पर मेरे पति को रात भर नींद नहीं आई.उनका वश
चलता तो रात भर एयरपोर्ट पर ही जाकर बैठे रहते..! ! कई बार ऋषि से बात करते रहे कब
चलोगे.. थोड़ा जल्दी ही घर से निकलना..सड़क जाम भी हो सकता है…… आदि आदि..! उनकी
इस बेचैनी को देखते हुए मैंने थोड़ा चुटकी लेते हुए कहा चले जाइए ना रात में ही एयरपोर्ट..!



मैं तो ऋषि के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाई ही थी किन्तु पिता के
मन को माता से ही प्रतिस्पर्धा…. कहां मानने वाला था पिता का दिल सो उन्होंने बाजार
से खरीद कर घर में ऋषि के मनपसंद फलों और मिठाइयों का ढेर लगा दिया..! शायद उनका वश
चलता तो पूरा बाजार ही घर में उठा लाते..!

एयरपोर्ट घर से तीन चार किलोमीटर ही दूर होगा और जाने में टाइम
भी पांच से दस मिनट ही लगता…
पर मेरे पति नौ बजे ही एयरपोर्ट चले गए… एक पिता के
हृदय का कौतूहल देखकर मैंने भी बिना टोके जाने दिया….! पहली बार मुझे पिता का प्रेम
माता से भारी प्रतीत हो रहा था….!
मैंने घर का मेन गेट खुला छोड़ रखा था इसलिए डोरवेल भी नहीं बजा
और घर में प्रवेश कर गए बाप बेटे.. पहली बार मैंने उन्हें इतना खुश होकर मित्रवत वार्तालाप
करते हुए देखकर मुझे भी काफी खुशी हुई साथ में डर भी लग रहा था कि कहीं मेरी नज़र ही
न लग जाए…!


मैं अभी खुशियों के अनुभूतियों में डूबी हुई थी कि ऋषि अपने स्वभावानुसार
सबसे पहले फ्रिज खोला ये ऋषि की बचपन की ही आदत थी देखने की कि फ्रिज में क्या क्या
है…! और फिर कोल्ड्रिंक्स का बॉटल निकाल कर लाया..और हांथ में लेकर अपने रूम में
चला गया ! और फिर बैग खोलकर ढेर सारे गिफ्ट्स निकाल कर लाया……. मेरे लिए टैब्लेट,
अपने पापा के और चाचा के लिए कीमती घड़ी………… आदि……! पहले तो पतिदेव ने
कहा क्या जरूरत थी बेटा इतना खर्च करने की लेकिन जब ऋषि ने पहनाया तो उनके चेहरे की
खुशी देखते ही बनती थी ठीक जैसे कभी ऋषि अपना गिफ्ट देखकर खुश हुआ करता था….!


मैंने जो टेबल पर कई तरह के व्यंजन परोसे थे दोनों बाप बेटे व्यंजनों
का आनंद ले रहे थे.. फिर मेरे पति ने याद दिलाया मैंने काजू की बरफी लाई है उसे भी
लाओ और देखना कच्चा गुल्ला भी………………. मैं परोस रही थी और बाप बेटे बातों
में इतने व्यस्त..कि उस दिन मेरे पति आफिस भी नहीं गए..! पिता पुत्र को इतनी देर तक
बातें करते देख बहुत खुशी हो रही थी और सबसे खुशी इस बात की कि सिर्फ उपदेश देने वाले
पिता आज पुत्र की सुन रहे… और मेरे आँखों के सामने पिछला स्मरण चलचित्र की तरह घूमने
लगा…!

जब ऋषि सेमेस्टर एग्जाम के बाद छुट्टियों में घर आता था…. प्रतीक्षा
और स्नेह तो तब भी इतना ही करते थे.. तब भी फल और मिठाइयों से घर भर देते थे ऋषि के
पिता….! सिर्फ अब और तब में अन्तर इतना ही था कि बेटे के घर में प्रवेश करते ही शुरू
हो जाता था पिता का प्रश्न और उपदेश….. एग्जाम कैसा गया…. मेहनत से ही सफलता मिलती
है…………


 सक्सेस का एक ही मूलमंत्र है…. मेहनत  मेहनत और मेहनत और ऋषि का हर बार एक ही जवाब होता
था……. मेहनत करने वाले जिन्दगी भर मेहनत करते रह जाते हैं और दिमाग वाले हमेशा
ही आगे निकल जाते हैं……. मेहनत तो मजदूर भी करते हैं कहां सफलता मिलती है उन्हें……!
और फिर होने लगती थी पिता पुत्र में गर्मागर्म बहस और मैं बड़ी मुश्किल से बहस को शांत
कराती…….!



मैं ऋषि को समझाने लगती बेटा क्यों नहीं सुन लेते पापा की आखिर
वे तुम्हारे लिए ही तो कहते हैं….
खामखा नाराज कर दिया तुमने……..! और ऋषि कहता
गलत क्यों सुनें वे कहता था कि आदमी को जिस विषय में अभिरुचि है यदि उस कार्य को करे
तो विशेष मेहनत करने की जरूरत नहीं होती है…! और लोग परेशान इसलिए रहते हैं कि वे
अपने कैरियर बनाने के लिए विषय का चुनाव अपनी अभिरुचि के अनुसार नहीं करते…और इसीलिए
उन्हें अपना काम उबाऊ लगता है और विशेष मेहनत की आवश्यकता पड़ती है..! उसने फिर मुझे
उदाहरण सहित समझाया कि मम्मी जैसे आपको लेखन कार्य में अभिरुचि है तो आपको कविता या
कहानी लिखने के लिए अलग से मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती होगी बल्कि आपके लिए मनोरंजक
होगा….! और यही कार्य किसी और को करने के लिए दिया जाए तो यह उसके लिए बहुत बड़ी
चुनौती होगी..! और मैं ऋषि से पूर्णतः सहमत हो जाती थी…..!

सबसे मुश्किल तब होता था 
ऋषि के रात में जगने वाली आदत से……!
मैं तो रात में खाने के लिए ऋषि के
मनपसंद व्यंजन बनाकर रख देती थी और सो जाती थी…! पर कभी-कभी रात में पतिदेव के चिल्लाने
की आवाज सुनकर उठ जाती थी….. रात रात भर कम्प्यूटर पर क्या करते हो …….. ये कौन
सा रुटीन है…………… जब तक रुटीन सही नहीं रहेगा तब तक लाइफ में कुछ नहीं कर
सकते……………. कौन सी कम्पनी तुम्हारे लिए रात भर खुली रहेगी…….. आदि आदि…..!
और शान्ति
स्थापना  हेतु मेरी नाइट ड्यूटी लग जाती थी…!
पर आज तो सूरज पश्चिम में उग आया था…! ऋषि बोल रहा था और उसके
पिता सुन रहे थे कभी कभी कुछ पूछने के लिए बोलते थे बाकी समय सिर्फ सुन रहे थे सत्यनारायण
भगवान् की कथा की तरह….! एक वक्ता इतना अच्छा श्रोता कैसे बन गया मुझे खुशी के साथ
साथ आश्चर्य हो रहा था….! मैं तो विजयी मुद्रा में बैठी देख और सुन रही थी……..! 

अंत में मुझसे रहा नहीं गया और मैंने चुटकी लेते हुए ऋषि से कहा ऋषि तुम्हारा घड़ी
तो कमाल कर दिया……… फिर ऋषि ने भी मुस्कुराते हुए कहा.. टाइम है मम्मी….!

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©कॉपीराइट किरण सिंह


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