क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?

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क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?
                मानव मस्तिष्क हमेशा कुछ नया और अद्भुत खोजने
की कोशिश करता है। विज्ञान जगत द्वारा रोमांच की अजीबोगरीब दुनिया में छिपे
रहस्यों का पता लगाने के लिये रोज कोई न कोई नई तकनीक विकसित की जा रही है। आदिकाल
से ही इस धरती पर रहने वाले लोगों की दिलचस्पी हमेशा ये जानने में रही है कि इस
पृथ्वी लोक के अलावा क्या ब्रह्माण्ड कोई दूसरा ग्रह भी है जहां कोई जीव रहते हैं
?
विज्ञान को या वैज्ञानिकों को अभी तक ऐसे कोई
पक्के सुबूत नहीं मिले हैं जिन्हें देखकर ये दावा किया जा सके कि एलियनों का
अस्तित्व वाकई में है। संसार में दावे प्रतिदावे तरह- तरह के रहे हैं। कभी किसी
अज्ञात उड़न तश्तरी देखने का दावा तो कभी धरती पर किसी हलचल का दावा। लेकिन विभिन्न
तरह के साक्ष्य और भी हैं जो संकेत देते हैं कि हो सकता है कि एलियन होते ही हों
और वो आज भी धरती पर आते हों और फिर चले जाते हों। क्या आपने कभी सोचा कि धरती पर
ऐसे कई निशान और सुराग मिले हैं जो ना सिर्फ बहुत पुराने हैं बल्कि वो इतने सटीक
हैं कि ये सोचना मुश्किल है कि उस काल में रह रहे लोगों ने उन्हें बनाया होगा।
                कुछ वर्षों पूर्व जब अंध-विश्वास के कारण
विज्ञान अपनी उपस्थिति तथा उपयोगिता नहीं सिद्ध कर पा रहा था। तब लोग
प्रेत-आत्माओं और काले जादू की दुनिया पर विश्वास रखते थे। प्रेत-आत्माओं और काले
जादू की दुनिया  से मानव जाति का अज्ञान
रूपी पर्दा उठाने के बाद वैज्ञानिक ऐसे रास्तों को खोजना चाह रहे हैं जो उन्हें
ब्रह्माण्ड में स्थित दूसरे ग्रहों में रहने वाले प्राणियों तक पहुँचा सके। साथ ही
उनके साथ ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान कर सके। 

जाने क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?


                वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से 14 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का कोई अस्तित्व
नहीं था। पूरा ब्रह्माण्ड एक छोटे से अति सघन बिंदु में सिमटा हुआ था। अचानक एक
जबदस्त विस्फोट- बिग बैग हुआ और ब्रह्यांड अस्तित्व में आया। महाविस्फोट के
प्रारभिक क्षणों में आदि पदार्थ व प्रकाश का मिला-जुला गर्म लावा तेजी से चारों
तरफ बिखरने लगा।  कुछ ही क्षणों में
ब्रह्माण्ड व्यापक हो गया। लगभग चार लाख साल बाद फैलने की गति धीरे-धीरे कुछ धीमी
हुई। ब्रह्माण्ड थोड़ा ठंडा व विरल हुआ और प्रकाश बिना पदार्थ से टकराये बेरोकटोक
लम्बी दूरी तय करने लगा और ब्रह्माण्ड प्रकाशमान होने लगा। तब से आज तक ब्रह्यांड
हजार गुना अधिक विस्तार ले चुका है। ब्रह्माण्ड बनने की खोज के लिए जिनेवा के पास
हुए अब तक के सबसे बड़े वैज्ञानिक महाप्रयोग में शामिल वैज्ञानिकों का दावा था कि
उन्हें इस महाप्रयोग से हिग्स बोसोन कण मिला है। भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने आगाह
किया है कि वैज्ञानिकों ने जिस कण हिग्स बोसोन की खोज की है
, उसमें समूचे ब्रह्मांड को तबाह-बरबाद करने की
क्षमता है।

क्या है ब्रह्माण्ड का भविष्य 

                ब्रह्यांड का आने वाले समय में क्या भविष्य
क्या है
, सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न
है
? क्या अनंत ब्रह्माण्ड
अनंतकाल तक विस्तार लेता ही जाएगा
? सैद्धांतिक
दृष्टि से इस बारे में सच्चाई यह उभरती है कि चारों ओर चक्कर लगाने वाले ग्रहों
,
उपग्रहों, धूमकेतुओं, क्षुद्रग्रहों
तथा अन्य अनेक आकाशीय पिण्डों के समूह या परिवार को सौरमण्डल कहते है। कोई भी ग्रह
एक विशाल
, ठंडा खगोलीय पिण्ड होता
है जो एक निश्चित कक्षा में अपने सूर्य की परिक्रमा करता है। ब्रह्माण्ड में
अवस्थित आकाशीय पिंडों का प्रकाश
, उद्भव, संरचना और उनके व्यवहार का अध्ययन खगोलिकी का
विषय है। अब तक ब्रह्माण्ड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग
19 अरब आकाश गंगाओं के होने का अनुमान है और
प्रत्येक आकाश गंगा में लगभग
10 अरब तारे हैं।
आकाश गंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है। हमारी पृथ्वी पर आदिम जीव
2 अरब साल पहले पैदा हुआ और आदमी का धरती पर
अवतरण
10-20 लाख साल पहले हुआ।
                एक प्रकाशवर्ष वह दूरी है जो दूरी प्रकाश एक
लाख छियासी हजार मील प्रति सेकेंड की गति से एक वर्ष में तय करता है। उदाहरण के
लिए सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सवा नौ करोड़ मील है
, प्रकाश यह दूरी सवा आठ मिनट में तय करता है। अतः पृथ्वी से
सूर्य की दूरी सवा आठ प्रकाश मिनट हुई। जिन तारों से प्रकाश आठ हजार वर्षों में
आता है
, उनकी दूरी हमने पौने
सैंतालिस पद्म मील आँकी है। लेकिन तारे तो इतनी इतनी दूरी पर हैं कि उनसे प्रकाश
के आने में लाखों
, करोड़ों, अरबों वर्ष लग जाता है। इस स्थिति में हमें इन
दूरियों को मीलों में व्यक्त करना संभव नहीं होगा और न कुछ समझ में ही आएगा।
इसीलिए प्रकाशवर्ष की इकाई का वैज्ञानिकों ने प्रयोग किया है।

अनादी – अंनत है ब्रह्माण्ड 


                मान लीजिए, ब्रह्माण्ड के किसी और नक्षत्रों आदि के बाद बहुत दूर-दूर
तक कुछ नहीं है
, लेकिन यह बात
अंतिम नहीं हो सकती है। यदि उसके बाद कुछ है तो तुरंत यह प्रश्न सामने आ जाता है
कि वह कुछ कहाँ तक है और उसके बाद क्या है
? इसीलिए हमने इस ब्रह्मांड को अनादि और अनंत माना। इसके
अतिरिक्त अन्य शब्दों में ब्रह्मांड की विशालता
, व्यापकता व्यक्त करना संभव नहीं है।
                अंतरिक्ष में कुछ स्थानों पर टेलिस्कोप से गोल
गुच्छे दिखाई देते हैं। इन्हें स्टार क्लस्टर या तारा गुच्छ कहते हैं। इसमें बहुत
से तारे होते हैं जो बीच में घने रहते हैं और किनारे बिरल होते हैं। टेलिस्कोप से
आकाश में देखने पर कहीं कहीं कुछ धब्बे दिखाई देते हैं। ये बादल के समान बड़े सफेद
धब्बे से दिखाई देते हैं। इन धब्बों को ही नीहारिका कहते हैं। इस ब्रह्माण्ड में
असंख्य नीहारिकाएँ हैं। उनमें से कुछ ही हम देख पाते हैं। इस अपरिमित ब्रह्माण्ड
का अति क्षुद्र अंश हम देख पाते हैं। आधुनिक खोजों के कारण जैसे जैसे दूरबीन की
क्षमता बढ़ती जाती है
, वैसे वैसे
ब्रह्माण्ड के इस दृश्यमान क्षेत्र की सीमा बढ़ती जाती है। परन्तु वर्तमान परिदृश्य
में ब्रह्माण्ड की पूरी थाह मानव क्षमता से बहुत दूर है।
                दूरबीन से ब्रह्माण्ड को देखने पर हमें ऐसा
प्रतीत होता है कि हम इस ब्रह्मांड के केंद्रबिंदु हैं और बाकी चीजें हमसे दूर
भागती जा रही हैं। यदि अन्य आकाश गंगाओं में प्रेक्षक भेजे जाएँ तो वे भी यही
पाएंगे कि इस ब्रह्माण्ड  के केंद्र बिंदु
हैं
, बाकी आकाश गंगाएँ हमसे
दूर भागती जा रही हैं। अब जो सही चित्र हमारे सामने आता है
, वह यह है कि ब्रह्माण्ड का समान गति से विस्तार हो रहा है।
और इस विशाल प्रारूप का कोई भी बिंदु अन्य वस्तुओं से दूर हटता जा रहा है।
                सूर्य हमारे सौरमण्डल का केंद्र है, जिसके चारों ओर 8 ग्रह- बुध, शुक्र, मंगल, पृथ्वी, बृहस्पति,
शनि, यूरेनस और नेप्च्यून चक्कर लगाते हैं। अधिकतर ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो
अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल का निर्माण
79 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत आॅक्सीजन, 1 प्रतिशत जल एवं 0.3 प्रतिशत आॅर्गन से हुआ है। पृथ्वी, सूर्य से तीसरा ग्रह है और यह सौरमंडल का अकेला ऐसा ग्रह है, जहां जीवन की उपस्थिति है। अंतरिक्ष से देखने
पर पृथ्वी नीले-सफेद रंग के गोले के रूप में दिखाई देती है। सूर्य एक औसत तारा है।
इस ब्रह्माण्ड में हर एक तारा सूर्य सदृश है। बहुत-से तारे तो ऐसे हैं जिनके सामने
अपना सूर्य अणु (कण) के बराबर भी नहीं ठहरता है। जैसे सूर्य के ग्रह हैं और उन
सबको मिलाकर हम सौर परिवार के नाम से पुकारते हैं
, उसी प्रकार हरेक तारे का अपना अपना परिवार है।
                चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है जिस पर मानव के
कदम पहुँच चुके हैं। मंगल ग्रह की खोज के अभियान पर भारत सहित अन्य देशों के
वैज्ञानिकों ने अपने यानों को मंगल ग्रह की कक्षा में भेजने में सफलता प्राप्त की
है। इस ब्रह्माण्ड में सबसे विस्मयकारी आकाश गंगा (गैलेक्सी) का दृश्य है। रात्रि
के खुले (जब चंद्रमा न दिखाई दे) आकाश में प्रत्येक मनुष्य इन्हें नंगी आँखों से
देख सकता है। देखने में यह हल्के सफेद धुएँ जैसी दिखाई देती है
, जिसमें असंख्य तारों का बाहुल्य है। यह आकाश
गंगा टेढ़ी-मेढ़ी होकर बही है। देखने में आकाश गंगा के तारे परस्पर संबद्ध से लगते
हैं
, पर यह दृष्टि भ्रम है। एक
दूसरे से सटे हुए तारों के बीच की दूरी अरबों मील हो सकती है। जब सटे हुए तारों का
यह हाल है तो दूर दूर स्थित तारों के बीच की दूरी ऐसी गणनातीत है जिसे कह पाना
मुश्किल है। इसी कारण से ताराओं के बीच तथा अन्य लंबी दूरियाँ प्रकाशवर्ष में मापी
जाती हैं।

क्या है सुनियोजित विधि व्यवस्था का आधार


                सृष्टि का गतिचक्र एक सुनियोजित विधि व्यवस्था
के आधार पर चल रहा है। ब्रह्माण्ड में अवस्थित विभिन्न नीहारिकाएं ग्रह-नक्षत्रादि
परस्पर सहकार-संतुलन के सहारे निरन्तर परिभ्रमण विचरण करते रहते हैं। अपना भू-लोक
सौर मंडल के वृहत परिवार का एक सदस्य है। सारे परिजन एक सूत्र में आबद्ध हैं। वे
अपनी-अपनी कक्षाओं में घूमते तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य स्वयं अपने
परिवार के ग्रह उपग्रह के साथ महासूर्य की परिक्रमा करता है। इतने सब कुछ जटिल
क्रम होते हुए भी सौर
, ग्रह, नक्षत्र एक दूसरे के साथ न केवल बंधे हुए हैं
वरन् परस्पर अति महत्वपूर्ण आदान-प्रदान भी करते हैं।
                पृथ्वी का सूर्य से सीधा सम्बन्ध होने के कारण
सौर-परिवर्तन से यहाँ का भौगोलिक परिवेश और पर्यावरण अत्यन्त प्रभावित होता है। यह
सृष्टि केवल मनुष्य के लिए ही नहीं है वरन् इस पर जीव-जन्तुओं व वनस्पति का भी
पूरा अधिकार है। अतः मनुष्य को अपार संसाधनों का उपयोग विवेकी ढंग से करना चाहिए
तथा उन तत्वों तथा प्राकृतिक शक्तियों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अरबों वर्ष
पूर्व यह प्यारी धरती सहित ब्रह्माण्ड हमें सौंपा है।
                अब इन्सानी सोच को बदल डालने के लिए अनेक अवसर
आ जुटे हैं। मानव मन में जगमगाते हुए ये ग्रह-नक्षत्र
, आकाशगंगायें और नीहारिकायें चिरअतीत से यह जिज्ञासा जगाते
रहे हैं कि क्या इस विराट ब्रह्माण्ड में हम अकेले ही हैं अथवा पृथ्वी से बाहर और
भी कहीं जीवन है। अब इन्सानी सोच को बदल डालने के लिए अनेक अवसर आ जुटे हैं।

अभी भी ब्रह्माण्ड का रहस्य बना हुआ है 


                आज जहाँ हम अपनी छोटी सी धरती को द्वीपों और
देशों में बांटते फिर रहे हैं। इसके छोटे से टुकड़े के लिए महाविनाश के सरंजाम
जुटाते फिरते हंै
, वहीं अब
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दे डाली है कि मानव अभी से अपने को विश्व परिवार का ही
नहीं वरन् ब्रह्माण्ड परिवार का सदस्य मानकर अपनी संकुचित सोच में बदलाव लाए।
                नया युग प्रस्तुत करने वाली इस नयी सदी में
मनुष्य देश-जाति और धर्मो की संकीर्ण तथा अज्ञानतापूर्ण 
परिधि में बँधा न
रहेगा। समूची पृथ्वी एक राष्ट्र का रूप लेगी
, एक मानवतावादी विज्ञान विकसित होगा, एक भाषा बनेगी, एक मुद्रा बनेगी और एक संस्कृति पनपेगी। अगले दिनों हमें अपना परिचय धरती के
निवासी के रूप में देना पड़ेगा तभी हम ब्रह्माण्ड के अन्य सुविकसित प्राणियों से
एकता
, आत्मीयता तथा
ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान स्थापित कर पाएँगे।

– प्रदीप कुमार सिंह पाल’, 
लेखकयुग शिल्पी एवं सामाजिक कार्यकर्ता

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