जेल के पन्नों से–हत्यारिन माँ

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जेल के पन्नों से--हत्यारिन माँ

“माँ”, दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द है |माँ शब्द के साथ एक शब्द और जुड़ा है ….ममता, जैसे देवत्व का भाव | माँ, जो जन्म देती है, माँ जो पालती है, चलना सिखाती है ,उंच -नीच समझाती  है,हर बला से बचाती है क्या वो हत्यारिन हो सकती ? वरिष्ठ लेखिका आशा सिंह जी  के धारावाहिक “जेल के पन्नों से” के भाग दो में पढिए एक हत्यारिन माँ की रोंगटे खड़े कर देने की कहानी ..

जेल के पन्नों से–हत्यारिन माँ

यह घटना शायद न लिखती,पर आंध्र प्रदेश के चित्तूर की घटना ने विवश कर दिया। पिता कैमिस्ट्री में पी एच डी, स्कूल के उप प्रधानाचार्य, मां गणित में एम एस सी , तंत्र के जाल में फंस कर अपनी ही दोनों बेटियों की हत्या कर दी। शवों के पास इस विश्वास से बैठे रहे-सत्ययुग आयेगा। बेटियां पुनर्जीवित हो जायेगी।
जब इतने शिक्षित अंधविश्वास में ग्रसित होकर ऐसा कर सकते हैं,तो गांवों में वैसे ही टोना टोटका चलता है।
जेल के बाहर कर्मचारियों के आवास थे।सांय महिलाएं गपशप करतीं।जब ऐसे ही हल्की फुल्की चर्चा चल रही थी,जेल की महिला वार्डन जमुना कैदी को लगभग घसीटते हुए ले जा रही थी।
जमुना को इतना बिफरते नहीं देखा था।
हम लोगों ने उसे टोका-‘आज इतना गुस्सा क्यों आ रहा।
मैडम,जब आप लोगों को इसके बारे में पता चलेगा,आप भी मुझसे ज्यादा अंगारा हो जायेंगी।
हम लोगों ने उस स्त्री पर ध्यान दिया।गोरी चिट्टी नाटे कद की सुंदर महिला चेहरे पर पिटाई की सूजन बिखरे बाल चेहरे पर मुर्दिनी छाई हुई थी।
जमुना ने बात आगे बढ़ाई-राजापुर गांव की अच्छे खाते पीते परिवार की है। कुर्मी परिवार खेतों में बहुत परिश्रम करते हैं। महिलाएं भी पूरा साथ देती हैं।रहन सहन में सीधे और मालदार होते हैं। अक्सर मुकदमे में इनकी गारंटी ली जाती है।
एक बार गांव के ठाकुर की जमानत के लिए बूढ़े पटेल जी पहुंचें।उनकी सादी वेशभूषा देख कर जज को विश्वास न हुआ कि ये इतनी रकम भर सकेंगे।पटेल जी ने पोटली बढाई,साहब गिनवा लें। ज्यादा हो तो वापिस करें,कम हो तो भी बताया जाये।
चौधरी टीकाराम का अच्छा परिवार बीस बीघे की काश्त और पक्का मकान।दो जवान बेटे पिता के साथ हाड़ तोड़ मेहनत करते। दोनों बेटो का ब्याह कर दिया।पूरा परिवार प्रेम से रहता।
बड़े भाई का पांच साल का बेटा चुनमुन सबकी आंखों का तारा था। छोटी बहू की गोद खाली थी।वह भी बच्चे को बेहद प्यार करती।बच्चा भी काकी से ही चिमटा रहता। लिहाजा सास और जिठानी निश्चित हो कर खेतों की निराई करती।
पता नहीं क्यों मायके से लौट कर उदास रहने लगी।पति के पूछने पर निस्संतान रहने के कारण दुख बताया।पति ने हंसकर कहा-है ना चुनमुन।
अन्तर में क्या ज्वाला जल रही थी,कोई भांप न सका।
सारे सदस्य खेतों पर गये थे। चुनमुन काकी के साथ घर पर ही था।
काकी जाकर गौ के लिए चारा काटने लगी।बच्चा गले से लिपट कर मनुहार करने लगा- काकी लड्डू दो।
दुपहरिया में बाकी सदस्य आ गया। भोजन के लिए बैठ गया। बच्चे को सामने न देख पुकारा जाने लगा। सोचा कि बालक शरारत से कहीं छुप गया है। दादी बोली- बचवा , अब तंग न करा। जल्दी से आओ। तुम्हारे लिए रोटी पर घी लगा दिया।
छोटी बहू पागलों की तरह चीखने लगी-अब वह कभी नहीं आयेगा।
उसके पति ने पूछा- क्या आंय बांय बक रही है। कहां गया चुनमुन।
बेहद वीभत्स उत्तर मिला-हम उसको गंडासा से काट कर खून पिये।साधु बाबा कहे थे कि फिर वह तुम्हारे पेट से जन्म लेगा।
सबको लगा विक्षिप्त हो गई है। अनर्गल प्रलाप कर रही है।
बूढ़ी दादी – हंसी न कर।बबुआ कहां है।
हम भूले के ढेर में तोप दिये हैं।
किसी ने पुलिस को सूचना दे दी, अन्यथा सब उसे पीट पीटकर मार डालते।
उस हत्यारिन पिशाचनी को देख उबकाई आने लगी।हम लोगों की स्थिति देख जमुना फौरन लेकर चली गई।
ऐसे ही लाखों ढोंगी बाबा हैं। पता नहीं कैसे इनके जाल में फंस जाते हैं।
आशा सिंह

 

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