बहुत देर तक चुभते रहे “काँच के शामियाने “

इसे सुखद संयोग ही कहा जाएगा की जिस दिन मैंने फ्लिपकार्ट पर रश्मि रविजा जी का उपन्यास ” कांच के शामियाने आर्डर किया उस के अगले दिन ही मुझे “कांच के शामियाने” को महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा “जैनेन्द्र कुमार पुरस्कार” दिए जाने की घोषणा की  सूचना मिली | अधीरता और बढ़ गयी | दो दिन … Read more

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रंगनाथ द्विवेदी की कलम से नारी के भाव चित्र

                             कहते हैं नारी मन को समझना देवताओं के बस की बात भी नहीं है | तो फिर पुरुष क्या चीज है | दरसल नारी भावना में जीती है और पुरुष यथार्त में जीते हैं | लेकिन भावना के धरातल पर उतरते … Read more

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समीक्षा – “काहे करो विलाप” गुदगुदाते ‘पंचों’ और ‘पंजाबी तड़के’ का एक अनूठा संगम

हिंदी साहित्य की अनेकों विधाओं में से व्यंग्य लेखन “एक ऐसी विधा है जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं और सबसे ज्यादा मुश्किल भी!” कारण स्पष्ट है – भावुक मनुष्य को किसी भावना से सराबोर कर रुलाना तो आसान है परन्तु हँसाना मुश्किल| आज के युग की गला काट प्रतियोगिता में जैसे – जैसे तनाव सुरसा … Read more

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मुखरित संवेदनाएं – संस्कारों को थाम कर अपने हिस्से का आकाश मांगती स्त्री के स्वर

                                                     लेखिका एवम कवयित्री     किरण सिंह  जी का प्रथम काव्य संग्रह ” मुखरित संवेदनाएं ” एक नज़र में ही मुझे विवश करने लगा  की मैं उस पर कुछ … Read more

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“अंतर “- अभिव्यक्ति का या भावनाओं का – ( समीक्षा – कहानी संग्रह : अंतर )

सही अर्थों में पूछा जाए तो स्वाभाविक लेखन अन्दर की एक बेचैनी है जो कब कहाँ कैसे एक धारा  के रूप में बह निकलेगी ये लेखक स्वयं भी नहीं जानता | वो धारा तो  भावनाओं  का सतत प्रवाह हैं , हां शब्दों और शैली के आधार पर हम उसे कविता कहानी लेख व्यंग कुछ भी … Read more

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ये तिराहा हर औरत के सामने सदा से था है और रहेगा –

” तिराहा “एक ऐसा शब्द जो रहस्यमयी तो है ही  सहज ही आकर्षित भी करता है | हम सब अनेक बार अपने जीवन में इस तिराहे पर खुद को खड़ा पाते हैं | किसी भी मार्ग का चयन जीवन के परिणाम को ही बदल देता है | पर यहाँ  मैं बात कर रहीं हूँ वीणा … Read more

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डॉ. रमा द्विवेदी के साहित्य में “भविष्य की नारी कल्पना” – शिल्पी “मंजरी”

“स्त्री विमर्श” एक ज्वलंत विषय के रूप में प्राचीन काल से ही किसी न किसी बहाने, प्रत्यक्ष या परोक्ष परिचर्चा का बिन्दु रहा है- समाजशास्त्रियों के लिए, राजनीतिज्ञों के लिए और साहित्य के लिए भी। तथापि पिछले ५०-६० वर्षों से यह स्त्री विमर्श, “नारी मुक्ति आन्दोलन” के नाम पर एक नए रूप में सार्वजानिक रूप … Read more

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“सुशांत सुप्रिय के काव्य संग्रह – इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं “की शहंशाह आलम की समीक्षा ” गहरी रात के एकांत की कविताएँ

             #  समीक्षा आलेख : ” गहरी रात के एकांत की कविताएँ “         ———————————————————                                                                    … Read more

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शब्द सारांश का भव्य वार्षिकोत्सव एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह

शब्द सारांश का भव्य वार्षिकोत्सव एवं पुस्तक लोकार्पण समारोह दस अप्रैल रविवार को नगर की प्रसिद्ध साहित्य एवं सामाजिक संस्था शब्द सारांश का द्वितीय वार्षिकोत्सव संपन्न हुआ .कार्यक्रम का शुभारम्भ देह्दानी डॉ रामावतार शर्मा ,तहसीलदार एवं साहित्यकार राकेश त्यागी ,डॉ राजेन्द्र मिलन ,एवं डॉ अमी आधार ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया .उसके बाद पुष्प माला ,सम्मान वस्त्र एवं श्री फल … Read more

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साहित्य के आकाश का ध्रुवतारा (विष्णु प्रभाकर )…….. सपना मांगलिक

साहित्य के आकाश का ध्रुवतारा (विष्णु प्रभाकर ) विष्णु प्रभाकर को साहित्य का गांधी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि उनपर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा प्रभाव था . प्रभाकर जी में आप वे सारे गुण–अच्छाईयाँ देख सकते हैं, जो गांधी आन्दोलन के समय गाँधी जी के मूल्य थे. उनके लेखन … Read more

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