“अंतर “- अभिव्यक्ति का या भावनाओं का – ( समीक्षा – कहानी संग्रह : अंतर )

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सही अर्थों में पूछा जाए तो स्वाभाविक लेखन अन्दर की एक बेचैनी है जो कब कहाँ
कैसे एक धारा  के रूप में बह निकलेगी ये
लेखक स्वयं भी नहीं जानता | वो धारा तो 
भावनाओं  का सतत प्रवाह हैं , हां
शब्दों और शैली के आधार पर हम उसे कविता कहानी लेख व्यंग कुछ भी नाम दें | ये सब
मैं इस लिए लिख रही हूँ क्योंकि अशोक परूथी जी से मेरा पहला परिचय एक व्यंग के
माध्यम से हुआ था | “ राम नाम सत्य है “ नामक व्यंग  उन्होंने हमारी पत्रिका “ अटूट बंधन “ के लिए
भेजा था |
रोचक शैली में लिखे हुए व्यंग को हमने प्रकाशित भी किया था | हमें
पाठकों की प्रसंशा  के कई ई मेल मिले |
उसके बाद एक सिलसिला शुरू हो गया | और अशोक जी के व्यंग मासिक पत्रिका “ अटूट बंधन
“ व् हमारे दैनिक समाचार पत्र “ सच का हौसला “ में नियमित अंतराल पर प्रकाशित होने
लगे | उन्हें  व्यंग विधा में एक बडे  पाठक वर्ग से सराहना मिली |

उसके बाद परूथी जी
की हास्य कविताओं से रूबरू होने का मौका मिला और अब ये कहानी संग्रह “ अंतर  “ |
मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है की परूथी जी लेखन की हर विधा में प्रयोग
करते हैं और अपनी एक खास शैली में भावों का खाका खींच देते हैं | ठीक वैसे ही जैसे
किस चट्टान को काटकर भावनाओं की ये धारा  किस रूप में निकलेगी यह नदी भी नहीं जानती |
अंतर कहानी संग्रह में विभिन्न भावों को दर्शाती कहानियों का समावेश किया गया है |
कुछ कहानियों में जहाँ हास्य का पुट है वहीँ कुछ कहानियाँ एक अजीब कसमसाहट ,बेचैनी
और वेदना से घिरी हुई हैं | विशेष रूप से मैं उल्लेख करना चाहूंगी कहानी अंतर ,
पिंजरे का पंक्षी व् उसकी मौत का जहाँ अंतस की बेचैनी पाठक स्पष्ट रूप से महसूस करता
है
| संग्रह की पहली व्  मुख्य कहानी ” अंतर ” पति व् प्रेमी के अंतर ती तुलना करती स्त्री के मनोभावों को ख़ूबसूरती से उकेरती है | उसका मुख्य केंद्र बिंदु है प्रेम की अभिव्यक्ति के अंतर पर , भावनाओं के अंतर पर और उसके हिस्से में आया अंतहीन इंतज़ार , जिसे वो पहले कर न सकी परन्तु बाद में विधाता ने यही उसके भाग्य में लिख दिया | जिस पर रेंगते हुए ही उसे जीवन काटना है | मैं  विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगी कहानी ” उसकी मौत ” का जिसे हमें अपने दिनक समाचार  पत्र ” सच का हौसला ” में प्रकाशित किया है |ये कहानी नशे की लत से जूझती युवा पीढ़ी के इर्द – घूमती है | जहाँ नशे की लत से साथी की मृत्यु के उपरान्त  अन्य दोस्त अपने नशे की आदत को छोड़ देते हैं | ” उसकी मौत ” उन्हें हिला कर रख देती है | कहानी जहाँ समस्या उठती है वहीँ समाधान के साथ बहुत भावुक भी कर देती है | यह ही नहीं  संग्रह की अधिकतर कहानियाँ समाज की किसी समस्या या मनोवैज्ञानिक पहलू को
उठाती हैं व् उसमें डूबते उतराते पाठक को कुछ सोचने में विवश अवस्था में छोड़ देती
हैं | वहीँ कुछ कहानियों में हास्य का पुट दे 
कर परूथी जी पाठक को निराशा में डूबने से भी उबार लेते हैं | सभी कहानियाँ
हमारे आस –पास के परिवेश से उठायी गयी हैं इसलिए उनके पात्र अपने जाने पहचाने से
लगते  हैं | साथ ही कहानियों का ताना –
बाना सरल –सहज भाषा में बुना गया है | हालांकि यह परूथी जी का पहला कथा संग्रह है
पर जिस तरह से उन्होंने कहानियों को उकेरा  है व् उनमें संवेदनाओं का संप्रेषण किया है उसको
पढ़कर उनके लेखन के क्षेत्र में सफल होने का सहज ही अंदाज़ लगाया जा सकता है |
और
जैसा की परूथी जी के जीवन परिचय से मुझे ज्ञात हुआ की उन्होंने छोटी उम्र से लिखना
प्रारंभ कर दिया था जिसे जीवन की व्यस्ताओं के कारण स्थगित करना पड़ा और  एक लम्बे अंतराल के बाद पुन : लेखन प्रारंभ
किया | पर उनके लेखन से  सिद्ध होता है की
प्रतिभा कभी मरती नहीं , उसको  जब सही जमीन
मिलती है , अंकुर फूट ही पड़ते हैं मुझे विश्वास है की उनका यह संग्रह लोगों को
पसंद आएगा | मैं लेखन के क्षेत्र में उनके उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें हार्दिक
शुभकामनाएं देती हूँ |

                             वंदना
बाजपेयी
                         कार्यकारी
संपादक

                                                        अटूट बंधन 

7 COMMENTS

    • आभार किरन सिंह जी आपका और वंदना जी का जिन्होंने अपना कीमती समय निकाल कर मेरे संग्रह की एक एक पंक्ति पढ़ कर पुस्तक की समीक्षा की ओर उसे पाठकों के समुख प्रस्तुत किया और दूध का दूध, पानी का पानी' कर दिया!
      लेखक -अशोक परूथी 'मतवाला'

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