होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित

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होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित
होली केवल रंगों का त्यौहार ही नहीं है , हंसने खिलखिलाने का भी
त्यौहार है | हँसने –हँसाने का ये सिलसिला जारी रहने के लिए लाये हैं एक हास्य
रचना 

होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित





होली और गुझियाँ का चोली दामन का साथ है |”सारे तीरथ बार –बार और गंगा सागर एक बार “की की तर्ज
पर गुझियाँ ही वो मिठाई है जो साल में बस एक बार होली पर बनती है |जाहिर है घर
में बच्चों –बड़ों सबको इसका
इंतज़ार रहता है,और गुझियाँ का नाम सुनते ही
बच्चों के मुँह में व् महिलाओं के माथे पर पानी आ जाता है |   



कारण  यह है कि गुझियाँ खाने में
जितनी स्वादिष्ट लगती है पकाने में उतनी ही बोरिंग| एक –एक लोई बेलो ,भरो ,तलो ….
बिलकुल चिड़िमार काम |अकसर होली के आस –पास महिलाएं जब एक दुसरे से मिलती हैं तो
पहला प्रश्न यही होता है “आप की गुझियाँ बन गयी? और अगर उत्तर न में मिला तो
तसल्ली की गहरी साँस लेती है “एक हम ही नहीं तन्हाँ न बना पाने में तुझको रुसवा



पर बकरे की माँ कब तक खैर
बनाएगी
,बनाना तो सबको पड़ेगा ही ….. शगुन जो ठहरा |

       


 एक
सवाल मेरे मन में अक्सर आता है कि पिट्स,,वी टी आर , फादर्स  रेसेपी … जैसी तमाम कंपनियों ने जब रसगुल्ले
,ढोकले ,दहीबड़े यहाँ तक की जलेबी के इंस्टेंट मिक्स बना कर हम हम महिलाओं को पकाने
के काम से इतनी आज़ादी दी कि हम आराम से पड़ोस में किसकी बेटी का ,बेटे का ,सास –बहु ,नन्द –भौजाई का आपस
में क्या पक रहा है जान सके ,तो किसी को यह ख़याल क्यों नहीं आया कि इंस्टेंट
गुझिया मिक्स बनाया जाए |ऐसी निराशा के आलम में जब होली  से ठीक एक दिन पहले “आज गुझियाँ बना ही लेंगे
की भीष्म प्रतिज्ञा करते हुए हमने अखबार 
खोला, तो हमारी तो ख़ुशी के मारे चीख निकल गयी |


साफ़ –साफ़ मोटे –मोटे
अक्षरों में लिखा था “ हमारी माताओं –बहनों की तकलीफ को देखते हुए होली पर महिलाओं
के लिए इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स बिकुल फ्री| जल्दी करिए स्टॉक सीमित है |
केवल महिलाएं अपने एरिया की
अधिकृत दुकान तक
पहुंचे |विज्ञापन सरकारी था |शक करने का कोई सवाल ही नहीं
था |वैसे भी हम दिल्ली वालों
  फ्री चीजों
की आदत हो चुकी है | और अब तो फ्री -फ्री के खेल को एन्जॉय करना भी शुरू कर दिया है
|




हमने तुरंत अपना मोबाइल उठाया और अपनी सहेलियों को फ्री की यह शुभ सूचना
देने के में २०० रूपये खर्च कर दिए | मीना ,रीना ,टीना  ,मुन्नी ,दिव्या सुधा सब दस मिनट में तैयार हो
कर हमारे घर आ गयी |हमने दुकान की तरफ  कदम
बढ़ाये |रास्ते भर हम यही गुणगान करते रहे “क्या सरकार है जिसने हम महिलाओ  के दर्द को समझा ,इतना तो हमारे पतियों नें
नहीं समझा |



दुकान पर पहुँच कर देखा करीब ५ -७ सौ महिलाओं की भीड़ है| खैर हम सभी सभ्य  जनता की तरह लाइन में लग गए और अपनी –अपनी सास –बहुओं
की बुराई कर सहृदयता पूर्वक  टाइम काटने
लगे| तभी अचानक से खबर आई इस ईलाके के लिए पैकेट केवल ५० हैं |कहीं हम ही न रह जाए
यह सोच कर महिलाओं में भगदड़ मच गयी |सब  अपनी –अपनी साडी के पल्ले कमर पर बाँध  योद्धा की तरह आगे बढ़ने लगी |कुछ  ने दूसरों को गिराया, कुछ स्वयं ही गिरी  , सास –बहु की बुराई की जगह एक दूसरे की बुराई
होने लगी |कैसी सहेली हैं रे तू (दिल्ली में तू भाषा में आम चलन में  है)
मेरी जॉइंट फैमिली है तुझे दया नहीं आती |दूसरी आवाज़ आई अरे मैं तो
काम पर जाती हूँ ,मुझे मिलना चाहिए |तभी कुछ आवाज़े आई “सीनियर सिटीजन का पहला हक
है | मौके की नाजुक हालत देख कर दुकान दार भाग गया | विकराल छीना –झपटी मच गयी |


           
इसी छीना – झपटी में सारे
के सारे पैकेट फट गए,
पर ये क्या उसमें गुझियाँ मिक्स की जगह अबीर –गुलाल
निकला
| हम सारी महिलाएं रंगों से सराबोर थी |एक –दूसरे की हालत देखकर हमें हंसी
आने लगी |सारा गुस्सा काफूर हो गया | फटे हुए 
पैकेट को खंगाला गया तो उसमें मिली
पर्चियों पर बड़ा –बड़ा लिखा था
 


बुरा मानो होली है” 




हम लोगो कि हंसी छूट गयी…होलीके माहौल में बुरा क्या मानना।हम सब हँसते –मुस्कुराते घर की तरफ चल पड़े। इस बात का अफ़सोस तो जरूर था की घर जा कर गुझियाँ बनानी पड़ेगी। पर इस बात का संतोष भी था पहली बार सरकार ने जनता के साथ होली खेली। जनता रंगों से सराबोर हुई और अबीर -गुलाल तो मिला ही बिलकुल मुफ्त। 


खैर हमने तो होली खेल ली अब गुझियाँ भी बना ही लेंगे पर अगर आप के शहर में ऐसा कोई विज्ञापन आता है .तो जरा संभल कर ….बड़े धोखे हैं इस राह हैं …..फिर भी अगर मुफ्त के चक्कर  में आप भी फंस जाए और होली के रंगों में रंग जाए तो भी कोई गम नहीं क्योंकि……………..


बुरा न मानो होली है”



वंदना बाजपेयी 
अटूट बंधन परिवार की ओर से आप सभी को होली की हार्दिक शुभ कामनाएं 


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