अटल रहे सुहाग : करवा चौथ : कविता -इंजी .आशा शर्मा



गठबंधन की पावन गाँठों से
यूँ खुद को बाँध लिया
मन वचनों से और कर्म से तन
को मन साध लिया
याचक बन कर मात-पिता से सुता
दान में माँगी थी
तेरे उसी भरोसे पर मैंने वो
देहरी लाँघी थी
तू सूरज मैं धरा दीवानी
अनुगामिनी संग चली
हँसी तुम्हारी भोर सुहानी तू
रूठे तो साँझ ढली
चूड़ी, बिंदिया, कुमकुम,
मेहँदी तुमसे सब सिंगार सजे
सांस की सरगम, धुन धड़कन की
तुम झांझरिया संग बजे
माँग सजाई अरमानों से आँचल
में ममता भर दी
आधा अंग बना कर अपना कमी
सभी पूरी कर दी
तेरे साथ ही पूरा आँखों का
हर सपन सलोना हो
प्रेम जोत से रोशन मेरे मन
का कोना-कोना हो
चातक को केवल स्वाति की
बूँदों का अभ्यास है
मेरे मन को भी बस तेरी
स्नेह-सुधा की प्यास है
मेरी किन्हीं दुआओं से गर
उम्र सुहाग पर चढ़ती है
पूजा और अर्चना से सांसों
की डोरी बढ़ती है
एक नहीं सौ बार तुम्हारी
खातिर मैं उपवास करूँ
माँनूँ सारी परम्परा हर
रीति पर विश्वास करूँ
करवा चौथ का चाँद गवाही
देगा अपने प्यार की
इस निश्छल से नाते पर ही
नींव टिकी संसार की
इंजी. आशा शर्मा
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1 thought on “अटल रहे सुहाग : करवा चौथ : कविता -इंजी .आशा शर्मा”

  1. दीप गुगल पावन बनी ज्यों मंदिर का द्वार
    बेटी घर की लाज है बेटी घर का प्यार

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