सहानुभूति नहीं समानुभूति रखें

0
क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला,
दुख नहीं बँटते परस्पर,
दूसरों की वेदना में
वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज
हर्ष केवल वह छिपाता;
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी!
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की यह पंक्तियाँ संवेदनाओं के व्यापार की पर्त खोल कर रख देती हैं | सदियों से कहा जाता है की दुःख कहने सुनने से कम हो जाता है पर क्या वास्तव में ? शायद नहीं | वो बड़े ही सौभाग्यशाली लोग होते हैं जिनको दुःख बांटने के लिए कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाता है जो उनके साथ समानुभूति रखता हो |वहाँ शायद कह लेने से दुःख बांटता हो | परन्तु ज्यादातर मामलों में यह बढ़ जाता है | संवेदनाओं का आदान -प्रदान को महज औपचारिक रह गया है |
दुख कहने-सुनने से बंटता है। डिप्रेशन के खिलाफ कारगर हथियार की तरह काम करने वाली यह सूक्ति

अभी के समय में ज्यादा बारीक व्याख्या मांगती है। आम दायरों में कहने-सुनने के दो छोर दिखाई पड़ते हैं। एक तरफ कुछ लोग खुद को लिसनिंग बोर्ड मान कर चलते हैं। आप उनसे कुछ भी कह लें, किसी लकड़ी के तख्ते की तरह वे सुनते रहेंगे। इस क्रिया से आप हल्के हो सकें तो हो लें, लेकिन यह उम्मीद न करें कि आपके दुख से दुखी होकर वे आपके के लिए कुछ करेंगे। मैनेजमेंट के सीवी में यह एक बड़ी योग्यता मानी जाती है। परन्तु आप की तकलीफ को कोई राहत नहीं देती है |
दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो पहला कंधा मिलते ही उस पर टिक कर रोना शुरू कर देते हैं। इसके थोड़ी ही देर बाद आप उन्हें प्रफुल्लित देख सकते हैं, भले ही जिस कंधे का उपयोग उन्होंने रोने के लिए किया था, उस पर रखा सिर पूरा दिन उनकी ही चिंता में घुलता रहेे। अंग्रेजी में ऐसे लोगों को साइकोपैथ कहते हैं | ये लोग आप को भावनाओं का पूरा इस्तेमाल करना जानते हैं | इनका शिकार भावुक व्यक्ति होते हैं | जिनको ये अपना दुखड़ा सुना कर अपने बस में कर लेते हैं और मुक्त हो जाते हैं | और बेचारा शिकार दिन -रात इनको दुखों से मुक्त करने की जुगत में लगा रहता है |
ये दोनों छोर दिखने में संवेदना जैसे लगते हैं, लेकिन सम-वेदना जैसा इनमें कुछ नहीं है। संवेदना किसी वेदना में बराबर की साझेदारी है। जहां यह अनुपस्थित हो, वहां कहने-सुनने से दुख क्या बंटेगा?

ओमकार मणि त्रिपाठी – प्रधान संपादक अटूट बंधन एवं सच का हौसला

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here