बहू और बेटी

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वो बेटी ही थी | और शादी के बाद बहू बन गयी |
सर पर पल्ला रखो ~ अब तुम बेटी नहीं बहू हो
• कुछ तो लिहाज करो , पिता सामान ही सही पर ससुर से बात मत करो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो
• माँ ने सिखाया नहीं , पैताने बैठो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो
• घर से बाहर अकेली मत निकलो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो
• अपनी राय मत दो , जो बड़े कहे वही मानो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो

उसने खुद को ठोंक – पीट के बहू के सांचे में ढल दिया | अब वो बेटी नहीं बहू थी |
समय पलटा , सास – ससुर वृद्ध हुए और अशक्त व् बीमार भी | बिस्तर से लग गए |
* बताओ कौन सा ट्रीटमेंट कराया जाए , राय दो ~ तुम बेटी ही तो हो
 सास से बिस्तर से उठा नहीं जाता ~ सिरहाना पैताना मत देखो , अपने हाथ से खाना खिला दो ~ तुम बेटी ही तो हो
 ससुर सारा दिन अकेले ऊबते हैं ~ बातें किया करो , तुम बेटी ही तो हो
 ससुर के कपडे बदलने में संकोच कैसा ~ तुम बेटी ही तो हो |
अब उसकी भी उम्र बढ़ चुकी थी | बेटियाँ मुलायम होती है , लोनी मिटटी सी , बहुएं सांचे में ढली , तराश कर बनायी जाती हैं | दुबारा बहू से बेटी में परिवर्तन असहज लगा | त्रुटियाँ रहने लगी |
सुना है घर के तानपुरे ने वही पुराना राग छेड़ दिया है ~ कुछ भी कर लो बहुएं कभी बेटियाँ नहीं बन सकती |

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