स्त्री देह और बाजारवाद

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बाजारवाद ने सदा से स्त्री को केवल देह ही समझा | पुरुषों के दाढ़ी बनाने के ब्लेड ,शेविंग क्रीम , डीयो आदि में महिला मॉडल्स को इस तरह से पेश किया गया जैसे वो भी कोई प्रॉडक्ट हो | 




दुखद है की ये विज्ञापन पढ़ी – लिखी महिला की भी ऐसी छवि प्रस्तुत करते हैं की उसका कोई दिमाग नहीं है वो शेविंग क्रीम या डीयो की महक से बहक कर अपना साथी चुनती है | शिक्षित नारी की बुद्धि पर देह हावी कर स्त्री की छवि बिगाड़ने में इन विज्ञापन कम्पनियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी |इससे भी ज्यादा दुखद है की हम परिवार के बीच बैठ वो विज्ञापन देखने के बाद वो प्रोडक्ट भी खरीद कर लाते हैं | यानी बाज़ार जानता है की उसका फायदा किसमें है | 


यह सच्चाई किसी से छुपी नहीं है की तमाम अखबार और वेबसाइट फ़िल्मी हीरोइनों की आपत्तिजनक तस्वीरों को डाल – डाल अपनी पाठक संख्या में इजाफा करते हैं | लेकिन ये सिर्फ पाठक संख्या में ही इजाफा नहीं करते ये एक गलत वृत्ति के भी संवाहक है
| जिसका परिणाम महिलाओं के प्रति किये जाने वाले अपराधों के बढ़ते आंकड़ों के रूप में दिखाई देता है | इसी कड़ी में अपने घिनौने रूपमें सामने आई है वह ऐश ट्रे जो अमेज़न .कॉम पर बिकने के लिए उपलब्ध है |

 जिस कम्पनी ने इसे बनाया , जिस साइट या दुकानों द्वारा बेंची जा रही है वो समान रूप से दोषी हैं | जो स्त्री के प्रति एक गलत सोंच का प्रचार कर रही हैं |जिसका परिणाम हर आम बेटी बहू , माँ , बहन झेलेंगी | जब मीडिया में स्त्री को देह बनाने की साजिशे चल रही थी | तब हम अपने – अपने घरों के दरवाजे खिड़कियाँ बंद कर मौन धारण कर सुरक्षित बैठे रहे |जिसका परिणाम स्त्री के प्रति बढ़ते अपराधों के रूप में सामने आया | अभी हाल का मासूम नैन्सी कांड किसको विचलित नहीं कर देता |

यह भी स्त्री के प्रति ऐसी ही घृणित सोंच का परिणाम है | कहीं तो लगाम लगानी होगी | कभी तो लगाम लगानी होगी | हम तब चुप बैठे , क्या अब भी चुप बैठेंगे |
अपना विरोध दर्ज कीजिये


वंदना बाजपेयी 

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