पिजड़े से आजादी

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यूँही नही मिली एै दोस्त————–
गुलाम भारत के पिजड़े की चिड़ियाँ को आजादी।
यूँही नही इसके पर फड़फड़ाये खुले आकाश—–
बहुत तड़पी रोई पिजड़े मे इसके उड़ने की आजादी।


इसने देखा है——–

गोली सिने मे लगी घिसटता रहा खोलने पिजड़े को,
लेकिन खोलने से पहले दम तोड़ गया,
इस आस मे कि मै तो न खोल सका,


पर कोई और खोलेगा एकदिन और दुनिया देखेगी—-
इस बंद पिजड़े के चिड़ियाँ की आजादी।


जश्ऩ मे डुबी सुबह होगी तिरंगे फहरेंगे,
जलिया,काकोरी,आजाद,विस्मिल की गाथाये होंगी,
हाँ ! आँख भिगोये देखेगी वही पिजड़े की चिड़ियाँ,




क्योंकि बड़ी मुश्किलो से पाई है एै “रंग”———-
इस चिड़ियाँ ने उस पिजड़े से आजादी।

@@@रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर
जौनपुर(उत्तर–प्रदेश)।



मेरा भारत महान ~जय हिन्द

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