बेटी के बल्ले ने बनाए रिकाॅर्ड– हरमनप्रीत कौर, महिला क्रिकेटर

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प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी
संकलन: प्रदीप कुमार सिंह
            पंजाब प्रांत का एक छोटा सा नगर है मोगा। यहां के
बाशिंदे हरमिंदर भुल्लर को बास्केट बाॅल का बड़ा शौक था। बचपन में उन्होंने स्कूल
टीम में खेला भी
,
मगर खेल को करियर बनाने की उनकी तमन्ना अधूरी रह गई। फिर उन्हें एक बड़े वकील
के दफ्तर में मुंशी की नौकरी मिल गई। कुछ दिनों के बाद ही मोगा की रहने वाली
सतविंदर से उनकी शादी हो गई। परिवार बस गया और जिंदगी चल पड़ी। घर की जिम्मेदारियों
के बीच बास्केट बाॅल का बुखार फीका पड़ने लगा। अब यह साफ हो चुका था कि वह खिलाड़ी
नहीं बन सकते।

पिता का प्रोत्साहन आया काम 

            यह बात 1989 की है। सतविंदर मां बनने वाली थी। आठ मार्च को
उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। हरमिंदर ने बड़े प्यार से बेटी का नाम रखा
हरमनप्रीत। पड़ोसी और रिश्तेदारों ने खास खुशी नहीं जताई। कोई बधाई देने भी नहीं
आया। उन दिनों वहां बेटियों के जन्म को जश्न का मौका नहीं माना जाता था
,
जबकि बेटा पैदा होने पर पूरा
मोहल्ला बधाई देने उमड़ पड़ता था। सतविंदर को बुरा लगा
,
लेकिन वह चुप रही। बेटी बड़ी
होने लगी। स्कूल के दिनों से ही हरमनप्रीत को क्रिकेट अच्छा लगने लगा। पापा के संग
घर में टीवी पर पूरा मैच देखती थीं। थोड़ी बड़ी हुईं
,
तो पड़ोस के बच्चों के संग बैट-बाॅल से खेलने लगीं।
पापा ने कभी नहीं रोका। बेटी को क्रिकेट खेलता देख उन्हें बड़ा ही सुकून मिलता था।
काश
,
बेटी क्रिकेटर बन जाए, तो कितना अच्छा रहेगा।


मिला हैरी का उपनाम 

            दसवी कक्षा पास करने के बाद हरमनप्रीत ज्ञान सागर
स्कूल में पढ़ने गई। अब पापा ने तय कर लिया कि बेटी को क्रिकेट की टे
निंग दिलवाएंगे। कोच कुलदीप
सिंह सोढ़ी के नेतृत्व में टे
निंग शुरू हुई। कुछ दिनों के बाद ही कोच ने यह भविष्यवाणी
कर दी
,
हरमनप्रीत बहुत बड़ी क्रिकेटर बनेंगी। अब मोहल्ले में लोग उन्हें हैरी कहकर
पुकारने लगे। हालांकि यह सफर आसान न रहा। उन दिनों मोगा में लड़कियों का क्रिकेट
खेलना नई बात थी। पड़ोसियों को अजीब लगता था
,
जब वह लड़कों की तरह कपड़े पहन बैट-बाॅल लेकर घर से
निकलती थी।



महिला होने  के कारण जब पुरुष खिलाड़ी उड़ाते थे मजाक  

            स्टेडियम में प्रैक्टिस के दौरान प्रायः असहज
स्थिति पैदा हो जाती थी। कई बार हरमनप्रीत जब पापा के साथ मैदान में पहुंचतीं
,
तो साथी पुरूष
खिलाड़ी बड़े अक्खड़ अंदाज में एक-दूसरे से गाली-गलौज की भाषा में बात करने लगते। यह
सुनकर उन्हें बहुत बुरा लगता था। कई बार मन में ख्याल आता कि लड़कों को जमकर फटकार
लगाएं
,
पर वह जानती थीं कि ऐसा करने से उन पर कोई असर नहीं होगा। डर यह भी लगता था कि
ज्यादा विवाद होने पर कहीं बात बिगड़ न जाए। लिहाजा उन्हें नजरअंदाज कर टे
निंग पर फोकस किया। मन ही मन
तय कर लिया कि एक दिन इतना बेहतरीन खेलूंगी कि ये लड़के मेरे लिए तालियां बजाने को
मजबूर हो जाएं। जल्द ही उन्हें पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन की तरफ से जिला फिरोजपुर
टीम के लिए खेलने का मौका मिला। शुरूआत में उन्होंने आॅलराउंडर के तौर पर खेलना
शुरू किया। पापा हरमिंदर कहते हैं
,
कभी नहीं सोचा था कि मेरी बेटी इतनी बड़ी क्रिकेटर बन जाएगी।
मोगा में लड़कियों का क्रिकेट खेलना बड़ी अजीब बात थी
,
पर हरमन ने हिम्मत दिखाई।


पढ़ें – सुधरने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए – मार्लन पीटरसन

हरमनप्रीत कौर की सफलता की यात्रा  


            राज्य क्रिकेट टीम में शानदार पारी के बाद 2009 में उन्हें पहला वन डे मैच
खेलने का मौका मिला। सबसे यादगार रहा साल
2013,
जब इंग्लैंड के विरूद्ध वल्र्ड कप मैच में शतक जड़कर
वह सुर्खियों में आ गईं। महिला क्रिकेट में यह शानदार कामयाबी थी। हर तरफ उनकी
चर्चा होने लगी। समय के साथ उन्होंने अपने खेल को और निखारा। साल
2016
में आॅस्ट्रेलिया के
विरूद्ध खेलते हुए भारतीय टीम ने ट्वंटी-
20
क्रिकेट में सबसे बड़ी जीत दर्ज की। हरमनप्रीत ने
उस मैच में
31
गेंदों पर 46 रन बनाकर जीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसी साल उन्हें मिताली राज की जगह
महिला भारतीय ट्वंटी-
20
टीम की बागडोर सौंप दी गई। इस जिम्मेदारी को उन्होंने बड़ी संजीदगी के साथ
निभाया।



हरमनप्रीत कौर के रोल मॉडल हैं सहवाग 


 हरमनप्रीत क्रिकेटर वीरेंदर सहवाग को अपना रोल माॅडल मानती हैं। सहवाग की
तरह वह भी गंेद को देखो और हिट करो के फाॅर्मूले पर रन बनाती हैं। मां सतविंदर कौर
कहती हैं
,
अब यह जागने का मौका है। वे लोग जो गर्भ में ही बेटियों को मार देते हैं,
उन्हें समझना चाहिए
कि बेटियां कितनी प्यारी होती हैं। मैं चाहती हूं कि देश की लड़कियों को आगे बढ़ने का
मौका मिले।



हरमनप्रीत कौर की एक और फतह 

            इसी सप्ताह हरमनप्रीत कौर ने एक और तमगा हासिल
किया। आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलते हुए उन्होंने
115
गेंदों पर नाबाद 171 रन बनाए। यह उनका तीसरा एक दिवसीय शतक है। इसी के
साथ महिला एकदिवसीय क्रिकेट मैच में पांचवां सबसे बड़ा व्यक्तिगत स्कोर बनाने का
रिकाॅर्ड भी उनके खाते में गया। इस मैच में उनके तूफानी अंदाज ने क्रिकेट
प्रेमियों का दिल जीत लिया। शायद इस यादगार पारी की वजह से ही आज पूरे देश में
महिला क्रिकेट टीम की चर्चा हो रही है। पापा हरमिंदर कहते हैं
,
बेटी की कामयाबी से बहुत खुश
हूं। मैं चाहता हूं कि वह वल्र्ड कप जीतकर लाए। अब लोगों को मान लेना चाहिए कि
बेटियां किसी मायने में बेटों से कम नहीं। उन्हें मौका दीजिए
,
वह आसमान छू लेंगी।


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