तो मैं तो

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तो मैं तो
तुलना हमेशा नकारात्मक नहीं होती | कई बार
जब हम दुःख में होते हैं | तो ऐसा लगता है जैसे सारा जीवन खत्म हो गया | पर उसी
समय किसी ऐसे व्यक्ति को देखकर जो हमसे भी ज्यादा विपरीत परिस्थिति में संघर्ष कर
रहा है | मन में ये भाव जरूर आता है कि जब वो इतनी विपरीत परिस्तिथि में संघर्ष कर
सकता हैं तो मैं तो …. आज इसी विषय पर एक बहुत ही प्रेरक लघु कथा लाये हैं
कानपुर  के सुधीर द्विवेदी जी | तो आइये पढ़ते हैं 

motivational short story – तो मैं तो 



अँधेरे ने रेल पटरी को
पूरी तरह घेर रखा था । वो सनसनाता हुआ पटरी के बीचो-बीच मन ही मन सोचता हुआ बढ़ा जा
रहा था । ‘ हुँह आज दीवाली के दिन कोई ढंग का काम नहीं मिला …पूरे दिन में पचास
रुपये कमाए थे वो भी उस जेबकतरे ने..। हम गरीबों के लिए क्या होली क्या दीवाली
..साला जीना ही बेकार है अपुन का..।
‘ 

सोचते हुए उसनें पटरी
पर पड़े पत्थर पर जोर से लात मारी । अँगूठे से रिसते घाव ने उसका दर्द और बढ़ा दिया
था । तभी पटरी पर धड़धड़ाती आती हुई रेलगाड़ी को देख उसका चेहरा सख्त हो गया । शायद मन ही मन वो कोई कठोर निर्णय ले चुका था । रेलगाड़ी और
उसके बीच की दूरी ज्यूँ-ज्यूँ दूरी घटती जा रही थी उसकी बन्द आँखों में दृश्य
चलचित्र की तरह चल रहे थे । भूखे बेटे का मासूम चेहरा
, घर में खानें के लिए
कुछ न होने पर खीझती पत्नी
,गली
से निकलते सब्जी वाले की आवाज़ …। खट से उसकी आँखें खुल गयी 



जब वो सब्जी वाला एक
हाथ कटा होनें पर भी जिंदगी से लड़ रहा है तो मैं तो…
?”अपनें दोनों मजबूत हाथो
को देखते हुए वो फुसफुसाया ।

सीटी बजाती हुए रेलगाड़ी धड़-धड़ करती हुई अब उसके सामनेँ
से गुजर रही थी । उसका चेहरा तेज़ रोशनी में दमक उठा था ।


लेखक - सुधीर द्विवेदी


जो परिस्थितियाँ हमें मिली हैं हमें उन्हीं में संघर्ष करना चाहिए विषय पर सुधीर द्विवेदी जी की 

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