अपराध बोध

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अपराध बोध

 सर्दी हो या गर्मी, वह अपने नियमों की पक्की, सुबह जल्दी उठकर मंदिर जाना। उसके बाद ही चाय, पानी व अन्य काम करना। आज भी वह मंदिर से लौट चुकी थी। उसकी बहु अभी तक सो रही थी। बहु के नहीं उठने पर तमतमाई जोर की आवाज से सारे घर की चुपी को तोड़ दी, सारा दिन सोती ही रहेगी क्या ? जल्दी उठ ! सूरज सिर पर खड़ा है, ये बेषर्मों सी सो रही है।

सुनील की पत्नी जल्दी से कपड़े संभालते हुए उठी, दुपट्टा  सिर पर लेकर सबसे पहले सास के चरण छुए। खुश रहो ! दूधो नहाओ पुतो फलो! आजकल की बहुरियों का तो दिमाग ही खराब हो गया है। शर्म  लिहाज कुछ रही ही नहीं। अपनी सास के सामने भी पैर पसारे सोती रहती हैं। हम तो हमारी सास से पहले उठ जाती थी। सुबह जल्दी से नहाकर, चाय के साथ ही सास के पांव छूती । आज कल तो न दिन का पता न रात का। जब देखो खसमों के साथ कमरे में घुसी रहती हैं।

सुनील की पत्नी एक शब्द  भी नहीं बोली! तब तक चाय बनकर तैयार हो गई। इस दौरान सुनील भी घर आ चुका था। लो माॅं जी ! रख दे ! सुना तूने शर्मा  जी के लड़के की बहु के लड़का हुआ है, तुम्हारे साथ ही उनके लड़के की शादी  हुई थी। दो बार बच्चा गिराने के बाद। अब लड़का हुआ है। मुझे भी पोता चाहिए। बहुरी सुन रही है ना, मुझे भी पहला पोता ही चाहिए। हमारे पास इतने पैसे नहीं की हम भी वो क्या कहते हैं? सुनाग्राफी करवा लें। मेरा बेटा इतनी मेहनत कर हमारा खर्च चलाता है, कहीं लड़की हो गई तो कैसे संभालेगा, |

  सर्द हवाओं की सायं सायं ने जल्द ही सड़कों पर सन्नाटा फैला दिया।

आज सुनील का मन आॅटो लेकर जाने का नहीं था। उसे मालूम था कि ऐसे मौसम में सवारी मिलना मुश्किल  है, पर जाना तो पड़ेगा। घर का खर्च का अंतिम विकल्प यही आॅटो है। रोजाना की भांति उसने अपनी गाड़ी कस्बे के रेलवे स्टेशन  के बाहर नियत स्थान पर खड़ी कर दी। आज रात्रि 9 बजे यात्री ट्रेन समय पर थी। एक सवारी को वह छोड़कर वह आ चुका था। रात्रि 11.30 बजे की ट्र ेन का इंतजार कर रहा था। ट्रेन कोहरे के कारण लेट थी। वास्तविक समय का पता नहीं था। ठंड का कहर भी बढ़ता जा रहा था। उसने स्वयं को आॅटो में कैद कर सोने का विचार बनाया।

फैसला

आॅटो में बैठ उसने एक नजर आस पास दौड़ाई कहीं कोई नहीं। सारे दिन भार ढ़ोती सड़के अब शांत  होकर सो रही थी। आॅटो के पीछे दीवार के पास एक कुतिया अपने बच्चों के साथ सिमटे लेट रही थी। तभी उसकी नजर दूर से आती रोशनी पर गिरी। दूर से चमचाती रोशनी बड़ी तेजी से उसकी दिशा  में बढ़े जा रही थी। जरूर कोई गाड़ी तेजी में होगी। अचानक वह गाड़ी अस्पताल के पीछे से गुजरते गंदे बड़े बरसाती नाले के पास रूक गई। गाड़ी की हैड लाईटें बंद हो गई। रोड़ लाईट की धुंधली रोशनी में सड़क के किनारे खड़ी गाड़ी में कोई हलचल नहीं हो रही थी। अभी तक दरवाजा नहीं खुला था। थोड़े विराम के बाद दायीं ओर से दरवाजा खुला, एक लम्बा तगड़ा उतरा। चारों तरफ नजरें दौड़ाकर, गाड़ी के अंदर कुछ इशारा करते हुए गाड़ी की खिड़की में मुॅंह डाला। बायीं ओर का दरवाजा खुला। एक महिला अपने दोनों हाथों को सीने से लगाए, जिनके बीच में कपड़ा लिपटा था, गाड़ी से उतरी। महिला ने चारों तरफ नजरें दौड़ाई, एक खामोशी  के बाद बड़ी तेजी से नाले की ओर बढ़ी। नाले के पास जाकर एक बार फिर रूक कर चारों ओर नजरें दौड़ाई। इस बार उसने कपड़े को सीने से हटाकर नाले में फैंक दिया। बड़ी तेजी से इधर-उधर ताकती गाड़ी की ओर लपकी।

महिला पुरूश दोनों बिजली सी तेजी के साथ गाड़ी में बैठ गए। गाड़ी चालू हुई और बड़ी तेजी से यू टर्न मारते हुए उसी दिशा में ओझल हो गई जिस दिशा  से आई थी। एक बार फिर सन्नाटा कहीं कोई भी नहीं दिख रहा था। सिवाय रात के अंधेरें में चमकते तारों के, जमीन पर लेटी सड़क के, भौंकते आवारा कुत्तों के, सड़क के किनारों पर जलती लाईटों के, बहतीहवाओं के, बहुत कुछ था पर कुछ भी नहीं था।

 सुनील के दिल में कई सवाल तो उठे पर ठंड के बहाव में सभी के सभी दिमाग के एक कोने में जम कर रह गए। सिर खुजाते हुए सुनील अपने आप में बड़बड़ाते हुए, आॅटो के पीछे की सीट पर कम्बल के बीच दुबक कर लेट गया। चाय वाले की आवाज से उसकी आंख खुली। वह जल्दी से उठा ओर कम्बल लपेटे हुए स्टेषन की ओर बढ़ा। अभी सवारी गाड़ी के आने में समय था। महाराज – एक गर्मागर्म चाय देना। चाय की एक-एक घूंट उसके शरीर को उर्जा दे रही थी। तभी स्टेशन पर घोशण हुई, यात्री कृप्या ध्यान दे, यात्री गाड़ी प्लेट फार्म न. एक पर अगले दो मिनट में पंहुचने वाली है।

टिफिन

सुनील जल्दी से चाय खत्म कर ठीक रोज के निष्चित स्थान पर जाकर खड़ा हो गया। दो मिनट बाद गाड़ी स्टेश न पर पंहुच गई। सुनील को भी एक यात्री मिल गया। सुनील ने उन्हें टैक्सी में बिठा, मंजिल की ओर बढ़ा। गाड़ी अभी थोड़ी दूर बढ़ी ही थी कि सुनील ने देखा कि बहुत सारी भीड़ नाले के पास खड़ी है। सुनील ने सवारी से अनुरोध कर गाड़ी को रोका। जल्दी से भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ा और देखा एक कपड़े के ऊपर शिशु  बालिका का शव पड़ा है, जिसकी नाल भी अभी पूरी तरह कटी नहीं, खून से सनी है।

 यह सब देखकर उसकी आंख के आगे रात का सारा घटनाक्रम दौड़ने लगा। उसके हाथ पैर फुलने लगे, सिर चकाराने लगा। जिस तेजी से वह भीड़ को चीरता हुआ आया था, अब उसी भीड़ से बाहर निकलना मुष्किल हो रहा था। भीड़ के बीच से पीसता हुआ गाड़ी तक पंहुचा। उसका चेहरा सफेद पड़ चुका था। गाड़ी को स्टार्ट कर सवारी से बिना बोले मंजिल की ओर बढ़ा।

इस दौरान उसके दिमाग में वही घटनाक्रम घूम रहा था, सवाल उठ रहा था कि इतना पैसा होने पर भी बच्ची को क्यों फैंक गए ? उन्हें दया नहीं आयी। 

काश  रात को ही मैं मौके पंुहच जाता और बच्ची की जान बचा लेता। मन ही मन अपने आप को कोस रहा था। सवारी को छोड़ वह सीधा घर पंहुचा, बिना बोले चारपाई पर लेट गया। उसकी पत्नी और अम्मा ने आज तक उसे इस तरह खामोश , बिना शोर  गुल किए घर में घुसते नहीं देखा था। आज उन्हें वह ठीक नहीं दिख रहा था। माॅं ने बहु की ओर देखा, बहु ने जैसे सब समझ लिया हो, वह सुनील के पास गई। आज आप बड़े परेशान लग रहे हैं। क्या हुआ ? सब ठीक तो है ना ,,, क्या हुआ बोलते क्यो नहीं ?

सुनील – नहीं कुछ नहीं हुआ। कुछ तो है तभी तो बैचेन दिख रहे हो। पत्नी के आग्रह पर सुनील ने सारा घटनाक्रम पत्नी को बता दिया। उसकी पत्नी भी सुनकर हैरान रह गई, पर उसने हिम्मत करते हुए कहा कि आप क्यों परेशान होते हो, आपने गुनाह थोड़ी किया है। जिसने किया है वह भुगतेगा। एक खामोशी  के बाद सुनील बोला, कोई नहीं भुगतेगा, भुगतेगी वो माॅं जिसकी वह बच्ची थी,भुगता उस बच्ची ने अपनी जान देकर |

अर्जुन सिंह

                     

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