झाड़ू वाले की नकली बीबी और मेरे 500 रुपये

1

झाड़ू वाले की नकली  बीबी और मेरे 500 रुपये









इतिहास गवाह है कि कालिदास हो, अल्वा एडिसन या आइन्स्टाइन सबने  शुरुआत में बहुत मूर्खताएं की हैं, मने मेरी मुर्खताको  बुद्धिमानी की और बढ़ता कदम ही समझना चाहिए | 


यूँ तो लोगों के दर्द भरे किस्से सुन कर मूर्ख बनने की मूर्खताएं मैंने कई बार की हैं पर जो किस्सा मैं शेयर करने जा रही हूँ वो गर्म कड़ाही से उतरी जलेबी की तरह बिलकुल ताज़ा और घूमा हुआ है | बात पिछली एक मार्च की है, सुबह का समय था, तभी किसी ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया | 



झाड़ू वाले की नकली बीबी और 500 रुपये 



दरवाज़ा खोलते ही एक औरत रोते हुए दिखी| मुझे देखकर बोली ,”कल रात  मेरा आदमी मर गया, यही आप के मुहल्ले की सड़क पर झाड़ू लगाता था “| ओह, वो सफाई वाला, अभी परसों तो देखा था,अच्छा भला था |  मेरा दिल धक् से रह गया| मन में ख्याल आने लगे  इंसान का क्या भरोसा ,आज है , कल नहीं है | 

मुझे द्रवित देख वो बोली,” कफ़न के पैसे भी नहीं है, कुछ मदद कर दीजिये | बचपन से पढ़े पाठ दिमाग में कौंध गए, पैसा क्या है हाथ का मैल है | मैंने,  200 का नोट दिया |पैसे देख कर उसका रुदन गेय हो गया, ,” इत्ते में क्या होगा, लाश घर पर पड़ी है … हाय माईईई , मैंने  उसे दोबारा अपने हाथों की तरफ देखा, अब इतना मैल तो मेरे हाथ में भी नहीं था, इसलिए अलमारी से निकाल 300 और दिए | 


वो रोती हुई चली गयी और मैं पूरा दिन शमशान वैराग्य में डूबी बिस्तर पर पड़ी रही, तारीख गवाह है कि उस दिन मैंने fb भी नहीं खोली |


 ठीक दो दिन बाद, चार मार्च की सुबह फिर दरवाजा  खटका| खोलने पर सामने सडक पर झाड़ू लगाने वाला खड़ा था| मुझे देख कर दांत दिखाते हुए बोला ,” होली की त्यौहारी | मुझे माजरा समझते देर न लगी , कोई अजनबी औरत इसकी पत्नी बन  मुझे मूर्ख  बना गयी थी |


 पछतावा तो बहुत हुआ पर मैं उस झाड़ू वाले से ये तो नहीं कह सकती थी कि ,” अभी तो तुम्हारे कफ़न के पैसे दिए हैं , त्यौहारी  किस मुँह से मांग रहे हो ? 


उसे पैसे दे , सोफे पर पसर ,सोंचने लगी … सच  , आदमी का कोई भरोसा नहीं, आज है , कल नहीं है … परसों फिर है  





वंदना बाजपेयी

यह भी पढ़ें ..

इतना प्रैक्टिकल होना भी सही नहीं
जिंदगी का चौराहा



आपको  लेख   झाड़ू वाले की नकली  बीबी और मेरे 500 रुपये  ..  कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको अटूट बंधन  की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम अटूट बंधनकी लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

filed under-kissa, idiot, memoirs,

(ये रचना प्रभात खबर में प्रकाशित है ) 

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here