प्रेम कभी नहीं मरेगा

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प्रेम कभी नहीं मरेगा
आज टूटते हुए रिश्तों को देखकर ऐसा लगता है कि प्रेम बचा ही नहीं है , परन्तु ऐसा नहीं है , प्रेम अहंकार की इस सतह के नीचे आज भी साँसे ले रहा है …. वो सदा था है और रहेगा |

प्रेम कभी नहीं मरेगा 

अहं ने 
उठा लिया है 
अपना सिर इतना 
कि बैठ ही गया 
मनुष्य के सिर चढ़ कर 
हर ली है उसके 
सोचने-समझने की शक्ति 
तभी तो 
अपने- अपने 
कमरों के दरवाजे बंद कर 
छिपा रहता है मोबाइल में 
ऊबता है तो 
बीच-बीच में 
दूरदर्शन खोल लेता है 
इनसे जब थकता है 
तो कमरे से निकल 
दरवाजे पर ताला लगा 
घूमने बतियाने 
निकल जाता है 
रास्ते से भटका अहं
हत्या कर रहा है 
उस प्रेम की 
जो सदानीरा बन 
बहता था 
अट्टालिकाओं के मध्य से 
पर 
स्मरण रख 
मानव!
तेरा अहं
कितना भी चाहे 
प्रेम कभी नहीं मरेगा 
गिरना और मरना 
तो अहं को ही पड़ेगा।
—————————
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
lekhika
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2 COMMENTS

  1. सहमत अंत में जीत प्रेम की ही होगी … पर कई बार तब तक समय भी निकल जाता है …
    अच्छी रचना है …

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