हिंसा से अहिंसा तक

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अहिंसा
हिंसा के पीछे क्रोध है l क्रोध के पीछे अक्सर भाव ये होता है कि दूसरा हमारे मनोनुकूल नहीं है l थप्पड़ मारना या शारीरिक चोट पहुँचाना स्पष्ट हिंसा है l
परंतु यदि हम किसी को बात समझाने के लिए उससे ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं कि उसे थप्पड़ जैसे लगें तो यह भी हिंसा है l हिंसा का शाब्दिक रूप स्थूल रूप से सूक्ष्म होता है l पर इससे हम अवगत है l
हिंसा का एक और रूप है, जहाँ हम किसी व्यक्ति के दिल को चोट ना लगे इसलिए उसकी गलतियों को समझते हुए भी उसके मन मुताबिक बोल कर चले आते हैं l क्योंकि हमने कहीं ना कहीं पढ़ रखा है कि किसी के दिल को चोट पहुँचाना भी गलत है l या हमें सिर्फ मीठा-मीठा बोलना है l यही धरम है l अगर कृष्ण ने इतनी मिठास का ध्यान रखा होता तो गीता का उपदेश ना देते l पिता का आदर करने वाली संस्कृति में नचिकेता उनकी गलत बात पर अंगुली ना उठाते l
हिंसा का सूक्ष्मतम है कि किसी को गलत राह पर जाते हुए देख कर भी अपनी राय ना देना, या गलत राय देकर भटका देना … कालांतर में ये उस व्यक्ति के प्रति हिंसा के रूप में सामने आएगी l बात ये भी है कि हम हर किसी को आगे बढ़कर राय नहीं दे सकते पर जहाँ माँगी जाए वहाँ हिंसा के इस सूक्ष्मतम रूप से बचना चाहिए l
वंदना बाजपेयी
वंदना बाजपेयी

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