किसी विवाह समारोह में

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किसी विवाह समारोह में

आप भी अवश्य किसी विवाह समारोह में गए होंगे …. रिश्तों के टूटे तारों को समेटा होगा , जी भर जिया होगा और दामन में आत्मीयता को भर कर फिर लौटे होंगे अपनी मशीनी जिन्दगी में …. आइये उसे  फिर से जिए

कविता -किसी विवाह समारोह में 

किसी विवाह समारोह में
अक्सर मैं सोचती हूँ ,
हम किसके लिए कर रहे हैं विमर्श
बराबरी की बातें
एक शिकन भी तो नहीं हैं इनके चेहरे पर
मेक अप , चूड़ियों और महँगी साड़ियों की बातें करती
चहक -चहक कर बतियाती ये औरतें
नज़र आती हैं
धरती का सबसे संतुष्ट जीव

किसी विवाह समारोह में
बन्ना -बन्नी ,  और बधाई गाती हुई ये औरतें
जो ढोलक की थाप पर नाचते  -झूमते हुए
शायद कुछ पल के लिए भूल जाना चाहती हैं
अपनी निजी जिन्दगी के दर्द
सास ननद और ससुराल की दिक्कतों को
तभी तो बड़ी ही ख़ूबसूरती से
चुनती है …
काहे को ब्याही विदेश के स्थान पर
पिया का घर प्यारा लगे

किसी विवाह समारोह में
एक दूसरे को सजाती संवारती हैं औरतें
किसी का जूड़ा बांधतीं , किसी का पल्लू ठीक  करतीं
प्लेटों को करीने से लगाती
बना देना चाहती हैं दुनिया को सबसे सुंदर
फिर धीरे से दूसरी औरत के कान के पास जा कर कर
फुस्फुसातीं हैं अगली की साड़ी की कीमत
होती है हार के असली या नकली करार देने की कवायद
हार और साड़ी की कीमत से
बाँटती हैं दूसरी के सुखी या दुखी होने का सर्टिफिकेट
और इस नकारात्मकता के साथ
कुछ पल पहले अपनी ही रचाई हुई
सबसे खुबसूरत दुनिया को
कर देती हैं संतुलित

किसी विवाह समारोह में
हाशिये  पर धकेल दी जाती हैं वो औरतें
जो सुंदर नहीं हैं ,
या जिनके गहने कपड़े नहीं हैं सुंदर
समारोह की जान और शान हैं खूबसूरत , धनवान  औरतें
जिनके हीरे के कर्णफूलों की चमक से
कुछ और बढ़ जाती हैं
जिन्दगी की धूप  में पकी हुई औरतों के गालों की झुर्रियां
ठीक उसी समय से वो करने लगती हैं हिसाब
अगले समारोह के खर्चे का,
दोहराती हैं मन में महंगे ब्यूटीपार्लरों के नाम
ताकि बढ़ा सकें अपना थोडा सा कद
और    यूँ ही ना  कर दी जाए नज़रंदाज़
क्योंकि सिर्फ सुन्दरता ही  यहाँ की डिग्री है
तन की या धन की

किसी विवाह समारोह के
समापन के बाद
मेकअप की परतों के उतरते ही
उभर आतें हैं उनके दर्द
धन , सम्मान और रूप से परे
निकल आती हैं  खालिस औरतें
जो करोचती नहीं , सहलातीं हैं एक दूसरे का दर्द
खुलती हैं मन की गिरहें
विदा लेती बेटियाँ और बहनें
भुला ना देना की आर्तनाद के साथ
कोछ के चावल के संग
आंचल के कोने में ,बाँध लेना चाहती हैं
मायके का प्यार
विदा लेती खानदान की बहुए
लेती हैं वादा अपनी एक जुटता का
गले मिलती जेठानी -देवरानियाँ
करतीं हैं आसरा
गाढ़े वक्त में काम आने का

किसी विवाह समारोह में
नहीं जुड़ता सिर्फ पति -पत्नी का रिश्ता
जुड़ते हैं अनेक रिश्ते
ताज़ा हो जाते हैं कुछ पुराने चेहरे
जो समय की धुंध में कहीं खो गए थे
अरे पहिचाना की नाहीं से
वाह तुम तो इत्ते बड़े हो गए तक
झनझना जाते हैं ना जाने कितने तार
बजता है संगीत
जो करता है इशारा
कि आज के युग में भी
जब भौतिकता की अंधी दौड़ में भागते हम
जो अलापते हैं ‘मेरी  जिन्दगी मेरी मर्जी ‘का सुर
और होते ज़ाते हैं अकेले
और कोसते हैं रसहीन होती जिंदगी को
तभी कोईविवाह समारोह  हमें फिर से जोड़ता है
अपनी जड़ों से
देता है आत्मीयता की ऊर्जा
ताकि  बिना घर्षण के अगले विवाह समारोह तक
चल सके मशीनी जिन्दगी

वंदना बाजपेयी

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3 COMMENTS

  1. अप्रतिम ।
    सार्थक रचना जो समेटे है नारी मनोदशा का हर पल बदलता स्वरूप और विवाह समारोहों में अन्तर निहित कितनी विसंगतियां साथ ही नारी का आज तक भोतिक सुखों और अपनी आत्म प्रशंसा की भूल भुलैया में फसे रहना।
    वाह रचना।

  2. आदरणीय वन्दना जी — नारे की सहज मनोवृतियों को कितनी सूक्ष्मता से अपनी रचना का आधार बना कितनी सुंदर रचना लिख दी आपने !! सारी रचना में मानो घटना क्रम आँखों के आगे से बीत रहा है | नारी जीवन का समस्त वार्तालाप उनकी अंतर्वेदना से भरा होता है जिसकी पूर्ति मौक़ा मिलते ही करना एक सहज नारी स्वभाव है | शादी ब्याह के साथ साथ दुसरे मौके जहाँ औरतों का मिलना संभव होता है ऐसे ही वार्तालाप विस्तार पाते हैं | सुंदर , सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | आखिर एक कवियित्री मन नारी मन की थाह ना पायेगा तो कौन पायेगा ? सस्नेह —

  3. विवाह समारोह आपसी रिश्तों को जोड़ने का जरिया हैं। बहुत ही बढ़िया प्रस्तूति,वंदना दी।

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