कृष्ण यानि केंद्र

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कृष्ण
krishna

कृष्ण को  समझना इतना आसान नहीं हैं |

सोइ जानइ जेहि देहु जनाई।

जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥

कृष्ण का अर्थ है केंद्र ..  सेंटर ऑफ ग्रैविटेशन की तर्ज पर समझ सकते हैं की सेंटर ऑफ अट्रैक्शन जिसके चारों ओर जो कुछ  भी हैं वो उसमे खिंचता चला जाता है | कृष्ण आकर्षण का केंद्र हैं |उनमें गजब का आकर्षण है गोपियाँ ही नहीं उनके दुश्मन भी उनकी तरफ खिंचते  हैं |

कृष्ण को पूर्णवतार माना जाता है | ये भी सत्य है कि जब हम किसी को नहीं समझ पाते तो हम उसे पूजने लगते हैं |जबकि असली पूजन उस को समझना व खुद में समाहित करना होता है | कितने  लोग हैं जिन्हे गीता कंठस्थ हैं पर उनमें से कितने है जो उसे समझ पाते हैं |

जब हम कृष्ण कहते हैं और केंद्र को समझने का प्रयास  करते हैं तो हम पाते हैं कि हर आत्मा एक केंद्र हैं जिसके जन्मते ही उसके चारों ओर एक वृत्त का निर्माण होने लगता हैं |इस वृत्त में पहले परिवार फिर पड़ोस फिर समाज खिंचता जाता है |बहुत कम लोग हैं जो समस्त राष्ट्र का केंद्र हो पाते हैं |उससे भी कम समस्त मानवता केंद्र और समस्त ब्रह्मांड का केंद्र होना तो दुर्लभ ही है | इसीलिए हर आत्मा एक व्यक्ति रूप में  जन्म के साथ पैदा होती है और मृत्यु के साथ एक व्यक्ति के रूप में खत्म हो जाती है |

 

महापुरुष मृत्यु के साथ जन्म लेते हैं |उन्हे फिर से समझने का प्रयास होता हैं ..आखिर कोई इतना महान कैसे हो सकता है | इसको समझने के क्रम में क्षेपक  जुडते हैं कहानियां जुड़ती हैं | अलग अलग व्यक्ति अपनी सोच और दृष्टि के साथ उनको समझने का प्रयास करते हैं |कोई महारास को आध्यात्मिक दृष्टि से देखता  है तो किसी को उसमे छलिया नजर आता है |कोई माखन चोर नन्द किशोर में सामान्य बालक देखता है तो कोई योगेश्वर में ईश छवि निरूपित करता है | जैसे -जैसे समय आगे बढ़ेगा हम आने वाले समय की अच्छाइयों और बुराइयों के अनुसार उस काल से साम्य बैठा  कर कृष्ण के चरित्र को समझने का प्रयास करते रहेंगे  पर हर हाल में कृष्ण  केंद्र में बने रहते हैं,बने रहेंगे |

 

आखिर ऐसा क्यों है की कृष्ण हर काल में प्रासंगिक बने रहते हैं | यहाँ सिर्फ छवि गढ़ने की बात ही नहीं छवि भंजन करने की बात भी है |इसका उत्तर भी कृष्ण स्वयं देते है |जब कृष्ण कहते हैं मैं वृक्षों में मैं पीपल हूँ , गायों में मैं कामधेनु हूँ .. एक आम समझ के आधार पर हम इसे कह सकते हैं की वो सबमें श्रेष्ठ चुनते हैं | क्या ये अहंकार है ? पर ध्यान से समझने का प्रयास करेंगे तो हर गाय में कामधेनु बनने की संभावनाएँ हैं ,वृक्ष में पीपल बनने की संभावनाएँ हैं,व्यक्ति में कृष्ण बनने की संभावनाएँ  हैं |अगर हम वहाँ तक नहीं पहुँच पाए तो हमने जीवन पूर्ण नहीं जिया |

 

पूर्ण जीवन यानि कृष्ण जैसा जीवन .. जो सबको समग्रता से स्वीकार करते हैं |किसी को अस्वीकार नहीं करते | जब हम किसी को गुण मान  लेते हैं तो उसके विपरीत आचरण स्वतः ही अवगुण हो जाता है |जिसे हम अवगुण समझते हैं उससे बचना चाहते  हैं,मन उस ओर आकर्षित होता है | यहाँ दवंद उत्पन्न होता है |कृष्ण  मर्यादाओं में भी खुद को नहीं बांधते |सही -गलत को परिभाषित नहीं करते वरन कर्म पर बल देते हैं |वे स्वयं निष्काम हो जाते हैं | वो  देह को आत्मा से अलग नहीं देखते |वो देह का दमन कर आत्मा के साथ  जाने के द्वैत सिद्धांत का खंडन करते हैं |

वो रिश्तों में रह कर असंग  रहते हैं ,महारास रचाते हुए भी योगेश्वर हैं और  युद्ध भूमि में भी करुणा से पूरित हैं |

इसीलिए वो कृष्ण हैं ..केंद्र हैं

श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की शुभकामनाएँ

वंदना बाजपेयी

 

 

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