मम्मा हमको ब्वाय बना दो

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मम्मा हमको बॉय बना दो
मासूम  प्यारी सी बच्ची  जिसको दखकर मन स्वत: ही स्नेह से भर जाता है | जरा उसकी दर्द भरी  गुहार को सुनिए |तब  स्त्री और पुरुष  की बराबरी की बातें बेमानी हो जाती हैं |  बेमानी हो जाती है ये बात कि शिक्षा और कैरियर में स्त्री पुरुष का संघर्ष बराबर है जब उन्हें घर के बाहर ही नहीं अंदर भी खतरा हो | कब मासूम बच्ची इस खतरे को समझती है और अपनी माँ से कहती है “मम्मा  मुझको भी बॉय बना दो ” |सौरभ दीक्षित मानस जी की एक मार्मिक कविता ..

मम्मा हमको ब्वाय बना दो

मम्मा हमको ब्वाय बना दो अब बाहर डर लगता है।

छोटे बच्चों के संग भी दुष्कर्म हो सकता है।।
सबसे पहले आप कटा दो, काले लंबे बाल घने।
ये ही सबसे बड़ी मुसीबत, ये जी का जंजाल बने।।
भइया अंकल दादा जैसे, गंदी हरक़त करते हैं,
सुनती हो ना, अखबारों में ये ही सब तो छपता है।
मम्मा हमको ब्वाय बना दो अब बाहर डर लगता है।
जैसे जैसे बड़ी हो रही सबको चिंता होती जाती।
क्या होगा स्कूल में मेरे किस रास्ते से मैं हूँ आती।।
अंकल बाहर बोल रहे थे अब बकरी भी नहीं सुरक्षित,
मार जिसे खाते थे पहले उसकी इज्ज़त आज लूटी है।
मूक यहां सरकार बनी है क्या कौन यहाँ कर सकता है।
मम्मा हमको ब्वाय बना दो अब बाहर डर लगता है।
तुम मेरी बेटी कह लेती हो, वो बेटी अब किसे बताये?
जिनके घर में रहती हो वो, रक्षक भी भक्षक बन जाये।
खेल खिलौने की आयु में उसके तन को नोच रहे।
वो भी होंगे बाप किसी के तनिक न ऐसा सोच रहे।।
टीवी चैनल में दिखता है अखबारों में छपता है
आ बेटी मैं ब्वाय बना दूँ अब बाहर डर लगता है।
…….#मानस
saurabh
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