ठेका     

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ठेका

शराब का ठेका यानी सरकार के लिए राजस्व सबसे बड़ा सहारा | वही सरकार जो विज्ञापन दिखाती है कि आप  शराब पीते हैं तो आप की पत्नी जिंदगी भर आँसू पीती है | आखिर कौन चुका रहा है ये राजस्व और किस कीमत पर ..

आइए जाने उषा अवस्थी जी की लघु कहानी से ..

ठेका         


         मैं गहरी नींद में थी तभी बाहरी दरवाजे पर जोर से भड़भड़ाने की आवाज आई। कौन हो सकता है?उठ कर बत्ती जलाई। घड़ी पर दृष्टि डाली। रात के बारह बज रहे थे। आख़िर  इतनी रात को कौन आया है? मैंने सोचा। मन आशंकित हो उठा। बरामदे की लाइट जला कर दरवाजा खोला।  जाली से झाँक कर देखा , बाहर सर्वेन्ट क्वार्टर में रहने वाली रामकली अपनी बेटी पार्वती के साथ खड़ी थी। “क्या हुआ रामकली?” मैंने घबरा कर पूछा। “आंटी जी , तनी दरवाजा खोलिए।” मैंने दरवाजा खोल दिया। उसके चेहरे से गुस्सा साफ झलक रहा था। वह कोरोना के चलते अन्दर नहीं आई। क्रोध से उबलते हुए उसने कहा,”हमका नरेन्दर मोदी ( नरेन्द्र मोदी ) का नम्बर देव।”
“कौन सा नम्बर ? ” “अरे! , वहै मोबाइल नम्बर। ” वह आधी रात को देश के प्रधान मंत्री का नम्बर माँगने आई है ? आश्चर्य से मेरी आँखें फैल गईं।
“जब इतने दिनन ठेका नाहीं खोलिन तौ अब काहे खोल दिहिन। अगर अबहूँ ना खुलतै तो कउन सा पहाड़ टूट पड़त। अब तक तौ कउनेव का पियै की जरूरत नाही रही। अब का करोना खतम हुई गवा? जब लोगन मा पीयै की लत छूटि गई तौ अब काहे चालू कर दिहिन? ”
“इसके लिए नरेन्द्र मोदी कहाँ जिम्मेदार हैं?” मैंने कहा।  “यह तो मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने खोली हैं। ” उनहीं से पूछ कर तौ खोली हुइहैं । ” उसका जवाब था । इतनी रात गए इस बात को बढ़ाने का मेरा मन नही  था। अभी कल ही तो ठेके खुले हैं। अनायास ही मेरा मन समाचार पत्र में सुबह देखे उस चित्र की ओर चला गया जिसमें शराब की दूकान पर ‘सोशल डिस्टेंन्सिंग ‘ की धज्जियाँ उड़ाते हुए लोग एक दूसरे पर लदे पड़ रहे थे। वह तैश में थी । तभी उसने दुपट्टे से ढका अपना हाथ और सलवार उठा कर अपना पाँव ,  मेरे सामने कर दिए। मैं स्तब्ध रह गई।  कई जगह घाव थे । कितना भी यह सारा दिन काम करें , मरें, पर वही ढाक के तीन पात। मन हुआ कि अभी इसके मर्द को बुलाकर उसकी अच्छे से ख़बर लूँ किन्तु नशे की हालत में वह किस तरह प्रतिक्रिया करेगा ,  क्या इसकी गारन्टी ली जा सकती है ? वह बेअदबी भी कर सकता है ।
   जब पहली बार यह अपनी ननद के साथ , जिसे मैं पहले से ही जानती थी ; मुझसे कमरा माँगने आई , कैसी – कैसी कसमें खा कर कह रही थी कि मेरा मरद दारू नहीं पीता और आज इस तरह मेरे सामने खड़ी है। मैंने अपने भावों को जब्त करते हुए सोचा। इससे तो मैं बाद में निपटूगीं । मैंने ‘सोफ्रामाइसिन ‘ का ट्यूब उसके हाथ में देते हुए कहा ,  “देखो , इस मसले पर हम सुबह बात करेंगे। अभी तुम दवा लगा कर सो जाओ। यदि आराम नहीं हुआ तो सवेरे डा0 को दिखाना पड़ेगा।”
मै कमरे में आकर  लेट गई किन्तु नींद? ना जाने कितने अनुत्तरित प्रश्नों  पर मंथन करते मेरे मन को  छोड़ कर वह मुझसे कोसों दूर जा चुकी थी।

उषा अवस्थी

वो स्काईलैब का गिरना

मेंढकी

कब्ज़े पर
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