Tag: कविता वर्मा
अब तो बेलि फैल गई- जीवन के पछतावे को पीछे छोड़कर...
जिन दरवाज़ों को खुला होना चाहिए था स्वागत के लिए, जिन खिड़कियों से आती रहनी चाहिए थी ताज़गी भरी बयार, उनके बंद होने पर...
लकीर-कहानी कविता वर्मा
कोयल के सुत कागा पाले, हित सों नेह लगाए,
वे कारे नहीं भए आपने, अपने कुल को धाए ॥ ऊधो मैंने --
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भ्रम
भ्रम में जीना कभी अच्छा नहीं होता, लेकिन हम खुद कई बार भ्रम पालते हैं .. बहुत लोग हैं हमारे अपने, बस जरा सा ...
परछाइयों के उजाले
प्रेम को देह से जोड़ कर देखना उचित नहीं पर समाज इसी नियम पर चलता है | स्त्री पुरुष मैत्री संबंधों को शक की...