अटूट बंधन चित्र कथा : चक्कर फ्री का

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कुंफू : ओह ये रास्ता किधर है | जिंदगी की घडी तेज -तेज चल रही है | समय कम है | कहाँ ढूँढू  ? कैसे ढूँढू ?काश कोई ऐसी किताब होती जो लोगों को रास्ता दिखाती | उनका व्यक्तित्व निर्माण करती | निराशा के पलों से उन्हें निकालती| काश ! काश ! काश ! …………………………… 

चलो मिल कर सोचते हैं | काम कठिन हैं पर कोई रास्ता निकालते हैं | किसी तरह लोगों की मदद की जा सके |उनके जीवन को सही दिशा दे सके |

हुर्रे ! सभी जंगल वासियों खुशियाँ मनाओ | हमें दिशा देने के लिए एक नयी पत्रिका आ रही है | जो हमे सकारात्मक विचारों से भर देगी ,हमारे व्यक्तितिव का विकास करेगी ,हमारे बच्चों और सेहत के बारे में सोचेगी | वाह ! दिल तो ख़ुशी से झूम उठा है |बल्ले बल्ले !! 

कुंफू :चलो काम की शुरुआत करते हैं | ये सारे अक्षर बो दो |सबसे अच्छी खाद डालना | ध्यान रखना हैं रोज सीचना है ,सुबह शाम | खर पतवार साफ़ करने हैं | तब बनेगी स्पेशल पत्रिका | देखो ! टाइम से उठाना , नींद त्याग देना …… नहीं तो पौधे सूख जायेंगे |
उफ़ ! कितना थकाने  वाला है ये हार्वेस्टिंग का काम | लोग जिसे  एडिटिंग कहते हैं ………. पर ,बी ,ए की जगह आ गया  आर कहीं दूर भाग गया और डी तो लागाया ही नहीं | बीच -बीच में कौमा , बिंदी , पूर्ण विराम ……… आह ! थक गयी |
हां! ये कोई बच्चों का खेल थोड़ी ही है | पूरे एक हफ्ते से सोई  नहीं हूँ |  ठक ,ठक ये देखो दिन रात की मेहनत से  राकेट तैयार हो गया ,अब ये उड़ेगा | देश के हर शहर में जाएगा | लोगों तक अच्छी बातें पहुचायेंगा |  
पर घर की हालत का क्या करे | थोडे से  पैसों का इंतजाम कर के बच्चों के दूध की व्यवस्था तो कर दी है पर हमें तो भूखा ही रहना पड़ेगा समाज के लिए कुछ करने के लिए कुछ त्याग तो करना ही पड़ेगा ………. बड़ी भूख लगी है | पर कब तक ………   खाना ,कपडा , मकान  हर इंसान की आवश्यकता है | 
काश की लोगो का भला सोचने वालों के पास एक  ऐसा बगीचा होता जहाँ संतरे के जूस के फव्वारे  होते | रोटी ,सब्जी सब कुछ बगीचों में फसल की तरह पक कर तैयार होती | पर नहीं ! जब कोई आम आदमी कोई अच्छा काम करने की सोचता है तो लोग भूल जाते हैं ,कि बड़े काम सहयोग से चलते हैं ……………वो गाना नहीं सुना है “साथी हाथ बढ़ाना 
 चिंता न करो ! हम बहुत तेजी से चल रहे हैं | हम समाज को कुछ अच्छा देंगे ………… पर ऐसे लोगों से सावधान जो हमारी गाडी में डिब्बा तो जोड़ देते हैं जो हमें खींचना पड़ता है | पर ये नहीं सोचते कि गाड़ियाँ ईधन  से चलती हैं , डिब्बों से नहीं | 
जरा घोड़े तेज भगाओ , ये वो लोग हैं जो खरीद कर कपडे पहनते हैं , खरीद कर खाना खाते हैं , हर छोटी बड़ी हर चीज खरीद कर लेते हैं पर जब बात मैगज़ीन की आती है तो कहते हैं ” हमे फ्री कॉपी चाहिए | हमने अपना खाना छोड़ा है ,नींद त्यागी है पर  ” ये हमारे परिश्रम का अपमान करने वाले लोग हैं | और उनका भी जो खरीद कर पत्रिकाएँ  पढ़ते हैं |  
ठहरों ! अब हमें समझ में आ गया है| ये हमारी ही भूल थी जो हम फ्री कॉपी मांगते थे | ऐसे तो कोई आम आदमी सपना ही नहीं देख पायेगा | अच्छे विचारों का प्रचार -प्रसार रुक जाएगा | जो काम जनता के हित में है उसमें हमें सहयोग करना चाहिए | कम से कम अपनी प्रति तो खरीद कर पढनी चाहिए | अब से हम भी खरीद कर पढेंगे , मांग कर नहीं | 
देखा न लोग समझ गए | और लोगों को सही दिशा दिखाना यही तो हमारा काम हैं | ………अर्र अर्र ………… इधर नहीं आप लेफ्ट मुडे | 
समाप्त 
समस्त चित्र गूगल से साभार 
प्रस्तुतकर्ता 
शिवली मिश्रा 

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