मां

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कवि मनोज कुमार

रूठने पर झट से मना लेती थी
मां दवा से ज्यादा दुआ देती थी
कुछ बात थी उसके हाथों में जो
भूख ही पेट से वो चुरा लेती थी
चोट कितनी भी गहरी लगी क्यों हो
फूंक कर झट से वो भगा देती थी
मां पढ़ी कम थी मेरी मगर
हर मर्ज की वो दवा देती थी
आंख से आंसू निकलते नहीं थे


आंचल वो झट से फिरा देती थी
कुछ कहता था मैं लब से मगर
खिलौना वही वो दिला देती थी
मुंह अंधेरे भी निकलूं जो घर से अगर
उठ कर खाना वो झट से बना देती थी
बहस कितनी भी कर लूं उससे मगर
मुस्कुरा कर सब वो भुला देती थी
मां दवा से ज्यादा दुआ देती थी।


परिचयश्री मनोज कुमार यादव प्रणवीर सिंह इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैंIउन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ऍम.टेक की उपाधि प्राप्त की है एवं विगत पंद्रह वर्ष से अध्यापन कार्य में संलग्न हैंIइंजीनियरिंग क्षेत्र में होने के बावजूद साहित्य में रूचि होने के कारण श्री मनोज कुमार ने हिंदी कविता के क्षेत्र में बहुत ही उल्लेखनीय कार्य किया है तथा विभिन्न सामाजिक एवं राजनैतिक मुद्दों पर अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में जन जागरण का कार्य किया हैI

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