रिश्ते क्या हैं, कैसे बनते हैं, कैसे निभते हैं

0
विजयारत्नम्
रिश्ते हमारी जिंदगी का एक ऐसा महत्वपूर्ण हिस्सा है | जो कि बहुत ही
अनमोल होते है | रिश्तों को बनाने के लिए तथा उसे सही प्रकार से निभाने के लिए
काफी प्रयत्न करने पड़ते हैं | किसी भी रिश्ते की शुरुआत व्यक्तियों पर निर्भर करता
है | कि वह व्यक्ति रिश्तों को किस तरह निभाएगा | रिश्ता एक नहीं बल्कि दो
व्यक्तियों के दिलों का मिलना आवश्यक होता है | एक तरफ से देखा जाये तो रिश्ते कई
प्रकार के होते हैं | हर रिश्ते का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है | जिसको अगर
सही तरीके से निभाया जाये तो जिंदगी भर चलते हैं | वरना दो पल में खत्म हो जाते है


रिश्तों को अहमियत देना व्यक्ति के ऊपर निर्भर करता है | दिल से निभाया गया
रिश्ता जिंदगी के आखिरी साँस तक साथ देता है | रिश्ते का अपना एक उद्गम स्थान होता
है | जो की वह हर इन्सान से जुड़ा हुआ होता है | प्रत्येक रिश्ते को निभाने के लिए
दोनों तरफ से बराबरी की होनी चाहिए | तभी तो हर एक रिश्ते को एक अच्छी तरीके से
निभाया जा सकता है | 


हम यदि किसी भी रिश्ते को ज्यादा या कम  महत्व देने लगते है तो वही पर रिश्तों में
मनमुटाव होने लगता है
| और रिश्तों में झगड़े आदि शुरू हो जाते है | और इस तरह
रिश्ते को पूरी तरह से निभाया नहीं जा सकता है | रिश्तों के द्वारा किया जाने वाला
प्रयास उसे पूर्ण रूप से निभाने का एक सही रूप माना जाता है | किसी भी रिश्ते को
नया रूप देने हेतु उसकी हर एक बात का ध्यान रखा जाता है | एक मात्र छोटी से गलती
से हमारी जिंदगी के बड़े – बड़े रिश्तों में दरारें आ जाती हैं | जिससे की रिश्ते
टूटने यानि खत्म होने तक की नौबत आ जाती है | जिससे की हमें अपनी जिंदगी ने बहुत
उतार – चढ़ाव देखने पड़ते हैं | और इससे जिंदगी में काफी बदलाव भी आ जाते हैं | वो
हमारी जिंदगी का चाहे कोई भी रिश्ता हो | माँ – बाप , भाई – बहन , पति – पत्नी का
या फिर दोस्ती का इस तरह इन सभी रिश्तों को समझने की अपनी एक भावना होती है | 


यदि
रिश्तों को समझकर उसे निभाया जा रहा है तो रिश्ते को बहुत ही अच्छे से निभाया जा
सकता है | और यदि किसी भी रिश्ते में बदले की भावना या फिर किसी बात से दिल में
जरा सी खटास आ जाती है तो वहाँ पर बहुत ही समझदारी के साथ अगर रिश्ते को समझकर उसे
खत्म करने की जगह निभा भी सकते है | 


हमारी जिंदगी में किसी भी रिश्ते को लेकर कोई
हीन भावना द्वेष आदि नहीं होना चाहिये |
अपनी – अपनी जगह हर एक रिश्ता बहुत ही
अनमोल होता है | जो की हमारे परिवार में यह देखा जाता है कि रिश्तों को सुधारने
हेतु काफी प्रयत्न करते हैं | जिन रिश्तों में खटास तथा दूरी की भावना को ज्यादा
दिल से लिए जाते है | तो वह रिश्ते को समझकर सुलझा लेना चाहिए | और इस तरीके से
रिश्तों को एक ख़ुशी की तरीके से भी जोड़ा जा सकता है | जो की यह एक ख़ुशी परिवारों
में कम देखने को मिलती है | हम रिश्तों को सामाजिक रूप से जोड़कर देखते हैं तो
रिश्तों को निभाने की एक प्रकार से सभी व्यक्तियों को साथ में रहकर ही कर सकते है
| इस प्रकार से यदि देखा जाये तो रिश्तों की अहमियत को ठीक प्रकार से समझ पाना
बहुत ही मुश्किल होता है |

 रिश्ता हमारी जिंदगी में एक ख़ुशी की लहर बन कर सामने
आता है | जो कि इस प्रकार के रिश्तों को निभाने की छमता हर किसी में नहीं होती है
| जो व्यक्ति इन रिश्तों की समझ को अच्छी तरह जान लेते है तथा पहचान लेते हैं |

उन्हें रिश्ते निभाने के लिए जरा सी भी मशक्कत नहीं करनी पड़ती है
|
  रिश्ते रिश्तेदारों के द्वारा किये गए
परिश्रम के द्वारा ही निभाए जा सकते हैं | क्योकिं जब कहीं जरा सी बात को बहुत ही
नासमझ के साथ बताया जाता है तो वहाँ पर रिश्तों को निभा पाना बहुत ही मुश्किल हो
जाता है | हमारे समाज में रिश्तों की डोरी को व्यक्ति एक दूसरे की दिल की डोरी
जानकर उन रिश्तों को समेटने की कोशिश करता है | जिन्हें वह कभी न कभी खो सकता है |
यदि किसी भी रिश्ते में जरा सी भीम कडवाहट पैदा हो जाती है तो उन्हें निभापाना
अत्यंत ही मुश्किल हो जाता है | और इससे रिश्तों में काफी दरारें , लड़ाई , झगड़े
आदि होने लगते हैं | और धीरे – धीरे रिश्तों के टूटने की नौबत आ जाती है | रिश्तों
को हर मुश्किल से गुजरना पड़ता है | जबकि ये कह पाना अत्यंत ही सराहनीय होगा कि
हमारे समाज में रिश्तों को समझने की उन्हें निभाने की छमता होती है | रिश्ता दिलों
से बनता है | जो की यह हर एक व्यक्ति के साथ पूरी जिंदगी चलता है | रिश्तों से
व्यक्ति की पूरी जिंदगी ही बदल जाती है | रिश्तों के साथ होने से अकेलापन नहीं
महसूस होता है | जब किसी व्यक्ति के जीवन में कोई भी रिश्ता होता है तो वह व्यक्ति
उस रिश्ते को लेकर उससे अपने मन की बात को बता सकता है | और उसे बिलकुल भी अकेलापन
नहीं लगता है | रिश्तों के द्वारा ही व्यक्ति एक दूसरे से जुड़ा रहता है | 

यदि समाज
में कोई भी रिश्ता न होता तो वह समाज कैसे बनता | इस तरीके से रिश्तों को सही
मायने में निभाया जा सकता है एक अच्छे रिश्तें को निभाने में समझदारी से काम लेना
बहुत आवश्यक होता है | जो कि यह समझदारी बहुत ही कम देखने को मिलती है | समझदारी
से ही हमारे रिश्ते बनते है और निभाए भी जाते हैं | जिससे की रिश्ते और मजबूत हो
जाते हैं | यदि समझदारी से रिश्ते निभाए जाये तो रिश्तों को निभाना बहुत ही आसान
होता है |


-विजया रत्नम्

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here