शिखरिणी छंद

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शिखरिणी छंद—रक्षाबंधन पर
डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून, उत्तराखंड
1–
रेशम सूत्र
बनता नेह डोर
संबंध गूढ़।
——
2–
भाई बहन
प्रफुल्लित हैं दोनों
राखी पहन।
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3–
शीश चंदन
सजती हाथ राखी
भाई मगन।
—–
4–
सजाए थाली
रोली चावल राखी
बैठी बहना।
—–
5–
चाहे बहना
रहे समृद्धि प्रेम
भाई अँगना।
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6–
रहे मायका
बना सदा भाई से
चाहे बहना।
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7–
हों भाई भाभी
बच्चे भी साथ तभी
रक्षाबंधन।
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8–
मिटें दूरियाँ
रक्षा सूत्र पहुँचे
लेकर नेह।
——
9–
बदला रूप
खिले रक्षासूत्र ले
नई पहचान।
——
10–
न हो सीमित
संबंध बनें सब
स्नेह बँधन।
——
11–
भुलाएँ सब
आपसी वैमनस्य
मनाएँ राखी।
—–
12–
अभयदान
दें प्रकृति को बाँध
रेशम सूत्र।
—–
13–
रक्षा संकल्प
लेकर सभी जन
हों कटिबद्ध।
——–
14–
कहे त्योहार
रखना सदा याद
प्रेम अपार।
——
15—
राखी का मोल
भावनाएँ जिसमें
भरी अमोल।
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