नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई

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नये साल मे----पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई

टेक्नोलोजी पर  हालांकि
पुरुषों का एकाधिकार नहीं है | पर एक सीधी  – साधी
 घरेलू महिला जब नया मोबाइल लेती है तो  बेचारे पति को क्या – क्या समस्याएं आ सकती हैं
| जानने के लिए पढ़ें रंगनाथ दुबे जी की व्यंग कविता और करें नए साल की शुरुआत थोड़े
हंसी मजाक के साथ ……..

नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई


नये साल मे मोबाइल खरीद———
मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई।
पहले से ही क्या कम अक्ल थी उसमें,
अभी उसी से निजात न मिली थी,
कि हाय राम!
हमारे पपुवा की मम्मी——-
पहले से ज्यादा टेक्नीकल हो गई।

नये साल मे मोबाइल खरीद—–
मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई।
अब तो कुछ उसके शब्द भी सिनेमाई हो गये,
दिन भर झगड़ती है,
फिर सेल्फी लेते समय ये कहना—–
कि क्या मुँह बनाये बैठे हो चलो हँसो,
फिर अपने रंगे-पुते चेहरे को मेरे पास ला,
कई सेल्फी लेती है,
उफ! रे मोबाइल, चाहे जैसे थी,
थोड़ा बहुत ही सही,
प्यार तो करती थी पपुवा की मम्मी,
लेकिन वाह रे! नया साल,
कि मोबाइल खरीदते ही मेरे पपुवा की मम्मी—
कितना क्रिटिकल हो गई।

नये साल मे मोबाइल खरीद——
मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई।
उसे सजी-सँवरी होने पे भी,
छुने की हिम्मत न पड़ रही,
पता नही कब मुड़ आॅफ हो जाये,
थोड़ी बहुत संभावना भी साफ हो जाये,
इस डर से मै हिन्दी के स्टुडेंट की तरह,
डर रहा क्या करु,हाय राम!
इस नये साल———
मेरे पपुवा की मम्मी ना समझ आने वाली,
कमेस्ट्री की केमिकल हो गई।

नये साल मे मोबाइल खरीद——-
मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई।

@@@रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी।
जज कालोनी,मियाँपुर।
जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

लेखक व् कवि



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